कितनें साल आये और चलें गये
ब्रहम्णी व्यवस्था वही रही,
दिन बीते, महीने बीते, सालों साल बीत गये,
फिर भी जातियाँ बनी रहीं।
समय बदला, ऱितुएँ बदली,
पर नारी की गुलामी वही रहीं,
जाति-पॉति में कुछ यूँ जकड़ा रहा वतन हमारा,
कि शोषक-सेवा, कमर में झाडूं, गले में हांडी,
ये ही किस्मत शूद्र-अछूत की बनी रही।
खाने को अन्न नहीं, पीने को पानी नहीं,
फिर भी जिंदा रहें पर टीस जहन में बनी रही,
फिजाओं में रंग, फजाओं में मंजर बदलते रहे,
कुदरत में खुशबू महकती रही,
पर गुलामी की बेड़ियां वही रहीं।
ब्रहम्णी आतंकवाद कुछ यूं कायम रहा,
कि बहुजन की हालत वही रही,
पर युग बदला बुद्ध, रैदास, कबीर आये,
घासी, नानक जैसे पीर फकीर आये,
फूले, शाहू का आगाज हुआ,
बाबा अम्बेडकर महान आये,
ध्वस्त कर ब्रहम्णी विधान
मानवता का सर्वोत्तम संविधान लायें।
बाबा ने संविधान दिया,
पर सत्ता मनुओं के ही हाथ रही,
न वंचितों को मिली भागीदारी,
न शोषितों की स्थिति में
कोई भी वांछित सुधार हुआ,
देश का कारोबार यही से चला,
पर मनुवाद की स्थिति बनी रही।
फिर निज जीवन से संयास ले,
साहेब बहना ने मिल ठान लिया,
इन दो महान विभूतियों खुला ऐलान किया,
जब शोषितों की सत्ता होगी,
तब समता, आजादी संग सम्मान होगा,
जनतंत्र को मजबूत किए बिना,
न न्याय मिलेगा, न बंधुत्व का आगाज होगा।
मंजिल तय कर काशी ने सिद्धांत दिया,
सूत्रों का इजाद कर, संगठनों का निर्माण किया,
बामसेफ, डीएस-4, बीआरसी बना,
फिर बसपा को सबकुछ सौंप दिया।
पंचानवे में पिछड़ों की स्वतंत्र सरकार बनी,
शोषितों में नव जीवन, नव चेतना आयी।
विषमतावाद की रीढ़ टूटी, समतावाद की शुरुआत हुई।
सतत् अग्रसर समता है, आजादी भी आजाद हो रही है,
बंधुत्व भी कायम होगा, बस रफ्तार यही बनी रहे।
हे बहुजन,
तू शिक्षित बन, संगठित हो,
कुछ इस तरह कर संघर्ष,
कि समता-स्वतंत्रता-बन्धुत्व पर बनी,
मानवता की तेरी इमारत रहे सदा बुलंद।
(31.12.2018)