25.1 C
New Delhi
Wednesday, October 22, 2025

बैतूल (मुलताई) गोलीकांड – बहुजन जागरूकता सभा को बदनाम करने की साज़िश

मुलताई गोलीकांड 1998: बहुजन संघर्ष की एक दुखद अध्याय और आशा की किरण

बसपा का उदय और बहुजन समाज का सशक्तिकरण
1990 के दशक के अंत में, जब भारत स्वतंत्रता के पांच दशकों का साक्षी बन चुका था, तब भी इसका बहुजन समाज आश्रित जीवन की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। इसी दौर में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का उदय हुआ, जिसने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ होकर शोषित वर्गों को सत्ता के परिवर्तनकारी प्रभाव से परिचित कराया। माननीया मायावती, जिन्हें बहनजी के नाम से जाना जाता है, ने अपने नेतृत्व, शासन कुशलता और मानवीय कार्यों से न केवल बहुजन समाज का दिल जीता, बल्कि विरोधियों को भी अपनी दृढ़ता का लोहा मनवाया। दूसरी ओर, बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम साहेब ने उत्तर प्रदेश को बहनजी के सक्षम हाथों में सौंपकर भारत के अन्य राज्यों में बिखरे बहुजन समाज को एक सूत्र में पिरोने का बीड़ा उठाया। उनका यह संकल्प 12 जनवरी 1998 को मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में एक विशाल सभा के रूप में मूर्त होने जा रहा था, जिसका उद्देश्य था—“स्वतंत्र भारत में बहुजन समाज आश्रित क्यों?” यह प्रश्न न केवल एक जिज्ञासा था, बल्कि एक क्रांतिकारी चेतना का आह्वान था।

मुलताई गोलीकांड: एक सुनियोजित षड्यंत्र और त्रासदी
परंतु, जहाँ एक ओर बहुजन समाज अपनी मुक्ति की राह तलाश रहा था, वहीं मनुवादी ताकतें इस उभरती शक्ति को कुचलने के लिए कृतसंकल्प थीं। मुलताई की इस शैक्षणिक सभा को विफल करने के लिए उन्होंने एक सुनियोजित षड्यंत्र रचा। मूल रूप से 17 जनवरी 1998 को निर्धारित किसान सभा को जानबूझकर 12 जनवरी को पुनर्निर्धारित कर दिया गया, ताकि दोनों सभाओं के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो। इस षड्यंत्र का परिणाम हिंसक गतिविधियों के रूप में सामने आया, जिसे बहाना बनाकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार, जिसका नेतृत्व दिग्विजय सिंह कर रहे थे, ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। गोलियों की तड़तड़ाहट ने उस दिन मुलताई की धरती को लहूलुहान कर दिया—24 निहत्थे लोग शहीद हो गए और सैकड़ों घायल हुए। दुखद यह था कि बहुजन सभा में शामिल होने आए इन शहीदों को किसानों के नाम से जोड़कर उनकी पहचान और बलिदान को दबा दिया गया। इस प्रकार, शोषित समाज की यह शहादत इतिहास के पन्नों में एक गलत संदर्भ के साथ दफन हो गई।

मीडिया और राजनीतिक दलों की भूमिका: सत्य का दमन और अवसरवादिता
मुलताई गोलीकांड के बाद जो हुआ, वह और भी हृदयविदारक था। जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त मीडिया ने इस घटना को बहुजन आंदोलन के संदर्भ से हटाकर महज एक किसान आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया। नकारात्मक प्रचार के जरिए बहुजन समाज की इस शैक्षणिक सभा को बदनाम करने का प्रयास किया गया। दूसरी ओर, मनुवादी राजनीतिक दल—कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)—ने इस त्रासदी को अपने स्वार्थ की पूर्ति का माध्यम बना लिया। शहीदों की लाशों पर सियासत का खेल खेला गया; एक ओर कांग्रेस ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए इसे इस्तेमाल किया, तो दूसरी ओर भाजपा ने इसे चुनावी लाभ का औजार बनाया। परिणामस्वरूप, एक शख्स विधायक बना तो दूसरा सांसद, लेकिन शहीदों के परिवारों और घायलों की दयनीय स्थिति जस की तस बनी रही। यह घटना इस कटु सत्य का प्रमाण बन गई कि बहुजन समाज का दर्द और बलिदान भी सत्तालोलुप दलों के लिए महज एक अवसर है।

वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की संभावनाएं: बसपा एकमात्र विकल्प
आज, जब हम मुलताई गोलीकांड को दो दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद देखते हैं, तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। यहाँ की जनता आज भी उन्हीं मनुवादी दलों के शिकंजे में तड़प रही है, जो उनकी समस्याओं के मूल में हैं। वे अपनी मुक्ति का मार्ग कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों में तलाशते हैं, जो स्वयं इन जंजीरों के निर्माता हैं। ऐसे में, बहुजन समाज पार्टी एकमात्र आशा की किरण बनकर उभरती है। बुद्ध, फुले, शाहू और आंबेडकर की वैचारिकी पर आधारित यह पार्टी “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” के सिद्धांत पर चलती है। उत्तर प्रदेश में बसपा का शासन इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ बहुजन समाज को न केवल सम्मान मिला, बल्कि विकास और समृद्धि के नए आयाम भी खुले। यदि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की शोषित जनता इस मॉडल से प्रेरणा लेकर बसपा को सत्ता सौंपती है, तो यहाँ भी समतामूलक समाज की स्थापना संभव है।

निष्कर्ष: शहादत से प्रेरणा, संघर्ष से विजय
मुलताई गोलीकांड 1998 बहुजन संघर्ष का एक दुखद अध्याय है, जो यह दर्शाता है कि सत्ता और शोषण की ताकतें किस हद तक मानवता को कुचल सकती हैं। यह घटना बहुजन समाज की गरिमा और समानता की खोज में आने वाली व्यवस्थागत बाधाओं का प्रतीक है। परंतु, यह बसपा की उस अटूट संकल्प शक्ति को भी उजागर करती है, जो हर विपत्ति में आशा का दीप जलाए रखती है। मान्यवर कांशीराम साहेब का सपना और बहनजी का नेतृत्व आज भी बहुजन समाज को एकजुट करने और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए कटिबद्ध है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए यह समय है कि वे इस शहादत से प्रेरणा लें और बसपा के माध्यम से अपने भविष्य को संवारें। एक ऐसा भविष्य, जहाँ न कोई आश्रित हो, न शोषित, बल्कि हर व्यक्ति समानता और सम्मान के साथ जी सके।

(12 जनवरी 2020)


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

Opinion: समाजिक परिवर्तन के साहेब – मान्यवर कांशीराम

भारतीय समाज सहस्राब्दी से वर्ण व्यवस्था में बंटा है. लिखित इतिहास का कोई पन्ना उठा लें, आपको वर्ण मिल जायेगा. ‌चाहे वह वेद-पुराण हो...

एससी, एसटी और ओबीसी का उपवर्गीकरण- दस मिथकों का खुलासा

मिथक 1: उपवर्गीकरण केवल तभी लागू हो सकता है जब क्रीमी लेयर लागू हो उपवर्गीकरण और क्रीमी लेयर दो अलग अवधारणाएँ हैं. एक समूह स्तर...

स्वतंत्र बहुजन राजनीति बनाम परतंत्र बहुजन राजनीति: प्रो विवेक कुमार

"स्वतंत्र बहुजन राजनीति" और "परतंत्र बहुजन राजनीति" पर प्रो विवेक कुमार का यह लेख भारत में दलित नेतृत्व की अनकही कहानी को उजागर करता...

गौतम बुद्ध, आत्मा और AI: चेतना की नयी बहस में भारत की पुरानी भूल

भारत की सबसे बड़ी और पुरानी समस्या पर एक नयी रोशनी पड़ने लगी है। तकनीकी विकास की मदद से अब एक नयी मशाल जल...

बाबू जगजीवन और बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर: भारतीय दलित राजनीति के दो बड़े चेहरे

बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 में हुआ था और बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में. दोनों में 17...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...