प्रोफेसर विवेक कुमार : हाशिये से विश्व फलक तक का सकारात्मक संनाद्ध यात्रा
लखनऊ की धरती से एक बालक, जिसकी अंग्रेजी टूटी-फूटी थी, ने अपनी मेधा और मेहनत के बल पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी. की उपाधियाँ अर्जित कीं और वहीं प्रोफेसर बनकर विश्व स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की। जेएनयू में प्रवेश के समय छात्रावास न मिलने के कारण उसे गाजियाबाद में किराये का कमरा लेना पड़ा। दूरी अधिक होने के फलस्वरूप प्रातः 6 बजे निकलना पड़ता था, ताकि 9 बजे की कक्षा में उपस्थित हो सके। भोजन की समुचित व्यवस्था न होने से भी उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, यद्यपि मित्रों के साथ कभी-कभी टिफिन साझा हो जाता था। हाशिये के समाज की कथा ऐसी ही होती है—खुद कुआँ खोदकर जल पीना पड़ता है। अभिजात्य वर्ग के लिए यह सब सहज प्रतीत हो सकता है, किन्तु हाशिये के समाज के बच्चों के लिए राष्ट्रीय राजधानी में जेएनयू जैसे संस्थान में आना, रहना, और पढ़ना सरल न था। यह बालक बहुजन आंदोलन, अपनी परिश्रम और विवेकशीलता के बल पर आज प्रोफेसर विवेक कुमार के रूप में विख्यात हो चुका है, जिसने विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
प्रोफेसर विवेक कुमार ने अकादमिक जगत को 85 पीएच.डी. और एम.फिल. विद्वान प्रदान किए हैं। वे जेएनयू के अतिरिक्त अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों की ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में संनाद्ध हैं। उनके शिष्य न केवल भारत में, अपितु यूरोप और अमेरिका के अनेक देशों में प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कर रहे हैं। समाजशास्त्र की दुनिया में उन्होंने प्रश्न उठाया—“समाजशास्त्र कितना समतावादी है?”—जिससे एक नवीन विमर्श का सूत्रपात हुआ और समाजशास्त्र में एक नया आयाम जुड़ा। उनकी कविता ‘समाजशास्त्र की दिशा एवं दशा’ (15 मार्च 2023 को रचित) में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्गों संग नारी विमर्श को रेखांकित किया गया है। वे निरंतर युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं, ताकि वे भारत राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक भागीदारी निभा सकें।

प्रोफेसर विवेक कुमार अनेक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रिकाओं के सदस्य और संपादक हैं। उनके नेतृत्व में जेएनयू के ‘Centre for the Study of Social System’ को विश्व रैंकिंग में 68वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। इससे पूर्व भी उनके कुशल संनाद्धत्व में यह संस्थान दो बार विश्व रैंकिंग में सम्मिलित हो चुका है। यह उपलब्धि सामान्यजन को उनकी व्यक्तिगत सफलता मात्र प्रतीत हो सकती है, किन्तु अकादमिक जगत के साथ-साथ अम्बेडकरी आंदोलन के संदर्भ में वे बाबासाहेब और मान्यवर कांशीराम के विचारों को अपने शोधपत्रों, पुस्तकों और व्याख्यानों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। जिस वंचित समाज से वे उद्भूत हुए, वहाँ समतावादी आंदोलन में उनकी सृजनात्मक छाप, युवाओं को सकारात्मक एजेंडा से जोड़ना, और सीमित संसाधनों वाले बहुजन समाज के युवाओं को राष्ट्र निर्माण से अवगत कराना अनुपम है। इस दृष्टिकोण से उनके नेतृत्व में प्राप्त विश्व रैंकिंग (68वाँ स्थान) केवल उनकी ही नहीं, अपितु भारत, विशेषकर हाशिये के समाज की उपलब्धि है। यह हाशिये के समाज के लिए गर्व और उत्सव का विषय है।
अकादमिक क्षेत्र के साथ-साथ अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति उनका समर्पण इस बात का प्रमाण है कि देश के किसी कोने से जेएनयू पहुँचने वाला हाशिये का कोई भी छात्र गर्व से कहता है—“चलो देखा जाएगा, विवेक सर तो हैं ही।” यदि किसी छात्र को अपने दस्तावेज प्रमाणित करवाने हों, तो वह निर्भीक होकर उनके कक्ष में चला जाता है। जब वे कहते हैं, “हम आपको तो जानते नहीं, कैसे प्रमाणित करें?” तो छात्र दृढ़ विश्वास के साथ उत्तर देते हैं, “तो क्या हुआ, हम तो आपको जानते हैं।” यह जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में उनकी उपस्थिति का अर्थ है। उनकी मौजूदगी हाशिये के समाज के लोगों को निश्चिंत करती है। जनता का उन पर यह अटूट विश्वास उनकी अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता और सरल स्वभाव का परिणाम है।
उन्होंने अनेक ऐसे छात्रों की सहायता की है, जिन्हें यूरोप के विश्वविद्यालयों में अध्ययन का अवसर तो मिला, किन्तु छात्रवृत्ति समय पर न मिलने से संकट उत्पन्न हुआ। उनके एक निवेदन पर प्रोफेसर विवेक कुमार ने लाखों रुपये तत्काल हस्तांतरित किए। यूरोप जाने वाले छात्रों के लिए समुचित व्यवस्था होने तक उनके भोजन और आवास में भी सहयोग किया। यह सब करना सहज नहीं, किन्तु उनके लिए यह समाज के प्रति ‘Pay Back to Society’ की पवित्र नीयत और अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति अटल निष्ठा का प्रमाण है।
वे बाबासाहेब और मान्यवर साहेब के समतामूलक समाज सृजन और भारत राष्ट्र निर्माण के लिए संघर्षरत बहुजन आंदोलन के एक सशक्त विद्वान और स्तंभ हैं। आज जब बहुजन समाज का अधिकांश हिस्सा नकारात्मकता की चपेट में प्रतिक्रियावादी बन गया है, ऐसे नाजुक समय में वे मान्यवर साहेब के सकारात्मक एजेंडे को केंद्र में रखकर बहुजन समाज को आंदोलन की पटरी पर लाने हेतु संनाद्ध हैं। प्रतिक्रियावादियों द्वारा फैलाई गई नकारात्मकता के जाल को भेदकर वे सकारात्मक कथानक रच रहे हैं, जिससे बहुजन आंदोलन नवीन ऊर्जा से संनाद्ध हो रहा है। उदाहरणार्थ—“बाबासाहेब भारत राष्ट्र निर्माता हैं। आरक्षण राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है। आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।” इस सकारात्मक और तथ्यपरक कथानक के माध्यम से उन्होंने बहुजन आंदोलन को मान्यवर साहेब की मंशा के अनुरूप दिशा प्रदान की है।
आगे, बहुजन आंदोलन के आदर्शों, विशेषकर धम्म आधारित जीवन शैली को व्यक्तिगत जीवन में अपनाने के संदर्भ में उनका स्पष्ट कथन है—“बहुजन समाज का मनोरंजन और उनके जीवन के संस्कार (जैसे विवाह, नामकरण, जन्मदिवस आदि) भी विचारधारा और धम्म पर आधारित होने चाहिए। यदि सभी बहुजन इसका अनुसरण करें, तो इस समाज का आत्मविश्वास बढ़ेगा और इसकी सांस्कृतिक पूँजी समृद्ध होगी।” उनके कुशल नेतृत्व में ‘Centre for the Study of Social System, JNU’ को विश्व रैंकिंग में 68वाँ स्थान प्राप्त होने पर ‘Indian Sociological Society’ ने उन्हें बधाई प्रेषित की है। यह उपलब्धि देश और समाज के लिए गर्व और प्रेरणा का विषय है। यह दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और नारी समाज के लिए उत्सव और विचार-विमर्श का अवसर है।
स्रोत संदर्भ :
- प्रोफेसर विवेक कुमार की शैक्षिक यात्रा और उपलब्धियाँ : जेएनयू के आधिकारिक अभिलेख, उनके व्यक्तिगत साक्षात्कार, या शोध प्रोफाइल से संकलित।
- कविता ‘समाजशास्त्र की दिशा एवं दशा’: प्रोफेसर विवेक कुमार द्वारा 15 मार्च 2023 को रचित।
- अकादमिक योगदान : ‘Centre for the Study of Social System, JNU’ की विश्व रैंकिंग और उनके शोधपत्रों का उल्लेख, जो विश्वविद्यालय की वेबसाइट या QS World University Rankings से लिया गया।