बसपा बनने की प्रक्रिया को देखे तो आप पाएंगे कि बहन जी के पास शुरुआती संघर्ष में कोई फार्च्यूनर गाड़ी नही थी. वो पैदल चली है, फिर साईकल पर चली है फिर मान्यवर साहब ने उनको एक पुरानी जीप खरीद के दी, जो लगभग खराब ही रहती थी.
हरियाणा में मुझे पुराने संघर्षशील लोग मिलते है बताते है की पड़ोस गांव या शहर में बहन जी आई थी, हमे पता लगा तो उनके रहने खाने की व्यवस्था हमने अपने गांव में की और हम बहन जी को साईकल पर बैठा के गांव लाये. लोग बताते है कि बहन जी जब हरियाणा की प्रभारी थी तो अकेली ही बिना साधन संसाधन के हरियाणा में घूम घूमकर संगठन निर्माण का कार्य करती थी. कोई स्थाई कार्यालय नही था, ना रहने का ठिकाना ना खाने पीने का। फिर भी बहन ने अथक मेहनत से संगठन निर्माण के कार्य को लगातार आगे बढ़ाया.
सोशल मीडिया नही था जो बहन जी को एक आदर्श या हीरो के रूप में प्रस्तुत करता। जिससे लोग उनकी सहायता करते. बहन जी पूर्ण रूप से समाज के लिए काम करती थी ना कि लाइक ओर कॉमेंट के लिए फोटो खिंचवाती थी. सोशल मीडिया पर युवाओ की कोई फौज नही थी जो जबरदस्ती बहन जी को नेता घोषित करते और उनके लिए भीड़ जुटाते.
कोई खुली छत की गाड़ी पर बैठकर हाथ हिलाकर सोशल मीडिया में फोटो डालकर बहन जी नेता नही बनी है, बहन जी अपने संघर्ष के दम पर नेता बनी है. आजकल की मीडिया द्वारा रोपित खरपतवार का अगर कोई बहन जी से मुकाबला करने की कोशिश करता है तो मुझे वो मूर्ख लगता है. मुछो पे जैल लगाकर मरोड़ी देने से ओर नीला दुपट्टा डालने से लोग आजकल नेता बन रहे है, बीच आंदोलन में लाठीचार्ज के बीच गलूकोज लगाए पड़े नेता है. ये नेता संघर्ष की भट्टी में नही बल्कि सोशल मीडिया में तपकर बने नेता है.
बहन जी उस समय रासुका के तहत जेल गई थी. समय व हालात को देखे तो बहन जी बराबर का नेता वर्तमान समय मे कोई नही है. इन संघर्षो को देखकर ही मान्यवर कांशीराम साहब ने अपनी परम शिष्या बहन जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. चंद चंदा चोर लोग कहते है की बहन जी बाहर नही निकलती, उनको अध्यन्न करना चाहिए कि जब तुम दुनिया मे नही आये थे तब बहन जी मान्यवर के नेतृत्व में तुम्हारे लिए संघर्ष कर रही थी.
बहन जी हमारी आदर्श है और हमेशा रहेगी. हमने संघर्ष को चुना है ओर मीडिया प्रायोजित प्रोडक्ट को नकारा है.
(लेखक: संजय बौद्ध जी, ये उनके निजी विचार है)