35.6 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

कविता: मगर मरे नहीं हैं हम… हारे हैं जरूर – सूरज कुमार बौद्ध की कविता

मगर मरे नहीं हैं हम।

उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम,
हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम।

बहुत जुनून है मुझमें नाइंसाफी के खिलाफ,
सर फिरा है मगर सरफिरे नहीं हैं हम।

बहुत ऊंचा पहाड़ है, है फ़तह बहुत मुश्किल,
अभी से हार क्यों माने अगर चढ़े नहीं हैं हम।

वर्ण/जाति के बल पर उच्चता न दिखाओ,
हमारी जंग जारी है अभी ठहरे नहीं है हम।

द्रोणाचार्य अब अंगूठा नहीं फांसी मांगते हैं,
एकलव्य के वारिस हैं पर भोले नहीं हैं हम।

दो कौड़ी के दाम से मेरा जमीर मत खरीदो,
अमानत में खयानत कर बिके नहीं हैं हम।

एक रोहित की मौत से हमे खामोश मत समझो,
अब हजार रोहित निखरेंगे, बिखरे नहीं हैं हम।

जम्हूरियत में तानाशाही की चोट ठीक नहीं,
कल भी इंकलाबी थे, अभी सुधरे नहीं हैं हम।

उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम,
हाँ, हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम।


लेखक – सूरज कुमार बौद्ध

सूचना – यदि आप भी अपनी कोई कविता, कहानी या कोई रचना दैनिक दस्तक पोर्टल पर प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो कृपया हमें hellodainikdastak@gmail.com पर ईमेल करें. ईमेल के विषय में “दैनिक दस्तक साहित्य” जरूर लिखें अन्यथा रचना पर ध्यान नही दिया जाएगा. और रचनाएं आपकी होनी चाहिए.

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

कविता: सोचो, क्या होता तब… दीपशिखा इंद्रा

सोचो, क्या होता तब... जब मनुवादी व्यवस्था आज भी नारी समाज पर थोप दी जाती? क्या वह छू पाती आसमान? क्या देख पाती कोई...

पुस्तक समीक्षा: “बहुजन सरोकार (चिंतन, मंथन और अभिव्यक्तन)”, प्रो विद्या राम कुढ़ावी

प्रो. विद्या राम कुढ़ावी एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने लेखनी को केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे समाज के उत्पीड़ित,...

दलित साहित्य और बसपा: प्रतिरोध से सृजन की संनाद यात्रा

दलित साहित्य और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भारतीय समाज में शोषित वर्गों के उत्थान और उनकी आवाज को सशक्त करने के दो प्रभावशाली माध्यम...

बहुजन क्रांति: संकल्प से विजय तक

बहुजन हुंकार उठी क्षितिज से,गूंज उठा नील गगन।सत्ता सिंहासन से बात बनेगी,संकल्प लिया हर बहुजन।। बुद्ध रैदास कबीर का ज्ञान अपार,काशी बहना ने किया खूब...

कविता: बहुजन का उदय

बहुजन का उदय कांग्रेस ने वादे किए, पर भूल गई सब काम,भाजपा भी छलती रही, सबने किया अत्याचार,मनुवाद की जंजीरों में, बंधा रहा बहुजन समाज।बाबासाहेब...

कविता: ऐसी थी बहना की सरकार

चहुँ ओर थी शांति,सब थे खुशहाल,गुंडे काँपे थर-थर,थी जब बहना की सरकार। ईख की कीमत हुई थी दोगुनी,किसानों ने देखा था चमत्कार,वजीफ़ा सबको मिलने लगा,स्कूल...

कविता: उम्मीदों का आकाश

उम्मीदों का आकाश उम्मीदों का आकाश उठा,एक नया सूरज चमक पड़ा।वंचितों की आँखों में सपने,हर दिल में हौसला खड़क पड़ा। तेज़ हैं, तर्रार हैं,शोषितों की ललकार...

कविता: बहनजी – जीवन चरित्र को बयां करती एक शानदार कविता

बहनजी संघर्षों की प्रतिमूर्ति,ममता की मूरत,परिवर्तन की चेतना,बहुजनों की सूरत। चप्पल घिसीं, राहें फटीं,फिर भी बढ़ती रहीं अडिग,हर गली, हर चौखट जाकर,जगाया स्वाभिमान निष्कलंक। बिखरे सपनों को...

कविता: ‘जय भीम’ का अद्भुत नारा

हिल उठे जग सारा, कांप उठे पर्वत माला ।नील गगन में गूँज उठे जब, जय भीम का अद्भुत नारा ।।गांव से लेकर संसद तक,सर...

किस्सा कांशीराम का #16: एक वोट और एक नोट की कहानी

1988 में इलाहबाद संसदीय सीट का उपचुनाव हुआ. वहां से मान्यवर साहब ने अपना नामांकन भरा. जहाँ एक तरफ कांग्रेस पार्टी मैदान में थी...

फूलन देवी की कहानी कविता की जुबानी: नारी गौरव फूलन बौद्ध को सादर नमन

फूलन देवी के शहादत दिवस पर कवि बुद्ध प्रकाश बौद्ध जी ने अपनी कविता के माध्यम से फूलन देवी को नमन किया है. उनकी...