सवाल यह नहीं की बिहार में SC रिजर्वेशन 17% से बढ़ाकर 20 % कर दिया गया है. सवाल है अबादी के हिसाब से एस सी रिजर्वेशन फिक्सड है तो इसे घटाया ही क्यों गया था?
2000 से बिहार में एस सी वर्ग को अबादी से 3% कम रिजर्वेशन मिल रहा है. ऐसा करने वाला बंगाल के बाद यह दूसरा प्रदेश बना रहा.
सवाल यह है कि इस 23 साल में दलितों का हक कौन मार कर खाता रहा? भूमिहार ,राजपूत , ब्राह्मण कायस्थ या अहिर और कुर्मी. यह सवाल कौन पूछेगा?
बिहार में रणवीर सेना लालू के छत्र साया में फला फूला और अपने नृशंसता के चोटी तक पहुंचा.
नीतिश कुमार ने अमीर दास आयोग खत्म कर दिया, सवर्ण आयोग बनाया, बाद में इसी सवर्ण आयोग के तर्ज पर EWS आया. पूरे देश को रास्ता तो नीतिश कुमार ने दिखाया है.
EWS की उपरी आय लिमिट छह लाख रूपये है, यह सवर्णों का आरक्षण है. बिहार में सवर्णों की अबादी का 25% लोग गरीब से भी नीचे हैं. क्या सवर्णों के 6 लाख यानी 50 हजार महीना कमाने वाले, 6 हजार से कम महीना कमाने वाले लोग को नौकरी में आगे आने देंगें? नहीं, तो सवर्णों की गरीबी कैसे दूर होगी?
क्या नीतिश की इतनी हिम्मत है कि EWS में गरीब और महागरीब जैसे दो कैटेगरी बना दें जैसे उन्होंने दलित और महादलित बना रखा हैं.
सवाल है दलित और महादलित बनाने का पैमाना क्या था?
दलितों में सबसे ज्यादा नौकरी पासी ओर धोबी के पास है, सबसे कम डोम और मुसहर के पास.
नीतिश कुमार का दलित और महादलित प्रोग्राम 2015 से बिहार में चल रहा है. मुसहर जाति के 47% लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. यह हम नहीं नीतिश कुमार कह रहे हैं.
जीतन राम मुसहर जाति से आते हैं, वे सवाल करते हैं कि आरक्षण की हर दस साल पर समीक्षा होना चाहिए. यह उनके अपने वर्ग के प्रति चिंता और प्रतिबद्धता का सवाल है. यह सवाल जायज भी हैं. जब जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने ही दलित और महादलित का भेद खत्म किया था.
जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री थे. हमने कभी नहीं सुना कि उन्होंने कभी भी नीतिश कुमार को निरादर सूचक शब्द प्रयोग किया हो.
सवाल यह है कि नीतिश कुमार के अंदर एक सामंत है, वह सवाल करने पर फु्फकारता है. वह उम्र में बड़े का लिहाज भी नहीं करता. उनके अंदर जाति का घमंड है.
वह सामंत तुरंत तोर-मोर, अरे- तरे करता है. उन्होनें न केवल जीतन राम मांझी को ऐसा कहा, बल्कि राबड़ी देवी को कह चुके हैं, तेजस्वी यादव को कह चुके हैं – जाकर अपने बाप से पूछो…
सदन में अश्लील तरीके से जनसंख्या नियंत्रण समझाते हैं.
यह सब सामंती प्रवृति है, का चिन्ह हैं.
सवाल है दलितों को इस पर क्यों नहीं सोचना चाहिए कि इस सामंती प्रवृति का समर्थन क्यों करना चाहिए, जबकि अपने मूल में यह दलित विरोधी है.
जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री नहीं बने रहते तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि नीतिश कुमार उन्हें क्या बोलते हैं, लेकिन अपने लाभ के लिए टोकन मुख्यमंत्री बना कर उसे अरे-तरे करना तो घोर बेइज्जती है.
दलित इसे क्यों बर्दाश्त करे?
(लेखक: चांद मनीष; यह लेखक के अपने विचार हैं)