30 C
New Delhi
Saturday, August 16, 2025

Opinion: क्या बौद्धों को दीपावली या दीपदानोत्सव मनाना चाहिए?

भारत देश में जब भी कोई प्रमुख पर्व आता हैं तो उसे मानने और ना मानने के पक्ष में सोशल मीडिया से लेकर चाय की थड़ीयों पर भी चर्चा होने लगती है. खासकर बहुजनों में से बौद्ध हो चुके लोग तथाकथित हिंदू पर्वों पर असमंजस में आ जाते हैं.

इन्ही पर्वों में से सबसे ज्यादा चर्चित दीपावली है जिसे कुछ बौद्ध दीपदानोत्सव के नाम से मनाते आ रहे हैं. जबकि, बौद्धों का एक धड़ा इसके विरुद्ध है.

इसलिए, यह प्रश्न अनायास ही उठता है कि क्या बौद्धों को दीपावली या दीपदानोत्सव मनाना चाहिए?

चलिए, इस प्रश्न की पड़ताल करते हैं और जानते हैं बौद्धों और अम्बेड़करियों के लिए क्या उचित है.

इस संदर्भ में अशोक दास (संपादक दलित दस्तक) अपने एक लेख में लिखते हैं;

“दीपावली और दीपदानोत्सव के द्वंद के बीच बेहतर यह होगा कि बौद्ध समाज के विद्वान जिनमें विद्वान भंतेगण, पुराने बुद्धिस्ट और बौद्धाचार्य शामिल हैं, उनको एक साथ बैठकर धम्म सम्मेलन करना चाहिए। दीपदानोत्सव होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए, इस विषय पर सबका पक्ष सामने आने के बाद आपसी सहमति से एक फैसला ले लें, जिसे पूरा अम्बेडकरी समाज और बौद्ध समाज माने.”

अशोक दास, संपाद दलित दस्तक

इसके अलावा बौद्ध विद्वान माननीय सूधीर राज सिंह जी भी इस विषय पर अपनी बात वीडियो के माध्यम से साझा करते हैं. जो आपके लिए नीचे प्रस्तुत है.

कुछ भिक्खुगण भी इस बारे में उपासकों-उपासिकाओं को समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहते हैं. इसी कड़ी में भिक्खु चंदिमा का एक लेख आपके लिए प्रस्तुत है.

क्या आप दीपदानोत्सव के नाम पर दीपावली मनायेंगे?

प्रिय! उपासक/उपासिकाओं…

मैं इस संदर्भ में दो विचारों को सुनता और पढ़ता रहा हूँ.

पहला, कुछ लोगों का मानना है कि महाराजा असोक ने इसी दिन 84 हजार स्तूपों का अनावरण किया था, जिनकी सजावट दीपों एवं पुष्प मालाओं से की गई थी. इसलिए, इसे दीपदानोत्सव अथवा दीपमालिका उत्सव कहते हैं.

यहां प्रश्न उत्पन्न होता है कि…

क्या असोक धम्म दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत अपने जीवन काल में प्रतिवर्ष स्थापना दिवस पर दीपदानोत्सव करते रहे?

उत्तर है…

इसका कोई भी प्रमाण किसी भी बौद्ध ग्रंथों में नहीं मिलता. असोक ने जिस दिन पाटलीपुत्र में स्तूपों का अनावरण किया था उसी दिन धम्म दिक्षा भी ग्रहण की थी.

उस महान दिवस को असोक धम्म विजय दशमी के नाम से जाना जाता है, अर्थात वह दिन कार्तिक मास की आमावस्या नहीं दसमी का दिन था, फिर आमावस्या के दिन दीपदानोत्सव क्यों?

दूसरा, कुछ लोगों का मत है कि इसी दिन तथागत गौतम बुद्ध संबोधि प्राप्ति के 7वे वर्ष बाद कार्तिक अमावस्या को कपिलवस्तु पधारे थे. तिपिटक ग्रन्थों का कहना है कि राजकुमार गौतम को वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्धत्व की प्राप्ति हुई.

उन्होंने सारनाथ में अषाढी पूर्णिमा को प्रथम उपदेश दिया तथा प्रथम वर्षावास भी सारनाथ में ही व्यतीत किया.

कार्तिक पूर्णिमा तक तथागत सारनाथ में ही रूके रहे उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा को ही “चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय” का उपदेश दिया. तदोपरान्त वह सद्धम्म के प्रचार-प्रसार हेतु कपिलवस्तु न जाकर मगध की ओर चले गए.

इस प्रकार यह कहना बिलकुल ही निराधार है कि तथागत बुद्ध कार्तिक अमावस्या को कपिलवस्तु गए थे.

मैंने जितना भी प्राचीन बौद्ध साहित्य या तिपिटक साहित्य को पढा है, दीपदानोत्सव के बारे कोई जानकारी नहीं मिलती.

मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि महाराजा असोक ने अनावरण के समय दीपदानोत्सव कराया होगा. लेकिन, प्रति वर्ष ऐसा उत्सव देखने को नहीं मिला जबकि वह कई वर्ष जीवित रहे.

फिर आजकल के लोग दीपदानोत्सव मनाने के लिए इतना व्याकुल क्यों है? क्या इससे अवसरवादी लोगों को बल नहीं मिलेगा?

आज भी आप लोग जब कोई नया विहार या आवास बनाते हैं तो उसके उद्घाटन या अनावरण के अवसर पर साज-सज्जा करते हैं, लेकिन प्रति वर्ष इस प्रकार का उत्सव देखने को नहीं मिलता.

यदि दीपदानोत्सव का संबंध तथागत बुद्ध या असोक के जीवन से संबंधित होता तो तथागत बुद्ध के अनुयायी जिन-जिन देशों में गये वहा “बुद्ध पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा” आदि की भातिं यह पर्व भी धुम-धाम से मनाया जाता.

लेकिन किसी भी बौद्ध देश में दीपदानोत्सव नहीं मनाया जाता है.

इसलिए मै इस निष्कर्ष पर पहुचा हुँ कि दीपावली का संबंध बुद्ध-धम्म से नहीं है.

इसलिए मेरा मत है कि सांस्कृतिक घालमेल करने से अच्छा है कि दीपदानोत्सव का आयोजन इन प्रमुख दिवस पर किया जा सकता हैं.

  • वैशाख पूर्णिमा
  • आषाढी पूर्णिमा
  • कार्तिक पूर्णिमा
  • असोक धम्मविजय दसमी तथा
  • 14 अप्रैल

उपासक/उपासिकाओ को चाहिए कि वह प्रत्येक अमावस्या की भातिं इस अमावस्या को भी उपोसथ दिवस के रूप में ही मनाते हुए आठ सीलो का पालन करे.

सायं तिरत्न वंदना, परितपाठ, ध्यान- साधना तथा धम्म चर्चा करे.

घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधंसिना।
तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं।

इन गाथाओं के साथ भगवान बुद्ध के सम्मुख दीप प्रज्वलित करें.

साभार – भिक्खु चन्दिमा

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

गौतम बुद्ध, आत्मा और AI: चेतना की नयी बहस में भारत की पुरानी भूल

भारत की सबसे बड़ी और पुरानी समस्या पर एक नयी रोशनी पड़ने लगी है। तकनीकी विकास की मदद से अब एक नयी मशाल जल...

आषाढ़ी पूर्णिमा: गौतम बुद्ध का पहला धम्म उपदेश

आषाढ़ी पूर्णिमा का मानव जगत के लिए ऐतिहासिक महत्व है. लगभग छब्बीस सौ साल पहले और 528 ईसा पूर्व 35 साल की उम्र में...

बाबू जगजीवन और बाबासाहेब डॉ अम्बेड़कर: भारतीय दलित राजनीति के दो बड़े चेहरे

बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 में हुआ था और बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में. दोनों में 17...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...