नीर नैन गिरता रहे, पढते रहे किताब ।
पुस्तक पैसा खर्चते, आधी रोटी आब ।।
राज रत्न रमेश सह, गंगाधर सब अंत ।
पुत्र चार बाबा भये, अंत बचे यशवन्त ।।
मौत डिगा पायी नही, खोये सन्तति चार ।
पुत्र दलित पद दीखते, पुत्री कोटि अपार ।।
पत्नी सम माता रमा, पति मजबूरी ध्यान ।
राज रत्न पाता कफन, साड़ी मात फटान ।।
पुत्री इन्दू अति प्रिया, बाबा अतिशय प्रीति ।
जाती दुनिया छोड़ जो, बाबा गिरती भीति ।।
तीन पुत्र बचपन झुके, इक पुत्री अति ध्यान ।
भीम नाम होता सुफल, मरा नही अभिमान ।।
काल गाल जाते सभी, भोजन बहुत अभाव ।
व्याधि जन्म कमजोर तन, अंत रहे पछताव ।।
सन्तति दुख सब भूलते, लक्ष्य रहा बस याद ।
नही लक्ष्य भटके कभी, सब कुछ घर बर्बाद ।।
राज रत्न की मृत्यु अति, दुखकारी थी ध्यान ।
पास कफन दमड़ी नही, पर जिंदा अभिमान ।।
मात रमा दिखती विकल, व्याकुल बाबा भीम ।
लक्ष्य मगर दिखता रहा, बनना शख्स अजीम ।।
(लेखक – बुद्ध प्रकाश बौद्ध)