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Tuesday, October 21, 2025

जज यशवंत वर्मा प्रकरण और नालसा की मणिपुर विजिट के बीच संभावित कनेक्शन

मार्च 2025 में भारतीय न्यायिक और राजनीतिक परिदृश्य में दो समानांतर घटनाएँ चर्चा में रहीं—दिल्ली उच्च न्यायालय के जज यशवंत वर्मा से जुड़ा विवाद और जस्टिस बी.आर. गवई के नेतृत्व में नालसा (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों की मणिपुर विजिट। इन दोनों घटनाओं की टाइमिंग, मीडिया कवरेज और उनके आसपास उत्पन्न परिस्थितियों ने यह सवाल उठाया है कि क्या जज वर्मा का मामला मणिपुर संकट से ध्यान हटाने की एक सुनियोजित रणनीति हो सकता है। यह विश्लेषण दोनों घटनाओं के तथ्यों, संदर्भ, प्रभाव और संभावित अंतर्संबंधों की गहन पड़ताल करता है, साथ ही वैकल्पिक दृष्टिकोण और साक्ष्यों की कमी पर भी प्रकाश डालता है।

मणिपुर में मई 2023 से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा जारी है, जो भूमि विवाद, नशे की तस्करी और ऐतिहासिक तनावों से उपजी है। इसके परिणामस्वरूप 200 से अधिक लोगों की मौत हुई, 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए और राज्य में सामाजिक-आर्थिक संकट गहरा गया है। केंद्र सरकार ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और सेना की तैनाती की, कर्फ्यू लगाया और कई दौर की वार्ताएँ शुरू कीं, लेकिन हिंसा रुक-रुक कर जारी है। राहत शिविरों में मूलभूत सुविधाओं की कमी की शिकायतें सामने आई हैं, और विपक्ष व नागरिक समाज ने केंद्र पर निर्णायक कार्रवाई में विफलता का आरोप लगाया है। इस हिंसा ने मणिपुर की अर्थव्यवस्था को ठप कर दिया, स्कूल-कॉलेज बंद हैं और समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ा है, जो केंद्र सरकार की क्षेत्रीय नीतियों और संकट प्रबंधन की क्षमता पर सवाल उठाता है।

इसी संदर्भ में, 22 मार्च 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के छह जजों की एक टीम मणिपुर जाने वाली थी। इस दौरे का उद्देश्य नालसा के तहत हिंसा प्रभावित लोगों को विधिक सहायता प्रदान करना और राहत शिविरों की स्थिति का आकलन करना था। जस्टिस एन. कोटेश्वर, जो मणिपुर के मूल निवासी हैं और वहाँ के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ को गहराई से समझते हैं, की मौजूदगी इस दौरे को और विश्वसनीय बना सकती थी। यह विजिट मणिपुर में केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों की स्वतंत्र समीक्षा प्रस्तुत कर सकती थी, और एक संभावित रिपोर्ट सरकार की नाकामी को औपचारिक रूप से उजागर कर सकती थी, जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ता। यह दौरा केंद्र सरकार के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील था, क्योंकि यह मणिपुर में शांति बहाली में उनकी कथित विफलता को जनता के सामने ला सकता था।

दूसरी ओर, जज यशवंत वर्मा प्रकरण ने भी सुर्खियाँ बटोरीं। 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगी, और आग बुझाने के दौरान कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई, जिसके स्रोत और वैधता पर सवाल उठे। 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय जाँच समिति गठित की और जस्टिस वर्मा को न्यायिक कर्तव्यों से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। उनका दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण भी चर्चा में रहा, हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहले से तय नीतिगत निर्णय बताया। मीडिया ने बिना जाँच के नकदी को भ्रष्टाचार से जोड़ा और जस्टिस वर्मा की छवि पर सवाल उठाए, जबकि अधिवक्ता संघों ने उनकी तत्काल बर्खास्तगी की माँग की। इस प्रकरण ने न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए और इसे एक “मीडिया ट्रायल” में बदल दिया, जिससे जज वर्मा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा।

दोनों घटनाओं की टाइमिंग संदिग्ध प्रतीत होती है। जज वर्मा के आवास में आग 14 मार्च को लगी, और 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जाँच शुरू की—उसी दिन जब नालसा का मणिपुर दौरा प्रस्तावित था। जज वर्मा प्रकरण को जिस तीव्रता से उछाला गया, उसने मणिपुर विजिट की खबरों को लगभग दबा दिया। यह तर्क दिया जा सकता है कि केंद्र सरकार, जिसकी मणिपुर में विफलता की आलोचना हो रही थी, ने जज वर्मा प्रकरण को एक डायवर्जन टैक्टिक के रूप में इस्तेमाल किया। मणिपुर विजिट से उत्पन्न होने वाली रिपोर्ट सरकार की कमियों को औपचारिक रूप से उजागर कर सकती थी, जिसे रोकने के लिए यह कदम उठाया गया हो सकता है। अधिवक्ता संघों की त्वरित और आक्रामक प्रतिक्रिया, साथ ही मीडिया की एकतरफा कवरेज, इस सिद्धांत को बल देती है कि यह एक सुनियोजित रणनीति हो सकती है।

हालाँकि, वैकल्पिक दृष्टिकोण भी संभव है। जज वर्मा का मामला एक वास्तविक संकट हो सकता है, जिसका मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं। आग और नकदी की बरामदगी एक संयोग हो सकती है, जिसे मीडिया ने स्वाभाविक रूप से सनसनीखेज बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्रवाई की हो सकती है, और इनके बीच कोई प्रत्यक्ष संस्थागत संबंध नहीं दिखता। यह दोनों घटनाएँ न्यायपालिका की सक्रियता का हिस्सा हो सकती हैं—एक ओर आंतरिक जवाबदेही, दूसरी ओर सामाजिक न्याय। फिर भी, अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि जज वर्मा प्रकरण को मणिपुर से ध्यान हटाने के लिए उछाला गया। यह केवल टाइमिंग और परिस्थितियों पर आधारित अनुमान है।

निष्कर्षतः जज यशवंत वर्मा प्रकरण और नालसा की मणिपुर विजिट के बीच एक संभावित कनेक्शन की ओर टाइमिंग और परिस्थितियाँ इशारा करती हैं, लेकिन इसे साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य नहीं हैं। दोनों घटनाएँ भारतीय न्यायिक और राजनीतिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। सुप्रीम कोर्ट की जाँच रिपोर्ट और मणिपुर विजिट के परिणामों का इंतज़ार करना चाहिए। साथ ही, बिना सबूतों के सनसनीखेज मीडिया कवरेज पर नियंत्रण की आवश्यकता है। फिलहाल, इन दोनों घटनाओं के बीच संबंध को केवल एक संभावना के रूप में देखा जाना उचित होगा, और गहन तथ्य-संग्रह व निष्पक्ष जाँच ही इस सवाल का सही जवाब दे सकती है।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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