“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह विचार अपने समाज, समुदाय, और देश के प्रति कर्तव्यबोध से जुड़ा है, जिसमें व्यक्ति अपने ज्ञान, संसाधन और समय का उपयोग समाज के हित में करता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज यह पावन विचार कुछ तथाकथित “सामाजिक संगठनों” और “सामुदायिक मंचों” के लिए एक धंधे का माध्यम बनता जा रहा है। वे इस नारे को भावनात्मक ढाल बनाकर मासूम जनता से चंदा उगाहते हैं और कथित सेवाकार्य के नाम पर लोगों को ठगते हैं।
1. आदर्श और वास्तविकता का अंतर
“Pay Back to Society” का मूल भाव है — समाज से जो लिया है, उसे समाज को लौटाना। यह विचार उस नैतिकता से प्रेरित है जो कहता है कि शिक्षा, अवसर, ज्ञान और संसाधनों पर समाज का हिस्सा होता है और जब व्यक्ति सक्षम हो जाए, तो उसे यह कर्ज लौटाना चाहिए। लेकिन आज यह नारा अक्सर एक आवरण बन चुका है, जिसके पीछे कई संगठन अपने निहित स्वार्थ छिपाते हैं।
2. संगठनों की चंदा संस्कृति: सेवा या व्यापार?
आज कई संगठन — विशेषकर वे जो नौकरी, शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षा या सामाजिक सेवा के नाम पर चलते हैं — “Pay Back to Society” के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपये का चंदा इकट्ठा करते हैं। ये लोग भावनात्मक अपील करते हैं कि “आपका छोटा सा सहयोग किसी गरीब छात्र की जिंदगी बदल सकता है”, या “हम एक क्रांतिकारी आंदोलन चला रहे हैं, हमें आपकी आर्थिक सहायता चाहिए।”
लेकिन प्रश्न यह है कि:
• क्या इन संगठनों की आय-व्यय की कोई पारदर्शिता है?
• क्या इकट्ठा किया गया धन वास्तव में ज़रूरतमंदों तक पहुँचता है?
• क्या उनके “Pay Back” कार्यक्रम लाभार्थियों को दिखते हैं, या केवल सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए होते हैं?
3. भावनात्मक शोषण और वैचारिक गिरावट
इन संगठनों द्वारा “Pay Back to Society” का उपयोग एक भावनात्मक जाल के रूप में किया जाता है। समाज में पढ़े-लिखे युवाओं, संवेदनशील नागरिकों और हाल ही में सफल हुए व्यक्तियों को नैतिक दबाव में डालकर उनसे वार्षिक या आजीवन सदस्यता के नाम पर नियमित चंदा लिया जाता है। कई बार जो इनसे असहमत होते हैं, उन्हें “संवेदनहीन”, “जाति-विरोधी”, या “समाजद्रोही” करार दिया जाता है।
4. बहुजन समाज और ठगी का नया मॉडल
विशेष चिंता का विषय है कि यह प्रवृत्ति बहुजन समाज में भी तेजी से फैल रही है। कई संगठनों ने बहुजन एजेंडे की आड़ में Pay Back का नारा उछालते हुए उन युवाओं से आर्थिक सहयोग लेना शुरू कर दिया है, जो खुद भी संघर्षशील हैं। ये संगठन खुद को “क्रांतिकारी”, “अम्बेडकरवादी” या “समाज सुधारक” बताते हैं लेकिन उनका प्रमुख लक्ष्य होता है — सत्ता, प्रसिद्धि और पैसा।
5. वैकल्पिक सोच: सही मायनों में समाज को लौटाना
सच्चा “Pay Back to Society” तब होगा जब:
• छात्र स्वयं समय निकालकर बच्चों को निःशुल्क पढ़ाएँ।
• कोई युवा ग्रामीण क्षेत्रों में कैरियर काउंसलिंग करे।
• कोई व्यक्ति अपने अनुभव और संसाधन को साझा करे बिना किसी आर्थिक लाभ के।
• संगठन पारदर्शिता के साथ कार्य करें, जिनका हर पैसा और योजना सार्वजनिक हो।
6. निष्कर्ष: चेतना का समय
“Pay Back to Society” एक जिम्मेदारी है, व्यवसाय नहीं। इसे बाजार बना देना एक नैतिक अपराध है। हमें समाज सेवा के नाम पर हो रहे इस सुनियोजित ठगी मॉडल को पहचानना होगा और उसके खिलाफ जागरूकता फैलानी होगी। सहायता जरूर करें, पर सोच-समझकर, सही व्यक्ति और सही उद्देश्य के लिए। नहीं तो, यह नारा भी ‘Jai Jawan, Jai Kisan’ की तरह खोखला प्रतीक बनकर रह जाएगा।
अंततः, समाज सेवा का सही रास्ता वह है जो नि:स्वार्थ हो, पारदर्शी हो और जनहित में हो। न कि वह, जो “Pay Back to Society” कहकर लोगों की जेब पर डाका डाले और फिर सोशल मीडिया पर ‘नायक’ बनकर घूमे।
(लेखक: लाला बौद्ध, ये लेखक के अपने विचार हैं)