Rohit Vemula Letter: 17 जनवरी 2016 आज के दिन ही रोहित वेमुला के साथ दिल दहला देने वाली घटना घटी थी. इसी दिन इस दलित छात्र ने जातीय उत्पीड़न से हार मान ली थी. और हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रावास परिसर के एक कमरे में फांसी के फंदे से लटका हुआ पाया गया था रोहित वेमुला.
उनकी दुखद मृत्यु के बाद देशभर में व्यापक प्रदर्शन हुआ और शैक्षणिक संस्थानों में होने वाले जातीय भेदभाव पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई.
लेकिन, उनकी इस शहादत के बाद भी आज तक कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं. उसके बाद कुछ आदिवासी और दलित छात्र-छात्राए जातीय भेदभाव के शिकार बने हैं. यह स्तर अध्यापकों तक जा पहुँचा है. और डॉ रितू सिंह, लक्ष्मण यादव जैसे अध्यापक इसके शिकार हुए है.
मगर, यहाँ हम बात जातीय भेदभाव की नही बल्कि रोहित वेमुला द्वारा अपनी शहादत से पहले एक पत्र लिखा गया था. इस पत्र के बारे में बताया जाता है कि यह मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था और रोहित वेमुला ने पहली बार ही कोई पत्र लिखा था. जो उनका पहला और अंतिम पत्र साबित हुआ.
पेश है रोहित वेमुला के आखिरी पत्र के अनुवादित अंश:
रोहित वेमुला का आखिरी पत्र
शुभ प्रभात,
जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं आसपास नहीं रहूंगा. मुझ पर गुस्सा मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कुछ लोग सचमुच मेरी परवाह करते थे, मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा ख्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मेरे साथ हमेशा समस्याएं थीं. मुझे अपनी आत्मा और शरीर के बीच बढ़ती हुई खाई महसूस होती है. मैं हमेशा से एक लेखक बनना चाहता था, कार्ल सागन जैसा विज्ञान का लेखक. लेकिन, यही एकमात्र पत्र है जो मैं लिख पा रहा हूँ.
मुझे विज्ञान, तारे, प्रकृति से प्यार था, लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया, बिना यह जाने कि लोगों ने बहुत पहले ही प्रकृति से नाता तोड़ लिया है. हमारी भावनाएँ दोयम दर्जे की हैं… हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता बस कृत्रिम कला के जरिए वैध है. यह बहुत ही कठिन है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों.
एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नजदीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदम्मी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र…
मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार ही आखिरी पत्र लिख रहा हूँ. मुझे माफ करना अगर मैं इसका अर्थ समझाने में असफल हो जाऊं.
हो सकता है कि दुनिया को समझने में मैं हर समय गलत था. प्रेम, दर्द, जीवन, मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई जल्दी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी मैं था. जीवन शुरू करने के लिए बेताब था. इस बीच, कुछ लोगों के लिए जीवन ही अभिशाप है. मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नही मिला.
इस वक्त मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं तो बस खाली हूं. अपने बारे में बेपरवाह. और इसीलिए मैं ऐसा कर रहा हूं.
लोग मुझे कायर कह सकते हैं. और मेरे चले जाने के बाद स्वार्थी, या मूर्ख. मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि मुझे क्या कहा जाएगा. मैं मृत्यु के बाद की कहानियों, भूत-प्रेतों या आत्माओं पर विश्वास नहीं करता. अगर मुझे किसी चीज़ पर विश्वास है, तो मुझे विश्वास है कि मैं चाँद तक यात्रा कर सकता हूं.
यदि आप, जो यह पत्र पढ़ रहे हैं, मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, तो मुझे मेरी सात महीने की फेलोशिप, एक लाख पचहत्तर हजार रुपये दिलवाने होंगे. कृपया यह सुनिश्चित करें कि मेरे परिवार को इसका भुगतान किया जाए. मुझे रामजी को कुछ 40 हजार देने हैं. उसने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. कृपया उसे feloship के पैसे से भुगतान करें.
मेरा अंतिम संस्कार मौन और सहज हो. ऐसा व्यवहार करो जैसे मैं अभी आया और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. जान लो कि मैं जिंदा रहने से ज्यादा मरकर खुश हूं.
उमा अन्ना, इस काम को आपके कमरे में करने के लिए माफी चाहता हूँ.
एएसए परिवार, आप सभी को निराश करने के लिए खेद है. आप सब मुझे बहुत प्यार करते थे. सभी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं.
आखिरी बार,
जय भीम
मैं औपचारिकताएँ लिखना भूल गया. खुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है. किसी ने भी मुझे इस कृत्य के लिए नहीं उकसाया है, न अपने कृत्यों से न अपने शब्दों से. ये मेरा फैसला है और इसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं.
मेरे जाने के बाद इस बात को लेकर मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान मत करना.
नोट: हम इस पत्र में कहीं गई बातों की पुष्टी नही करते हैं. यह पत्र विभिन्न न्यूज पोर्टलों पर उपलब्ध पत्र के आधार पर तैयार किया गया है. किसी भी त्रुटी के लिए दैनिक दस्तक जिम्मेदार नही होगा.