35.1 C
New Delhi
Sunday, April 20, 2025

एन दिलबाग सिंह का कॉलम: दलितों के राजनैतिक आन्दोलन की विफलता

बाबासाहेब को कभी काजोलकर ने हरा दिया तो कभी बोरकर ने लेकिन, बाबू जगजीवन राम को हरिजनों ने कभी हारने ही नही दिया.

देश में दलित आन्दोलन और दलित राजनीति की शुरूवात प्रभावी तरीके से 1927-28 से मानी जा सकती है. जब बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर के प्रयासों से इंग्लैंड की अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में अछुतों की सामाजिक और आर्थिक हालात पर रिपोर्ट देने के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजा था.

 गाँधी, कांग्रेस एवं अन्य हिन्दुवादी गुटों ने साइमन कमीशन का जबरदस्त विरोध किया, ताकि ये कमीशन अछुतों की सामाजिक और आर्थिक हालात पर ग्राउन्ड रिपोर्ट ना दे पाये. कमीशन को निष्पक्ष रिपोर्ट देने के लिए उसमें एक भी भारतीय नही रखा गया था. देश में हिन्दुओं और कांग्रेस समेत अन्य गुटों के भारी विरोध के चलते साइमन कमीशन भी चलता बना.

1930, 1931 और 1932 में लंदन मे हुए तीनों गोलमेज़ कांफ्रेस में बाबासाहेब हाजिर हुए लेकिन गाँधी, कांग्रेस और अन्य हिन्दुवादी गुटों की अछुतों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों के मुद्दे पर छल कपट के रवैये ने अछुतों को वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया.

बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर के पृथक निर्वाचन की माँग से परेशान गाँधी की आमरण अनसन की जिद ने गाँधी और अम्बेड़कर को एक मजबुरी का इतिहास थमा दिया. जिसको “पुना पैक्ट” नाम से जानते हैं और जहाँ से शिक्षा और नौकरी आदि में प्रतिनिधित्व के नाम पर दलितों और आदिवासीयों को आरक्षण मिलने पर सहमति की बात हुई.  गाँधी की आमरण अनसन से जान बच गई लेकिन अछुतों ने क्या खो दिया, उसका अहसास आज तक भी नही हैं. अछुतों को गाँधी ने हरिजन नाम दे दिया, हरि को पाकर हरिजन भी खुश. अम्बेड़कर के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक संघर्ष पर कांग्रेस ने हरिजनवादी घोल के नए-नए नेता इन हरि के लिए तड़फते हुए हरिजनों को दिए.

बाबू जगजीवन राम उसी दौर का तेज तर्रार गाँधी का हरिजन नेता था, जो कांग्रेस ने डॉ अम्बेड़कर की काट के तौर पर तैयार कर लिया था.  दलितों का चिंतक सिर्फ चिंतक बन कर ही रह गया, डॉ अम्बेड़कर राजनीति में फेल हो गया और गाँधी का हरिजन नेता दलितों का ताउम्र बड़ा नेता बना रहा.

बाबासाहेब को कभी काजोलकर ने हरा दिया तो कभी बोरकर ने लेकिन, बाबू जगजीवन राम को हरिजनों ने कभी हारने ही नही दिया. डॉ अम्बेड़कर को जलील करने के लिए कांग्रेस ने उसको उसके चपरासी से ही हरवाया था. दलित, आदिवासी कांग्रेस की ऐसी जीत पर फुले नही समा पा रहे थे और डॉ अम्बेड़कर उनकी बुद्धि पर और उनके भविष्य को देखकर शायद ज्यादा परेशान रहने लगे होंगे. दलित और आदिवासियों ने ही बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर की राजनीति को बेमौत मार दिया. डॉ अम्बेड़कर अपने समाज के इस धोखे के साथ इस दुनिया से 1956 में विदा हो गए.

उनकी मौत के बहुत साल बाद कांशीराम नाम का एक बीज फूटा और उन्होने दलित आदिवासी की राजनीति को देश में वहाँ तक फैलाया जहाँ तक बाबासाहेब कभी नही पहुँचा पाये थे. लेकिन, इस बार उनको मायावती के रूप मे एक मजबूत सेनापति भी मिली थी. उनके मिशन को रोकने के लिए फिर हरिजनी घोल वाले अनेक दलित नेता आये, उनमे सबसे ज्यादा मशहुर हुए रामराज. जो रैलीयों के मंचो से ही हिन्दुओं के आराध्य राम के खिलाफ बोलते थे और जिन्होने अपने नाम से राम शब्द तक निकालवाकर अपना नाम रामराज की जगह उदित राज रख लिया था. लेकिन इस बार कोई कांशीराम और मायावती की मजबूत किलेबंदी में घुस ही नही पाया. समय का फेर देखिये यही रामराज/उदितराज हिन्दुत्वी भाजपा की टिकट से 2014 में सांसद चुने गए और 2019 में टिकट कटने से नाराज होकर अब कांग्रेसी हो गए.

अब जब दलित राजनीति 2014 से हासिये में जा रही है और दलित आदिवासी भी मंदिर बनाने निकल ही पड़े हैं, ऐसे में दलित राजनीति को बर्बाद करने के लिए एक और ताबड़तोड़ युवा सामने आया है, जिसका मुख्य टारगेट दलित युवा वर्ग है जो मान्यवर कांशीराम की बनाई हुई पार्टी को बर्बाद करने के लिए उनका ही फोटो लेकर बहनजी को भद्दी- भद्दी गालियाँ दिलवाने में व्यस्त है. कुछ लोगों को लगा था कि ये युवा डॉ अम्बेड़कर और मान्यवर कांशीराम के संघर्ष को आगे लेकर जायेगा लेकिन इसके सपोर्टर तो अक्सर कांग्रेस, अखिलेश यादव, केजरीवाल, तेजस्वी यादव, जयंत चौधरी के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर वोट माँग रहे होते हैं.

मायावती को सत्ता का लालच सच में ही होता तो वो पासवान, अठावले या उदितराज आसानी से बन सकती थी, कौन रोकने वाला था. लेकिन, उन्होने कठिन रास्ता चुना है – डॉ अम्बेड़कर वाला, मान्यवर कांशीराम वाला फिर ये समाज इनकी पीठ मे छुरा क्यों नही घोपेगा.

इस समाज को गाँधी का हरिजन बनना ही जमता है, डॉ अम्बेड़कर या मान्यवर कांशीराम बनना आता तो 70 -75 साल का समय कम नही होता. बेहतर है कि तुम हरिजन ही रहो, मंदिर ही बनाओ, कावड़ ही ढ़ोवो और केकड़े ही बनो – तुम्हारा उद्धार करने के लिए तो एक दिन राम जरूर आयेगें, बस तुम हजार दो हजार साल तक मरना मत.

(लेखक: एन दिलबाग सिंह; यह लेखक के अपने विचार हैं)

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

बहुजन एकता और पत्रकारिता का पतन: एक चिंतन

आज भारतीय पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रसातल की गहराइयों में समा चुका है। एक ओर जहाँ पत्रकार समाज में ढोंग और पाखंड के काले...

बसपा ने मनाया बाबासाहेब का जन्मोत्सव और पार्टी का स्थापना दिवस

खैरथल: बहुजन समाज पार्टी जिला खैरथल ईकाई ने राष्ट्रनिर्माता, विश्वविभूति बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेड़कर का 134वां जन्मोत्सव किशनगढ़ बास मौजूद होटल ब्लू मून में...

बहुजन आंदोलन: नेतृत्व मार्गदाता है, मुक्तिदाता नहीं

बहुजन आंदोलन की पावन परंपरा का प्रारंभ जगद्गुरु तथागत गौतम बुद्ध से माना जाता है। इस ज्ञानदीप्त परंपरा को सम्राट अशोक, जगद्गुरु संत शिरोमणि...

हुक्मरान बनो: बहुजन समाज के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण

भारतीय राजनीति के विशाल पटल पर बहुजन समाज की स्थिति और उसकी भूमिका सदा से ही विचार-विमर्श का केंद्र रही है। मान्यवर कांशीराम साहेब...

भटकाव का शिकार : महार, मुस्लिम और दलित की राजनीतिक दुर्दशा

स्वतंत्र महार राजनीति का अंत महाराष्ट्र में महार समुदाय, जो कभी अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए जाना जाता था, आज अपने मुद्दों से भटक...

जगजीवन राम: सामाजिक न्याय और राजनीतिक नेतृत्व की विरासत

जगजीवन राम, जिन्हें प्यार से "बाबूजी" के नाम से जाना जाता था, भारतीय राजनीति, स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय आंदोलनों में एक प्रमुख व्यक्ति...

बौद्ध स्थलों की पुकार: इतिहास की रोशनी और आज का अंधकार

आज हम एक ऐसी सच्चाई से पर्दा उठाने जा रहे हैं, जो न केवल हमारी चेतना को झकझोर देती है, बल्कि हमारे समाज की...

वक्फ बिल से बहुजन समाज पार्टी सहमत नहीं: मायावती

Waqf Bill: 2 अप्रैल 2025 को संसद नीचले सदन यानि लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया गया. जिसे घंटों की चर्चा के बाद...

ओबीसी की वास्तविक स्थिति और उनकी राजनीतिक दिशा

ओबीसी समाज में लंबे समय से यह गलतफहमी फैलाई गई है कि वे समाज में ऊंचा स्थान रखते हैं, जबकि ऐतिहासिक और सामाजिक वास्तविकता...

भारत का लोकतंत्र और चुनावी सुधार: आनुपातिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता

प्रस्तावना: विविधता और जाति व्यवस्था भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ अनेक भाषाएँ, धर्म और हजारों जातियाँ सह-अस्तित्व में हैं। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में...

इतिहास का बोझ और लोकतांत्रिक भारत

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका मार्गदर्शन भारत का संविधान करता है। संविधान ने स्पष्ट रूप से यह सिद्धांत स्थापित किया है कि 15...

सपा का षड्यंत्र और दलितों की एकता: एक चिंतन

भारतीय राजनीति का परिदृश्य एक विशाल और जटिल कैनवास-सा है, जहाँ रंग-बिरंगे सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने हेतु विभिन्न दल सूक्ष्म से...