41.1 C
New Delhi
Sunday, June 8, 2025

किस्सा कांशीराम का #6: राजीव गांधी मेरे पास आया और कहने लगा कि हमें भी आपकी सेवा करने का मौका दो

बहुजन समाज पार्टी द्वारा देश भर में  बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर जन्म शताब्दी वर्ष  के तेहत मनाये गये समारोहों की श्रंखला में 18 सितम्बर 1990 को चंडीगढ़ के सैक्टर 17, परेड ग्राउंड में पंजाब राज्य स्तरीय विशाल सम्मेलन में मा. कांशीराम जी द्वारा दिया गया भाषण के कुछ प्रमुख अंश.

मा.कांशीराम जी ने उपस्थित लाखों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा था कि आज हम इस मैदान में  पहली बार नहीं, बल्कि आज से 9 साल पहले 18 अक्टूबर 1981 तब इकट्ठे  हुए, जब दलित शोषित समाज के कर्मचारियों को इकठ्ठा कर रहे थे. क्योंकि इनके पास टाइम, टेलेन्ट, टिरेजट हैं.  अपने भोले भाले समाज को मदद करें और उन्हें अपने पैरों पर खडा करें. आज 9 साल पहले सोचा सपना, इरादा उसी मैदान में पूरा होता नजर आ रहा हैं.

ढेड दो लाख कर्मचारी  मैंने इकट्ठे किए हैं जिनकी जडे  समाज तक जुड़ी हैं. साहेब ने आगे कहा कि हमें सब्र भी रखना होगा, कुछ  बेसब्र लोग भी होते हैं. जिस तरह 1981 में 9 साल पहले इसी मैदान में  हमारे साथ इकट्ठा हुए थे, परन्तु जिन्होंने  सब्र नहीं रखा, वे तीन चार साल में ही निराश होकर अलग थलग हो गये, और मिट्टी में मिल गये. और जिन्होंने सब्र रखा, आज भी वो हमारे साथ हैं , उनका हौंसला बढा हुआ हैं.

अपना धन, बुद्धि उपयोग करके आप इकट्ठे हुए हैं, इससे हमारा हौंसला बढा हैं. और विरोधी पार्टियों का हौंसला गिरता नजर आ रहा हैं.

आगे कहा हमें अपनी तैयारी पर ही संसद मे जाना हैं, देवीलाल मुझसे कई बार मिला, और वी. पी. सिंह भी मिला और कहा आपको  पार्लियामेंट में जाना बडा जरूरी हैं. जब ये सुना तो राजीव गांधी मेरे पास आया और कहा कि “हमें भी आपकी सेवा करने का मौका दो, ताकि मदद करके आपको सांसद बना के सदन में भेज दें.” तब मैंने उससे कहा कि आज तक आप मुझे नहीं समझ पाये, क्योंकि आपकी मदद से मैं संसद में जाऊंगा तो अपने समाज के कुछ काम नहीं आ सकूंगा.

आपकी मदद से टुकड़ों पर पलने वाले गये हुये 125 आदमी आरक्षित सीटों से जीत कर गए हुए संसद में हमेशा नजर आते हैं. वे किसी काम के आदमी (सांसद) नहीं लगते. इसलिए, हम अपने समाज को तैयार कर रहे हैं,  जिसे आपने लाचार और ललुआ (मजबूर) समाज बना दिया हैं. जब यह समाज तैयार हो जायेगा, तब उनकी तैयारी से मैं संसद में जाऊँगा. जब तक यह मुमकिन नहीं है, तब तक संसद में अंदर जाकर बन्द होना नहीं चाहता हूँ.

क्योंकि, अभी संसद के बहार समाज को तैयार करने का काम बहुत ज्यादा है. तभी हम आगे बढ सकेंगे. यदि इसी उसूल के आधार पर हम अन्दर भेजेंगे तो 3 भी कम से कम 30 सांसदों का काम करेंगे.

इसलिये मैं भी तब ही संसद के अंदर जाने की सोचुंगा, जब कम से कम 10% सांसद संसद में अपनी पार्टी के पहुँचेंगे. ऐसी बात हम इस लिए कहते हैं ताकि हम जो भी बात बनायें, वह हजारों साल तक टिकाऊ बने,  कोई उसे गिरा न सके. इस मजबूती से समाज को अपने पैरों पर खडा करना हैं. इसलिए हमारा इरादा तो 3 से 30 करने का नहीं, बल्कि 300 सांसद करने का हैं.

आगे आपने  मण्डल कमीशन के बारे में कहा कि  आरक्षण विरोधियों ने अपनी अज्ञानता का परिचय दिया हैं, क्योंकि जो मण्डल कमीशन का विरोध कर रहे हैं, उनको यही पता नहीं है यह किनके हितों के लिए है. वे नारा लगा रहे थे, जो पेपरों में भी छपा हैं – “मण्डल कमीशन दियां बढ याइयां, चूडे-चमार खाण मलाइयां.”

लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि इन अनुसूचित जाति/जनजातियों के लिए तो 26 जनवरी 1950 से ही आरक्षण लागू है, और पिछले 28 साल 1962 से बडी नौकरियों में तो 22.5% कोटा पूरा रहता ही है. 450 में से 125 इनके डिप्टी कमिश्नर पहुँचते ही हैं, परन्तु सवाल अन्य शूद्रों का भी है, जो पिछड़े है जिनको अभी तक कुछ मिला, जो देश में 52% हैं.

यदि गिने चुने चले भी गये तो उससे बडा भारी फर्क पडने वाला नहीं हैं. अभी जो मण्डल आयोग लागू होना हैं, वे तो अन्य पिछडी जातियों के लिए है, जिसमें पंजाब राज्य में 83 जातियां पिछड़े वर्ग की आती हैं.  कवि नरेश बाबू बौद्ध.


(स्रोत: मैं कांशीराम बोल रहा हूँ का अंश; लेखक: पम्मी लालोमजारा, किताब के लिए संपर्क करें: 95011 43755)

Me Kanshiram Bol Raha Hu
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...