प्रकृति का शाश्वत सत्य है, परिवर्तन. “Nothing is permanent except CHANCE.” बहुजन समाज पार्टी में हो रहा बदलाव भी इसका अपवाद नहीं हो सकता. यह हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हम इस बदलाव को किस नजरिए से देखते हैं.
14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना से पूर्व मान्यवर कांशीराम साहब ने बामसेफ और डी एस 4 की स्थापना की थी. वर्ष 1982 में “बामसेफ” के आगरा में आयोजित एक क्षेत्रीय अधिवेशन में (जिसमें एक बामसेफ कार्यकर्ता के रूप में मुझे भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था) अनेक निष्क्रिय तथा नकारात्मक सोच के कार्यकर्ताओं से दुखी होकर उन्होंने कहा था कि हमें अपने संगठन में “Dead Wood” यानी मृत काष्ठ की पहचान करके उस सडे हुए हिस्से को काट कर अलग करना होगा ताकि वह बाकी पेड़ में नुकसान न पहुंचा सके. एक कुशल और जागरूक माली को अपने लगाये पेड़ में मृत काष्ठ की पहचान कर काट-छांट करते रहना चाहिए ताकि पेड़ स्वस्थ रहकर बढता रहे. इसी अधिवेशन में उन्होंने एक बात और कही थी, और वह यह थी कि कई बार “न तो मरीज मरता है, और न चारपाई छोड़ता है,” उनका कहने का मतलब साफ था कि किसी भी पद पर चिपके रहकर उसके अनुसार जिम्मेदारी को न निभाना, इस तरह से भी संगठन को नुक़सान पहुंचता है.
बामसेफ के अनेक साथी जिनको मान्यवर कांशीराम साहब ने खुद मेहनत से तैयार किया था, सीधे राजनीति में इतनी जल्दी कूदने से सहमत नहीं थे. लेकिन साहब शुरू से ही “Political Power is the Master Key by which You can open each and every Lock” के फार्मूले पर काम कर रहे थे . जैसा कि हम सब जानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी बनने से पूर्व ही डी एस 4 ने मई 1982 में हरियाणा का विधानसभा चुनाव इस नारे के साथ लड़ा था कि “हम टिकट बनाना सीखेंगे“. हमारा समाज दूसरी पार्टियों के आगे नाक रगड़ता है, लेकिन भागीदारी के हिसाब से उसको टिकट नहीं मिलते. जानने वाले जानते हैं कि बड़ी संख्या में उस समय के दिग्गज रहे मान्यवर कांशीराम साहब के नजदीकी बामसेफ के नेता साहब को बहुत बड़ा धोखा देकर छोड़कर चले गए, जिन्होंने बाद में अपनी-अपनी “रजिस्टर्ड बामसेफ” बनाने का काम किया.
आज के समय में यह सब इसलिए लिखने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि जो कुछ आज बहन कुमारी मायावती जी को लेकर कहा जा रहा है कि बसपा से सभी बड़े नेता बहनजी से अलग हो चुके हैं, तो यह पहली बार नहीं हो रहा है. दलित एवं पिछड़े समाज के मूवमेंट को चलाना कभी भी आसान नहीं रहा है.
सबसे नजदीकी रहने वाले लोगों ने ही मान्यवर कांशीराम साहब को धोखा दिया था और ऐसा ही बहनजी के साथ भी होता रहा है. साहब ने बहनजी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला उनके समर्पण, त्याग और प्रशासनिक क्षमताओं को जांच परखकर ही लिया था, हांलांकि उनका यह फैसला भी बहुत से लोगों के गले नहीं उतरा था.
बहनजी ने मूवमेंट के हित में ही यह घोषणा की थी कि उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार से नहीं होगा और लम्बे समय से इस ओर ध्यान देकर लगातार कोशिशें भी की गयीं थी, लेकिन कोई भी बहनजी के विश्वास की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका. ऐसे में बहुजन समाज में जन्मे अनेकों महापुरुषों के मिशन और मूवमेंट को निरन्तर जारी रखने के लिए मजबूरी में ही अपने ही परिवार से ताल्लुक रखने वाले भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना पड़ा है, हांलांकि ऐसी उम्मीद है और कामना भी है कि वे दीर्घायु हों तथा अभी लम्बे समय तक बसपा को मुख्य रूप से बहन कुमारी मायावती जी का ही नेतृत्व मिलता रहे. उत्तराधिकारी घोषित करने का निर्णय इसलिए लिया गया है ताकि भविष्य में अभी से तैयार द्वितीय पंक्ति के नेतृत्व को जिम्मेदारी संभालने में बाधाएं पैदा न हो सकें. इस तरह की आशंकाओं को विराम लगने के साथ ही समाज पूरे विश्वास और ऊर्जा के साथ निरन्तर भविष्य की लम्बी लड़ाई लड़ने में सक्षम बना रहेगा.
(लेखक: सोशल मीडिया से प्राप्त लेख)