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Sunday, June 8, 2025

व्यंग्य: पत्रकारिता की नई धार

वॉशरूम पत्रकारिता का नया चलन आया है. अगर, यही पत्रकारिता खुले मैदान की जाती है तो नजारा क्या होगा? इसी को बयां करता ये व्यंग्य...

आजकल पत्रकारिता का स्तर यहां तक गिर गया है कि कोई पत्रकार टॉयलेट में घुस जाता है तो कोई वाशरूम में घुस जाता है.

शुक्र है आजकल खुले में करने का प्रचलन खत्म कर दिया गया है. अगर आज भी खुले में करने का प्रचलन होता तो इनकी पत्रकारिता कुछ इस प्रकार की होती.

आज हम उस जगह आए हैं जिस जगह मिस्टर पप्पू टट्टी करते हैं. वैसे तो ये एक खुला हुआ मैदान है. लेकिन, आप देख सकते हैं इधर भांग के कुछ बड़े-बड़े पौधे खड़े हुए हैं जिनकी ओट में मिस्टर पप्पू टट्टी करते हैं ताकि भांग के ये पेड़ मिस्टर पप्पू की निजता भंग होने से बचा सकें.

आमतौर पर यहां पर लोग वैसे तो लोटा लेकर आते हैं, लेकिन मिस्टर पप्पू जल संरक्षण के लिए बहुत गंभीर हैं. इसलिए, वो लोटा लेकर नही आते बल्कि ढेला से अपना काम निपटा लेते हैं.

इधर आप देख रहे होंगे कि सारा मैदान दुर्गंध से भरा हुआ है. लेकिन, जिस स्थान पर मिस्टर पप्पू निवृत्त हुए हैं वो जगह भीनी-भीनी खुशबू से महक रही है. उस खुशबू में ही हम कितने आरामदायक तरीके से रिपोर्टिंग कर पा रहे हैं.

आइए, ये देखिए ये मिस्टर पप्पू की टट्टी है जिसको करके अभी-अभी मिस्टर पप्पू गए हैं और देखिए ये बिलकुल ही अलग तरह की टट्टी है या ये कहिए कि लजीज तरह की टट्टी है. इस पर अलग तरह की ही चमक है. इसका रंग देखिए कितना शानदार है. हल्का गुलाबी रंग लिए हुए ये अद्भुत छटा बिखेर रही है.

इस स्थान को देखिए जैसा कि आप जानते होंगे कि यहां पर कई जगहों पर दो-दो ईंट पड़ी हुई हैं. इसका मतलब है कि आज भी कुछ लोग ईंट पर बैठकर टट्टी करते हैं लेकिन हमारे पप्पू ईंट खर्च नही करते बल्कि यूं ही निपट लेते हैं.

यहां पर कुछ पानी भी पड़ा हुआ है जिसका मतलब है कि मिस्टर पप्पू ने पेशाब भी किया है और ये देखिए उनके पेशाब पर बहुत सारे चींटे भी लगे हुए हैं. इस प्रकार वो परोपकार की भावना से भरे हुए हैं और छोटे-छोटे जीवों का जीवन बचाने के लिए प्रयासरत हैं.

मैं कैमरामैन अलाने सिंह के साथ खुले मैदान से फलानी सिंह. ऐसी ही मजेदार और सच्ची खबरों को जानने के लिए जुड़े रहिए हमारे चैनल जाति ही सर्वोच्च पर…

(लेखक: सुधीर कुमार; ये लेखक के अपने विचार हैं)

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