शोषित समाज की उपलब्धियों का उत्सव: समतामूलक भारत का मार्ग
प्रस्तावना: एक नकारात्मक छवि का बोझ
भारतीय समाज में विसर्जन की संस्कृति ने शताब्दियों से दलित, पिछड़े, और आदिवासी समुदायों को गरीबी, लाचारी, और बदहाली की छवि में जकड़ रखा है। इस छवि को बार-बार परोसकर उनकी पहचान को शोषण और दीनता के पर्याय के रूप में स्थापित किया गया है। उनकी उपलब्धियाँ, जो साहस, संघर्ष, और प्रतिभा की मिसाल हैं, या तो नजरअंदाज कर दी जाती हैं या जानबूझकर दबा दी जाती हैं। यह एक कटु सत्य है कि जहाँ समतामूलक समाज की स्थापना के लिए शोषण के खिलाफ आवाज उठाना आवश्यक है, वहीं समाज की सकारात्मक और नवीन छवि गढ़ने के लिए शोषित वर्ग की उपलब्धियों को उत्सव के रूप में मनाना भी अनिवार्य है। यह लेख इस संदर्भ में विचार करता है कि बहुजन समाज और उसके तथाकथित बुद्धिजीवियों की चुप्पी, विशेष रूप से प्रो. विवेक कुमार की उपलब्धि जैसे गौरवमयी क्षणों के प्रति, आंदोलन की दिशा और दशा पर क्या प्रभाव डाल रही है।
उपलब्धियों का उपेक्षण: एक चिंताजनक प्रवृत्ति
यह विडंबना है कि जहाँ व्यावसायिक क्रिकेट में अर्धशतक या फिल्मों के 500 करोड़ के व्यवसाय को गाजे-बाजे के साथ उत्सव का रूप दिया जाता है, वहीं बहुजन समाज के लोग और उनके तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसी उपलब्धियों पर मौन साध लेते हैं, जो समाज की सकारात्मक छवि को रेखांकित करती हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका द्वारा प्रो. विवेक कुमार, जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर हैं, को ‘विश्व वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय रैंकिंग 2024’ में शामिल किया जाना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह सम्मान न केवल प्रो. विवेक कुमार की व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि शोषित समाज और समूचे भारत के लिए गर्व का विषय है। फिर भी, बहुजन समाज के लेखक, चिंतक, पत्रकार, और सोशल मीडिया पर बाबासाहेब की तस्वीरें साझा कर प्रशंसा बटोरने वाले लोग इस उपलब्धि को सेलिब्रेट करने से कतराते हैं। यह चुप्पी न केवल चिंताजनक है, बल्कि शोध का विषय भी है कि आखिर बहुजन समाज अपनी सकारात्मक उपलब्धियों को स्वीकारने और उसका उत्सव मनाने में क्यों हिचकिचाता है?
नकारात्मकता का चक्र: समाज की छवि पर प्रभाव
सवाल यह है कि क्या अर्धशतक, फिल्मों का व्यवसाय, या नकारात्मक मुद्दों पर लिखना-बोलना कभी समाज की सकारात्मक छवि गढ़ सकता है? यदि नहीं, तो बहुजन समाज और उसके बुद्धिजीवियों को आत्मचिंतन करना होगा कि वे अपनी उपलब्धियों को उत्सव का रूप देने से क्यों पीछे हटते हैं। विषमतावादी ताकतों का शोषित समाज की उपलब्धियों को नजरअंदाज करना समझ में आता है, क्योंकि यह उनकी वर्चस्ववादी सोच का हिस्सा है। किंतु बहुजन समाज के भीतर यह प्रवृत्ति क्यों पनप रही है? समाज की छवि केवल नकारात्मक मुद्दों से नहीं बदलती; यह सकारात्मक कृत्यों, सोच, एजेंडे, और उपलब्धियों को आत्मसात करने और सेलिब्रेट करने से ही नवीन रूप लेती है। बहुजन आंदोलन का लक्ष्य ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ है, और यह तभी संभव है जब समाज अपनी उपलब्धियों को गर्व के साथ अपनाए और उन्हें विश्व पटल पर प्रस्तुत करे।
प्रो. विवेक कुमार की उपलब्धि: शोषित समाज का गौरव
प्रो. विवेक कुमार का स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों की सूची में शामिल होना एक व्यक्तिगत उपलब्धि से कहीं अधिक है। यह दलित समाज से आने वाले एक विद्वान का वैश्विक मंच पर सम्मान है, जो शोषित समाज की बदलती स्थिति और सकारात्मक छवि को रेखांकित करता है। यह उपलब्धि भारत में सामाजिक बदलाव का प्रतीक है, जो यह सिद्ध करती है कि शोषित समाज न केवल शोषण के खिलाफ लड़ सकता है, बल्कि ज्ञान, विज्ञान, और बौद्धिकता के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना सकता है। यह एक ऐसा क्षण है, जिसे उत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि यह न केवल बहुजन समाज के लिए, बल्कि समूचे भारत के लिए गर्व का विषय है। यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि शोषित समाज की प्रतिभा, जब उसे अवसर मिलता है, तो वह विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ सकती है।

उत्सव का महत्व: समतामूलक समाज की नींव
समतामूलक समाज की स्थापना के लिए शोषण के खिलाफ संघर्ष आवश्यक है, परंतु यह पर्याप्त नहीं। समाज को अपनी सकारात्मक पहचान बनाने के लिए अपनी उपलब्धियों को गले लगाना होगा। प्रो. विवेक कुमार जैसे व्यक्तित्व इन उपलब्धियों के प्रतीक हैं, जो यह दर्शाते हैं कि शोषित समाज केवल पीड़ित नहीं, बल्कि सृजनशील, बौद्धिक, और नेतृत्वकारी भी है। इन उपलब्धियों को सेलिब्रेट करना समाज में आत्मविश्वास और स्वाभिमान जागृत करता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है। बहुजन आंदोलन को चाहिए कि वह नकारात्मकता के चक्र से बाहर निकले और सकारात्मकता के उत्सव को अपनाए। यह रीति-नीति ही सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के लक्ष्य को साकार करेगी, जिसके लिए यह आंदोलन समर्पित है।
निष्कर्ष: एक नवीन छवि का सृजन
प्रो. विवेक कुमार की उपलब्धि को सेलिब्रेट करना केवल एक व्यक्ति का सम्मान नहीं, बल्कि शोषित समाज की सामूहिक शक्ति और संभावनाओं का उत्सव है। बहुजन समाज और उसके बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे इस मौन को तोड़ें और अपनी उपलब्धियों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करें। यह समय है कि हम नकारात्मक छवि के बोझ को उतार फेंकें और सकारात्मकता के प्रकाश में अपनी पहचान को नया रूप दें। जब तक हम अपनी उपलब्धियों को सेलिब्रेट नहीं करेंगे, तब तक समतामूलक समाज का स्वप्न अधूरा रहेगा। प्रो. विवेक कुमार का सम्मान भारत राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक कदम है, और इसे उत्सव का रूप देकर हम एक ऐसे समाज की नींव रख सकते हैं, जहाँ हर शोषित व्यक्ति अपनी प्रतिभा से विश्व को आलोकित कर सके।