जाति धर्म के मलबे में धंसा वो सच है
जो झूठ के हर पर्दे को बेपर्दा कर देता है.
लोग कितने भी प्रगतिशील हों,
गला फाड़कर लिबरल बनते हों,
अखबारों में लेख भी लिखते हों
पर जाति की बात पर वो ढीले पड़ जाते हैं.
जाति सबका सच बोल ही देती है,
प्रगतिशीलता का चोला खोल ही देती है.
जो लिबरल हैं वो जाति नहीं पुछते,
वो पूरा नाम पूछते हैं, सरनेम पूछते हैं.
नाम में नहीं सरनेम में छिपा राज है,
जाति को नकारना भी जातिवाद है.
लेखक: सूरज कुमार बौद्ध