बहुजन आंदोलन: वैश्विक पहचान और माननीया बहनजी का अतुलनीय योगदान
आज बहुजन आंदोलन ने वैश्विक पटल पर अपनी एक अनुपम पहचान स्थापित कर ली है। इस आंदोलन की नींव तथागत बुद्ध के काल से ही रखी गई थी, जिसे समय-समय पर सम्राट अशोक, जगतगुरु संत शिरोमणि गुरु रैदास, कबीर दास, ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे महानायकों और महानायिकाओं ने अपने अथक परिश्रम से सींचा। बीसवीं सदी में परम पूज्य बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसे एक सुनिश्चित दिशा और संपूर्ण रूप प्रदान किया। उनके इस पावन मिशन को आगे बढ़ाने में मान्यवर कांशीराम साहेब और माननीया बहनजी का योगदान अतुलनीय रहा है। विशेष रूप से माननीया बहनजी ने 1976 से लेकर आज तक बाबासाहेब के सपनों के प्रति अटूट निष्ठा के साथ बहुजन समाज के घर-घर और उनके जहन में उनकी स्वीकृति को स्थापित कर एक नया इतिहास रचा है। इस लेख में बहुजन आंदोलन के वैश्विक प्रभाव, इसके ऐतिहासिक विकास और माननीया बहनजी के योगदान को प्रस्तुत किया गया है।
परिचय: एक आंदोलन का उदय
बहुजन आंदोलन केवल एक सामाजिक परिवर्तन की लहर नहीं, अपितु समता, स्वतंत्रता और बंधुता का वह मशाल है जो सदियों से शोषित-उपेक्षित समाज को प्रकाशित करता आया है। तथागत बुद्ध की करुणा और समानता की शिक्षाओं से प्रारंभ हुआ यह आंदोलन, सम्राट अशोक के शासनकाल में एक व्यवस्था के रूप में फला-फूला। आगे चलकर संत रैदास, कबीर दास, ज्योतिबा फुले और छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे युगपुरुषों ने इसे अपनी विचारधारा और कर्मठता से समृद्ध किया। बीसवीं सदी में बाबासाहेब ने इसे संवैधानिक और राजनीतिक आधार प्रदान कर एक नई ऊंचाई दी, जिसे मान्यवर कांशीराम साहेब और माननीया बहनजी ने जन-जन तक पहुँचाया। आज यह आंदोलन वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना चुका है, और इसका श्रेय माननीया बहनजी के नेतृत्व को जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: नींव से शिखर तक
बहुजन आंदोलन की जड़ें गहरी और विस्तृत हैं। तथागत बुद्ध ने सर्वप्रथम “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” का संदेश दिया, जो इस आंदोलन का मूलमंत्र बना। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के माध्यम से सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया। मध्यकाल में संत रैदास और कबीर दास ने अपनी रचनाओं से जातिवाद और ऊँच-नीच की दीवारों को तोड़ने का प्रयास किया। आधुनिक काल में ज्योतिबा फुले ने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में क्रांति लाई, तो छत्रपति शाहूजी महाराज ने आरक्षण की नींव रखकर शोषित वर्गों को सशक्त किया। बाबासाहेब ने संविधान के माध्यम से इस आंदोलन को एक ठोस आधार दिया और राजनीतिक सत्ता को सामाजिक परिवर्तन की “मास्टर चाबी” बताया। इस ऐतिहासिक यात्रा को माननीया बहनजी ने नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की।
माननीया बहनजी का योगदान: एक युग का निर्माण
माननीया बहनजी ने 1976 से बाबासाहेब के मिशन को अपने जीवन का ध्येय बनाया। मान्यवर कांशीराम साहेब के मार्गदर्शन में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के माध्यम से बहुजनों को संगठित किया। यह कार्य सरल नहीं था। भारत जैसे विविधता और जातियों में बँटे समाज को एक मंच पर लाने में 18 वर्षों का अथक परिश्रम लगा। राजनीतिक समीकरणों को साधते हुए, सैद्धांतिक लक्ष्यों को साकार करने के लिए उन्होंने क्रमचय-संचय की नीति अपनाई। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में पहली बार वंचित समाज की सत्ता स्थापित हुई।
सत्ता प्राप्ति के पश्चात बहनजी ने बहुजन महानायकों, नायिकाओं, संतों और क्रांतिकारियों को सम्मानित स्थान दिलाया। विश्वविद्यालय, कॉलेज, सड़कें, भवन और संस्थानों के नाम इन महान व्यक्तित्वों के नाम पर रखे गए। स्कूलों के पाठ्यक्रम में इनके योगदान को शामिल कर बच्चों को बहुजन इतिहास से परिचित कराया गया। “जय भीम” का उद्घोष आज बहुजन समाज के आत्मगौरव का प्रतीक बन गया है, और यह सब बहनजी की सत्ता और नेतृत्व का प्रतिफल है।
राजनीतिक सत्ता: सामाजिक परिवर्तन की गुरुकिल्ली
बाबासाहेब ने राजनीतिक सत्ता को सामाजिक परिवर्तन का सबसे सशक्त माध्यम माना और इसे “मास्टर चाबी” कहा। मान्यवर साहेब ने इसे “गुरुकिल्ली” की संज्ञा दी। बहनजी ने इसी विचार को अपनाकर बहुजन समाज में जागरूकता लाई और उनकी राजनीतिक पहचान को विश्व पटल पर स्थापित किया। भारत की जटिल राजनीति में 24 कैरेट की शुद्धता की अपेक्षा करना अव्यावहारिक है, किंतु बहनजी ने इसे एक माध्यम के रूप में उपयोग कर समतामूलक समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। उत्तर प्रदेश में सत्ता प्राप्ति इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ बहुजनों की हुकूमत ने सामाजिक ढांचे को बदल दिया।
सामाजिक परिवर्तन: बहुजन समाज का नवजागरण
बहनजी के नेतृत्व में बहुजन समाज में अभूतपूर्व परिवर्तन आया। शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों का निर्माण हुआ। सांस्कृतिक स्तर पर बाबासाहेब और अन्य महानायकों को जन-जीवन में शामिल किया गया। शादी-विवाह, अम्बेडकर मेला, बुद्ध पूर्णिमा, ज्योतिबा फुले जन्मोत्सव जैसे आयोजनों ने बहुजन संस्कृति को सशक्त किया। इन अवसरों पर चर्चा, सेमिनार और नाटकों के माध्यम से बाबासाहेब की वैचारिकी जन-जन तक पहुँची। यह साहस और प्रेरणा बहनजी की हुकूमत का ही परिणाम है।
आलोचना का जवाब: सत्य की विजय
बहुजन आंदोलन और बहनजी के खिलाफ आलोचना कोई नई बात नहीं है। कुछ लोग बाबासाहेब के मिशन को समझे बिना प्रश्नचिह्न लगाते हैं। किंतु बहनजी ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक सत्ता उनके लिए अंतिम लक्ष्य नहीं, अपितु समतामूलक समाज की स्थापना का माध्यम है। मनुवादी संगठनों से प्रेरित आलोचक बहुजनों को गुमराह करने का प्रयास करते हैं, परंतु बहनजी का कार्य और उनकी निष्ठा इस आलोचना को खारिज करती है। यह आंदोलन सत्य और न्याय के पथ पर अडिग है।
निष्कर्ष: एक श्रेष्ठ भारत का स्वप्न
बहुजन आंदोलन आज वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना चुका है, और माननीया बहनजी इसके प्राण हैं। बाबासाहेब और मान्यवर साहेब के पश्चात बहनजी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा। वे न केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व हैं, बल्कि समतावादी आंदोलन की वाहक और संवैधानिक मूल्यों की प्रहरी हैं। अब यह देश का दायित्व है कि उनके नेतृत्व में एक सुंदर, समृद्ध, सशक्त और सुरक्षित भारत का निर्माण किया जाए। बहुजन समाज का यह कारवां, बहनजी के मार्गदर्शन में, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।