43 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

चाणक्य काल्पनिक पात्र है तो चपड़ ऐतिहासिक

चाणक्य और चपड़: ऐतिहासिक सत्य की खोज में एक पड़ताल
भारतीय इतिहास के पन्नों में चाणक्य एक ऐसे पात्र के रूप में उभरता है, जिसे परंपरागत इतिहासकारों और ब्राह्मणवादी विद्वानों ने अत्यधिक महिमामंडित किया है। उनकी कथित रचना अर्थशास्त्र को एक नीतिगत ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसे मनुवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए पाणिनि के व्याकरण की भांति व्यवस्थित रूप से प्रसारित किया गया। किंतु, ऐतिहासिक दृष्टि से गहन शोध करने वाले विद्वानों का मत है कि चाणक्य नामक यह पात्र वास्तव में भारतीय इतिहास में कभी अस्तित्व में नहीं था। यह संभव है कि अर्थशास्त्र जैसा ग्रंथ भी विभिन्न विद्वानों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम हो, जिसे बाद में एक काल्पनिक चरित्र चाणक्य के नाम से जोड़ दिया गया। इस संदर्भ में यह विचारणीय है कि क्या चाणक्य का निर्माण एक सुनियोजित प्रयास था, जो बौद्ध परंपरा और सम्राट अशोक की सांस्कृतिक विरासत को धूमिल करने के उद्देश्य से किया गया?

चपड़: लोक जीवन में रची-बसी ऐतिहासिक स्मृति
उत्तर भारत के लोक जीवन में प्रचलित एक कहावत—“ज्यादा चपड़-चपड़ न करो”—इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करती है। यह कहावत उस स्थिति में प्रयुक्त होती है, जब कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से अपनी विद्वता प्रदर्शित करता है या दूसरों के संवाद में हस्तक्षेप करता है। लोक भाषा में ‘चपड़’ शब्द विद्वता और बुद्धिमत्ता का प्रतीक बन गया है। भाषा विज्ञान के प्रख्यात विद्वान प्रो. राजेंद्र प्रसाद सिंह के अनुसार, यह ‘चपड़’ कोई काल्पनिक नाम नहीं, बल्कि सम्राट अशोक के शिलालेखों—विशेष रूप से ब्रह्मगिरि और जटिंग-रामेश्वरम शिलालेखों—में उल्लिखित एक ऐतिहासिक बौद्ध विद्वान का नाम है। यह तथ्य इस ओर संकेत करता है कि चपड़ न केवल एक विद्वान थे, बल्कि उनकी स्मृति लोक संस्कृति में गहरे तक समाई हुई है।

बौद्ध धम्म पर आघात और ब्राह्मणवादी षड्यंत्र
ऐतिहासिक कालक्रम में पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल को बौद्ध धर्म के पतन का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। इस काल में बौद्ध विहारों को मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया, पुस्तकालयों को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया गया, और बौद्ध विद्वानों को क्रूर दमन का शिकार बनाया गया। किंतु, बौद्ध धम्म की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सशक्त थी कि इसे पूर्णतः मिटाया नहीं जा सका। यह धरोहर लोक जीवन में कहावतों, परंपराओं और मान्यताओं के रूप में आज भी जीवित है। ‘ज्यादा चपड़-चपड़ न करो’ जैसी कहावत इसका जीवंत प्रमाण है, जो बौद्ध विद्वान चपड़ की ऐतिहासिकता को लोक स्मृति में संरक्षित रखती है।

चाणक्य: एक काल्पनिक चरित्र का निर्माण?
इसके विपरीत, चाणक्य के ऐतिहासिक अस्तित्व को प्रमाणित करने वाले पुरातात्विक साक्ष्य या समकालीन दस्तावेज लगभग नगण्य हैं। विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि चाणक्य का चरित्र ब्राह्मणवादी विद्वानों द्वारा रचित एक काल्पनिक कथा मात्र है, जिसका उद्देश्य बौद्ध परंपरा के प्रभाव को कम करना और ब्राह्मणवादी विचारधारा को स्थापित करना था। यह संभव है कि चपड़ जैसे ऐतिहासिक बौद्ध विद्वान की स्मृति को मिटाने के लिए चाणक्य जैसे पात्र का सृजन किया गया हो, ठीक वैसे ही जैसे ब्राह्मणवादी परंपरा में अपनी आवश्यकतानुसार देवताओं और अवतारों की रचना की गई। अर्थशास्त्र को चाणक्य से जोड़कर इसे एक प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ का स्वरूप दे दिया गया, जबकि वास्तव में यह कृति बाद के काल में संकलित हुई हो सकती है।

निष्कर्ष: सत्य की खोज और सांस्कृतिक विरासत
चपड़ और चाणक्य के इस तुलनात्मक विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय इतिहास में सत्य को परत-दर-परत उजागर करने की आवश्यकता है। जहाँ एक ओर चपड़ का उल्लेख अशोक के शिलालेखों और लोक कहावतों में उनकी ऐतिहासिकता को पुष्ट करता है, वहीं चाणक्य का अभाव पुरातात्विक साक्ष्यों और समकालीन संदर्भों में उनके काल्पनिक होने की ओर इशारा करता है। यह विचारणीय है कि ब्राह्मणवादी षड्यंत्रों ने बौद्ध धम्म की समृद्ध विरासत को नष्ट करने का प्रयास किया, किंतु बहुजन संस्कृति ने इसे अपने दैनिक जीवन में संजोकर रखा। ‘चपड़-चपड़’ जैसी कहावतें न केवल एक विद्वान की स्मृति को जीवित रखती हैं, बल्कि उस सांस्कृतिक प्रतिरोध का भी प्रतीक हैं, जो इतिहास के विकृतिकरण के बावजूद अपनी पहचान बनाए रखने में सफल रहा।

इस प्रकार, चाणक्य और चपड़ का यह विमर्श हमें इतिहास के पुनर्लेखन और सांस्कृतिक सत्य की खोज की ओर प्रेरित करता है, ताकि हम अपनी वास्तविक धरोहर को पहचान सकें और उसे संरक्षित कर सकें।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...