विचारधारा और समीकरण : बहुजन समाज के समक्ष बसपा का दृष्टिकोण
हर राजनैतिक दल की एक विचारधारा होती है, जो उसकी कार्यशैली, रीति-नीति और कैडर निर्माण को आकार देती है। यह विचारधारा दल के उद्देश्यों को स्पष्ट करती है और उसके मार्ग को दिशा प्रदान करती है। किंतु भारत जैसे विविधताओं से परिपूर्ण देश में केवल एक विचारधारा के बल पर सत्ता प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। मतदाता आपके विचारों का समर्थक हो, यह आवश्यक नहीं। प्रत्येक चुनाव एक प्रयोग है, जिसमें सफलता मुख्यतः राजनैतिक समीकरणों पर निर्भर करती है। यदि आपका क्रमचय और संचय सटीक हुआ, तो सत्ता आपके हाथ में होगी; अन्यथा आप विपक्ष में या उससे भी बाहर रह जाएँगे। यह तथ्य भारतीय लोकतंत्र की जटिल प्रकृति को रेखांकित करता है।
वर्तमान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संदर्भ में बहुजन समाज में यह धारणा प्रचलित है कि उसे उसकी विचारधारा—हिंदुत्व—के कारण सत्ता प्राप्त हुई। यह अंशतः सत्य है। हिंदुत्व निस्संदेह भाजपा की पहचान है, जो उसकी रीति-नीति और कार्यशैली को निर्धारित करता है। यह विचारधारा हिंदू समाज को एकजुट कर, उन्हें एक साझा लक्ष्य की ओर प्रेरित करती है। किंतु सत्ता केवल विचारधारा का परिणाम नहीं, बल्कि विभिन्न समीकरणों का प्रतिफल है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत और अन्य हिंदू बहुल, मुस्लिम-विरोधी क्षेत्रों में भाजपा कट्टर हिंदूवादी रुख अपनाती है, गौवध पर प्रतिबंध लगाती है, क्योंकि वहाँ का हिंदू समाज मुस्लिम-विरोधी भावनाओं से संचालित है। फिर भी, भाजपा ने अपनी सरकार में मुस्लिम न्यायमूर्तियों और मंत्रियों की नियुक्ति की है (स्रोत: इंडिया टुडे, 15 जुलाई 2019)। क्या यह हिंदुत्व का उल्लंघन है, या राजनैतिक समीकरण का हिस्सा?
इसी भाजपा का रुख गोवा और पूर्वोत्तर में भिन्न हो जाता है। गोवा में वह बीफ का समर्थन करती है, और ईसाई बहुल पूर्वोत्तर में उनकी सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करते हुए उनकी वेषभूषा अपनाती है। क्या यह गाय और हिंदुत्व का परित्याग है, या समीकरण की चतुराई? कश्मीर में मुस्लिम-विरोधी नफरत का प्रतीक बनी भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाई (स्रोत: द हिंदू, 4 अप्रैल 2016)। क्या यह विचारधारा से विचलन है, या शुद्ध राजनैतिक रणनीति? इसी प्रकार, नरेंद्र मोदी ओबीसी समुदाय के बीच स्वयं को ओबीसी घोषित करते हैं, दलितों के बीच वाल्मीकि समाज का पैर धोते हैं, आंबेडकर जन्मोत्सव पर नीले वस्त्र पहनते हैं, और बौद्ध समाज के बीच कुशीनगर में बुद्ध को नमन करते हैं (स्रोत: पीआईबी, 20 अक्टूबर 2021)। क्या यह हिंदुत्व से भटकाव है, या समीकरण की कला?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने आराध्य हनुमान को दलित घोषित कर दलितों को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। क्या यह उनकी विचारधारा से दूरी है, या समीकरण का हिस्सा? इन सभी कदमों के बावजूद, भाजपा के हिंदू समर्थक और बहुजन समाज दोनों यह मानते हैं कि भाजपा अपनी विचारधारा पर अडिग है। किसी हिंदू ने इन समीकरणों का विरोध नहीं किया, बल्कि हर अवसर पर भाजपा का समर्थन किया। इसका कारण यह है कि हिंदू समाज समझता है कि विचारधारा उनकी रीति-नीति और कार्यशैली को आकार देती है, किंतु सत्ता समीकरणों से ही प्राप्त होती है।
आम आदमी पार्टी (आप) का उदाहरण भी रोचक है। इसे हिंदूवादी और आरएसएस की सहयोगी माना जाता है, जिसकी रीति-नीति साम्प्रदायिक और मनुवादी है। फिर भी, इसने बाबासाहेब और भगत सिंह के नाम का उपयोग कर समीकरण साधा। नोटों पर गणेश-लक्ष्मी की माँग इसकी विचारधारा को दर्शाती है, जबकि आंबेडकर और भगत सिंह के नाम पर अपील इसके समीकरण को (स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया, 26 अक्टूबर 2022)। क्या यह विचारधारा से भटकाव है? नहीं, क्योंकि आप के समर्थक इसे समीकरण की आवश्यकता मानते हैं और केजरीवाल के साथ अडिग हैं।
अब बहुजन समाज की बात करें। इसका अधिकांश ओबीसी और गैर-जाटव एससी समुदाय हिंदू प्रभाव में है। बसपा धर्म, जाति और क्षेत्र जैसे संकीर्ण मुद्दों के बजाय समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे व्यापक मानवीय मूल्यों के लिए संघर्ष करती है। यह बुद्ध और आंबेडकर की विचारधारा पर आधारित है, जो सर्वजन के विकास की बात करती है। फिर भी, बहुजन समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी “सर्वजन हिताय” के नारे को विचारधारा से भटकाव मानते हैं और इसकी आलोचना करते हैं। यह दृष्टिकोण एक गहरे भ्रम को दर्शाता है।
हमारा मानना है कि बहुजन समाज को यह समझना होगा कि बसपा एक आंदोलन है, जिसके विभिन्न चरण और माँगें होती हैं। विचारधारा इसकी रीति-नीति और कार्यशैली को निर्धारित करती है, किंतु हर मतदाता इससे सहमत हो, यह आवश्यक नहीं। क्या भाजपा का हर वोटर हिंदुत्व का समर्थक है? नहीं। इसलिए भाजपा ने विविधताओं वाले देश में समीकरण साधे। बसपा की चारों पूर्व सरकारें भी केवल विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि मान्यवर कांशीराम और बहनजी द्वारा समयानुकूल समीकरणों का परिणाम थीं (स्रोत: उत्तर प्रदेश विधानसभा अभिलेख, 1995)। किंतु सत्ता प्राप्त होने पर बहनजी ने बुद्ध और आंबेडकर की विचारधारा के अनुरूप संविधानसम्मत शासन किया, समतामूलक समाज के लिए मार्ग प्रशस्त किया, और वंचितों में आत्मसम्मान जागृत किया। यह बसपा की विचारधारा का प्रमाण है।
अंत में, यह प्रश्न विचारणीय है : जब भाजपा हिंदुत्व के विपरीत “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देकर भी अपनी विचारधारा पर अडिग है, तो बसपा—जिसने चार सरकारों में समतामूलक समाज के लिए कार्य किया—“सर्वजन” का नारा देकर बुद्ध, आंबेडकर और कांशीराम की विचारधारा से कैसे भटक सकती है? बहुजन समाज को यह समझना होगा कि विविधताओं वाले देश में सत्ता केवल विचारधारा से नहीं, बल्कि समीकरणों से मिलती है। बसपा का “सर्वजन” समीकरण उसकी विचारधारा का विस्तार है, न कि विचलन।
स्रोत और संदर्भ :
- “मुस्लिम मंत्रियों की नियुक्ति,” इंडिया टुडे, 15 जुलाई 2019।
- “कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन,” द हिंदू, 4 अप्रैल 2016।
- “कुशीनगर में बुद्ध स्थल नवीकरण,” प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी), 20 अक्टूबर 2021।
- “नोटों पर गणेश-लक्ष्मी की माँग,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 26 अक्टूबर 2022।
- “बसपा सरकार का समीकरण,” उत्तर प्रदेश विधानसभा अभिलेख, 1995।
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर, “बुद्ध और समता,” संकलित रचनाएँ, खंड 3, 1950।