बहुजन समाज पर आये दिन अत्याचार होता रहता है। बहुजन समाज इन अत्याचारों से उद्वेलित होकर अक्सर विरोध प्रदर्शन व धरना आदि करता रहता है। इनके ऊपर होने वाले अत्याचारों को अपने राजनैतिक फायदे के लिए समय-समय पर भाजपा, कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, आप, टीएमसी, केसीआर, बीजेडी, शिवसेना आदि मुद्दा बनाते रहते हैं। इसी बीच बहुजन समाज की अनुसूचित जाति के कुछ चमचे भी कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के इशारे पर दलितों एवं आदिवासियों व अन्य समाजों को गुमराह करने के लिए अनावश्यक धरना प्रदर्शन आदि करते रहते है। इन सब क्रियाकलापों से तात्कालिक तौर पर जनता को सांत्वना तो मिल जाती है परन्तु क्या उन्हें न्याय मिल पाता है? क्या इससे अत्याचारों के सिलसिले पर कोई कारगर असर होता है?
इतिहास उठाकर देखा जाय तो स्पष्ट होता है कि जिन-जिन मामलों में राजनैतिक दलों ने धरना प्रदर्शन आदि करके पुलिस एवं प्रशासन पर दबाब बनाने का प्रयास किया है उन सभी मामलों में पीड़ित को न्याय नहीं मिला है बल्कि उनके पूरे खानदान को या तो ख़त्म कर दिया गया है (उन्नाव रेप काण्ड 2017 में भाजपा विधायक सेंगर ने कोइरी समाज की महिला का रेप किया और जब मामले को राजनैतिक फायदे के लिए अखिलेश यादव ने तूल दिया तो कुछ समय बाद सबूत मिटाने व मामले को खत्म करने के इरादे से पीड़िता के परिवार को ही ख़त्म कर दिया गया) या फिर पीड़ित परिवार के खिलाफ ही केस बनाकर तब तक परेशान किया जाता है जब तक कि मामला ठंडा न पड़ जाय (हाथरस गैंगरेप काण्ड 2020)। यदि किसी को लगता है कि सिर्फ विरोध या धरना प्रदर्शन से समाधान हो जायेगा तो उनको कम से कम एक बार देश में दलित-आदिवासी समाज पर होने वाले अत्याचार के आकड़ों पर गौर करना चाहिए और फिर सोचना चाहिए कि बसपा धरना करे या अपने दीर्घकालिक एजेण्डे की तरफ धयान दे और सृजनात्मक व सकारात्मक एजेण्डे को लागू करने हेतु संघर्ष करे।
दलितों पर होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
अखिल भारतीय स्तर पर 2020 (50291 केसेस) के मुकाबले 2021 (50900 केसेस) में अनुसूचित जाति के साथ होने वाले अत्याचारों में 1.2 फीसदी का इजाफा हुआ है। राज्य चाहे भाजपा शासित हो या कांग्रेस, दलितों पर होने वाले अत्याचारों में बढ़ोत्तरी हुई है। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में देश में दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार के केसेस दर्ज़ हुए है जोकि कुल केसेस का 25.82 फीसदी यानि कि 13146 केसेस है। कांग्रेस शासित राजस्थान भी कम नहीं है वहां भी देश में दलितों पर होने वाले अत्याचार कुल केसेस का 14.7 फीसदी यानी कि 7524 केसेस के साथ दूसरे स्थान पर है।
पुनः भाजपा शासित मध्य प्रदेश देश में दलितों पर होने वाले अत्याचार कुल केसेस का 14.1 फीसदी यानी कि 7214 केसेस के साथ तीसरे स्थान पर है। समय-समय पर ओबीसी जातियों द्वारा शासित बिहार भी कांग्रेस और भाजपा से पीछे नहीं है बल्कि देश में दलितों पर होने वाले अत्याचार कुल केसेस का 11.4 फीसदी यानी कि 5842 केसेस के साथ चौथे स्थान पर है। देश में दलितों पर होने वाले अत्याचार कुल केसेस का 4.5 फीसदी यानी कि 2327 केसेस के साथ उड़ीसा पांचवें स्थान पर है।आज जो दलित भाजपा के विकल्प के तौर पर कांग्रेस में अपनी सुरक्षा ढूंढ रहे है उनको मालूम होना चाहिए कि दलितों पर होने वाले अत्याचारों में टॉप दो राज्य (उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान) भाजपा और कांग्रेस द्वारा शासित हैं। इसलिए दलितों को यह समझ जाना चाहिए कि उनकी सुरक्षा भाजपा में या कांग्रेस में कतई नहीं है।
दलितों पर होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
यदि अखिल भारतीय स्तर पर गौर किया जाय तो प्रतिदिन 140 दलितों पर अत्याचार होता है।
क्रम संख्या | राज्य | सरकार | प्रतिदिन होने वाले अत्याचार |
1. | उत्तर प्रदेश | भाजपा | 36 |
2. | राजस्थान | कांग्रेस | 21 |
3. | मध्य प्रदेश | भाजपा | 20 |
4. | बिहार | जदयू | 16 |
5. | उड़ीसा | बीजेडी | 4 |
आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
अखिल भारतीय स्तर पर 2020 (8272 केसेस) के मुकाबले 2021 (8802 केसेस) में अनुसूचित जनजाति के साथ होने वाले अत्याचारों में 6.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों के मामले में भी राज्य चाहे भाजपा शासित हो या कांग्रेस आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों में बढ़ोत्तरी हुई है। भाजपा शासित मध्य प्रदेश ने देश में आदिवासियों पर होने वाले कुल अत्याचारों का 29.8 फीसदी यानी कि 2627 केसेस के साथ पहले स्थान पर है। एक बार फिर कांग्रेस शासित राजस्थान भी कम नहीं है वहां भी देश में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार कुल केसेस का 24 फीसदी यानी कि 2121 केसेस के साथ दूसरे स्थान पर है।
इसी तरह उड़ीसा 7.4 फीसदी (676), महाराष्ट्र 7.13 फीसदी (628), तेलंगाना 5.81 फीसदी (512) केसेस के साथ क्रमशः तीसरे, चौथे एवं पांचवे स्थान पर हैं। आदिवासियों में अशिक्षा का आभाव है। जागरूकता की कमी है इसलिए अधिकांश केस को दर्ज़ कराने के लिए वे थाने तक पहुंचते ही नहीं है। इसलिए ये जो दर्ज़ केस NCRBके डेटाबेस का हिस्सा बन सके है ये सब जघन्यतम अपराध हैं।
आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
यदि अखिल भारतीय स्तर पर गौर किया जाय तो प्रतिदिन 25 आदिवासियों पर अत्याचार होता है।
क्रम संख्या | राज्य | सरकार | प्रतिदिन होने वाले अत्याचार |
1. | मध्य प्रदेश | भाजपा | 8 |
2. | राजस्थान | कांग्रेस | 6 |
3. | उड़ीसा | बीजेडी | 2 |
4. | महाराष्ट्र | शिवसेना | 2 |
5. | तेलंगाना | केसीआर | 2 |
दलित एवं आदिवासी नारी समाज के साथ होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
अखिल भारतीय स्तर पर दलित महिलाओं के साथ होने वाले रेप केसेस कुल दर्ज़ केसेस का 7.64% (3893 केसेस) है जिसमे 2585 केसेस दलित महिलाओं के साथ तो 1285 केसेस बच्चियों के साथ होने वाले केसेस है। दलित महिलाओं के साथ रेप की कोशिस, दलित महिलाओं की अस्मिता पर हमले के केसेस 16.8% (8570 केसेस) हैं। दलित महिलाओं की हत्या, हत्या की कोशिस एवं गंभीर चोट सम्बन्धी दर्ज़ केसेस क्रमशः 967, 916 और 1286 है।
इसी तरह से अखिल भारतीय स्तर पर आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाले रेप केसेस कुल दर्ज़ केसेस का 15 % (1324 केसेस) है। आदिवासी महिलाओं के साथ रेप की कोशिश, दलित महिलाओं की अस्मिता पर हमले के केसेस 26.8% (2364 केसेस) हैं। आदिवासी महिलाओं की हत्या, हत्या की कोशिस एवं गंभीर चोट सम्बन्धी दर्ज़ केसेस क्रमशः 199,148 और 114 हैं।
दलित एवं आदिवासी नारी समाज के साथ होने वाले अत्याचार (NCRB 2021)
यदि अखिल भारतीय स्तर पर गौर किया जाय तो प्रतिदिन 11 दलित व 4 आदिवासी महिलाओं के साथ रेप होता है।
अत्याचार (NCRB 2021) | दलित नारी के साथ | आदिवासी नारी के साथ | ||
2021 में हुए कुल अत्याचार | प्रतिदिन होने वाले अत्याचार | 2021 में हुए कुल अत्याचार | प्रति दो दिन में होने वाले अत्याचार | |
रेप केसेस | 3893 | 11 | 1324 | 8 |
हत्या | 967 | 3 | 199 | 1 |
हत्या की कोशिस | 916 | 3 | 148 | 1 |
गंभीर चोट | 1286 | 4 | 114 | 1 |
NCRB (2021) के आकड़ों के स्पष्ट है कि –
‘आज़ाद भारत में आज भी हर दो घंटे में एक दलित महिला और हर तीन घंटे में एक आदिवासी महिला का बलात्कार होता है।‘
उपरोक्त डेटा उन घटनाओं का है जिसको अत्यंत मजबूरी में पुलिस ने दर्ज़ किया है। ये भी ध्यान देने योग्य है कि कैसे अशिक्षा एवं अज्ञानता एवं सामाजिक लोकलाज के भय से दलित एवं आदिवासी समुदाय के लोग अपने ऊपर हुए जघन्यतम अपराधों तक को थाने तक नहीं पहुंचा पाते हैं। बाकी देश अच्छी तरह से वाकिफ है कि कैसे भ्रष्ट पुलिस और प्रशासन रेप केसेस को छेड़खानी बनता है। कैसे उच्च जाति के पुलिस वाले दलितों आदिवासियों के साथ हुए अत्याचारों के बावजूद उनको थाने से भगा देते है।उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड गवाह है कि कैसे पुलिस ने रेप पीड़िता के घर वालों को ही परेशान किया। केस ऐसा बनाया कि अंत में चारो गुनहगार हाईकोर्ट से बरी हो गए। अब सवाल यह है कि क्या हाथरस पीड़िता को न्याय मिला? यदि नहीं तो आगे क्या? क्या विरोध प्रदर्शन व धरने से न्याय मिल पायेगा? इसलिए दलितों और आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों की वास्तविक संख्या ऊपर दी गयी संख्या से कई गुना ज्यादा और भयानक है।
अब बहुजन समाज को आत्म-चिंतन करने की जरूरत है कि क्या विरोध या धरना प्रदर्शन से समस्या का समाधान हो जायेगा? जो गुमराह लोग बसपा पर मिथ्यारोप लगाते है कि बसपा ऐसे मामलों में कुछ नहीं करती है तो उन्हें जानकारी होनी चाहिए कि बसपा के अंदर बहनजी ने जिला एवं मंडल स्तर पर उच्च पदाधिकारियों की टीम बना रखा है जो अपने-अपने क्षेत्र में होने वाले अत्याचारों का संज्ञान लेकर पीड़ित परिवार की कानूनी, आर्थिक आदि मदद करती है। साथ ही बसपा के विधायक, संसद एवं एमएलसी आदि इन मुद्दों को समय-समय पर सदन में उठाते रहते है।
फिलहाल यदि नकारात्मकता के शिकार, बाबासाहेब के मिशन से भटके, मनुवादियों के हाथों बिके व मनुवादी चाल-चरित्र वाले क्षेत्रीय दलों के बहकावे में आकर विरोध व धरना आदि को ही महत्व देने वाले उन्मादी लोगों यह जानकारी होनी चाहिए कि यदि उपरोक्त आकड़ों के मद्देनजर बसपा विरोध धरना व प्रदर्शन करे तो प्रतिदिन बसपा विरोध प्रदर्शन एवं धरना ही करती रहेगी। अब सवाल यह उठता है कि यह विरोध एवं धरना प्रदर्शन कब चल सकता है? क्या ये विरोध और धरना शोषित तबके को सुरक्षा दे सकता हैं? यदि नहीं, तो इसका लाभ क्या है? आकड़ों की बात करें तो तमाम कैंडल मार्च एवं विरोध प्रदर्शन के बावजूद भी अत्याचारों की संख्या में इजाफा ही हुआ है।
अब यदि समाधान की बात करे तो सबसे पहले बहुजन समाज को ये बात स्वीकार करनी होगी कि ऐसी घटनाएं होती रहती है। NCRB 2021 के मुताबिक प्रतिदिन सिर्फ दलित महिलाओं के साथ ही 11 और आदिवासी महिलाओं के साथ 8 बलात्कार होते है। बाकी अत्याचारों की लिस्ट तो बहुत बड़ी है। यदि रोज इनका विरोध ही करते रहेंगे तो समाधान कब करेंगे? विरोध कोई समाधान नहीं है। हमारा विरोधी तो चाहता है कि हम अपनी सारी ऊर्जा और सारा समय विरोध में खर्च करें। इसलिए ही वह हमारे लोगों को भटकाऊ मुद्दे देता रहता है। और हमारा समाज अज्ञानता में लाठी पीटता रहता है। अपने सकारात्मक और सृजनात्मक एजेण्डे दूर मनुवादियों के एजेण्डे के अनुसार काम करता है।
आज के दौर में मनुवादी दल नेता व संगठन आदि ने बहुजन समाज को उलझाकर प्रतिक्रियावादी बना दिया है। ऐसे में बहुजन समाज अपने मूल एजेंडे से भटक गया है। गुमराह हो गया है। यही वजह है कि ये कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तो कभी इनकी कठपुतली सपा, राजद, जदयू, आप, टीएमसी, केसीआर, बीजेडी, शिवसेना आदि के बीच फुटबाल बनकर उनके पैरों की ठोकर खाता रहता है। अपने एजेंडे के बजाय इन मनुवादियों के लिए काम करता रहता है।
नतीजतन, बहुजन दूसरों की सरकारें बनवाता है और खुद की सरकार बनाने के बारे में सोचता भी नहीं है। आज बहुजन समाज के लोग अपनी बसपा पार्टी, अपने नेता (बहनजी), अपने सकारात्मक एवं सृजनात्मक एजेण्डे के बजाय कांग्रेस, सपा, राका, जदयू, टीएमसी, आप, राजद, केसीआर, बीजेडी, शिवसेना आदि की पैरवी करते हुए इन मनुवादियों की सरकार बनवा रहे हैं। आखिर ये लोग अपने सकारात्मक एवं सृजनात्मक एजेण्डे और अपनी अम्बेडकरी वैचारिकी पर आधारित अपनी खुद मुख़्तार बसपा सरकार कब बनायेंगे? जब तक बहुजन दूसरे की सरकार बनवाते रहेंगे तब तक ये अत्याचारों का सिलसिला चलता रहेगा।
अब यदि बहुजन समाज शोषण से मुक्ति और समस्या का समाधान चाहता है, इन अत्याचारों से मुक्ति चाहता है, शांति, सुरक्षा, सौहार्दपूर्ण वातावरण में जीना चाहता है तो उसे अपने वोटों का सही इस्तेमाल करना होगा, अपनी बसपा की सरकार बनानी होगी। शोषित समाज की सरकार बनते ही शासन-प्रशासन शोषित वर्गो के अनुसार काम करेगा। पीड़ित वर्ग अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों पर आसानी से लगाम लगा कर उन्हें ख़त्म कर सकता है जैसा कि बहनजी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की जनता ने चार-चार बार करके दिखाया है। यह एकदम सीधा सा रास्ता है फिर बहुजन की समझ में नहीं आता है, यह आश्चर्य है।
बहुजन समाज को समझना होगा कि न्याय व्यवस्था के अधीन होती है। जब तक व्यवस्था शोषक (उच्च जातियों) के पक्ष में और शोषित वर्गो (आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं दलित समाज) के खिलाफ होगी अत्याचारों का यह सिलसिला चलता रहेगा। यदि सबके साथ एक सामान व्यवहार वाली सरकार, सबके साथ समान न्याय आदि चाहते है तो व्यवस्था बदलनी होगी। व्यवस्था परिवर्तन छोटे-छोटे अत्याचारों, घटनाओं एवं मुद्दों तक सीमित रहकर नहीं किया जा सकता है। व्यवस्था परिवर्तन एक बड़ा लक्ष्य है। इसके लिए बड़ी तैयारी करनी होगी। बड़ा संघर्ष करना होगा। इस संघर्ष की सफलता अनुशासन, एजेंडे की सकारात्मकता एवं सृजनात्मकता पर निर्भर करेगा। इन महत्वपूर्ण एवं मानवीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाबासाहेब, मान्यवर साहेब ने मिशन को चलाया है जिसे अब बहनजी चला रही है। आज का दुखद पहलू यह है कि बहुजन समाज इस बृहद लक्ष्य के लिए संघर्ष करने के बजाय छोटे-छोटे मुद्दों तक सीमित होकर विकल्पहीन, लक्ष्यविहीन एवं अनावश्यक विरोध में उलझ गया है।
बहुजन समाज के पास वोट की ताक़त है। संख्या बल है। अम्बेडकरी वैचारिकी है। बसपा जैसा अखिल भारतीय स्तर पर सक्रिय एक राष्ट्रीय पार्टी है। सकारात्मक एजेंडा है। सृजनात्मक कार्यशैली है। सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति का मानवीय लक्ष्य है। इसके बावजूद यदि बहुजन समाज पर अत्याचारों का सिलसिला जारी है है तो इसकी जिम्मेदारी बहुजन बहुजन समाज पर बनती है क्योंकि यह बहुजन समाज कभी भाजपा, कभी कांग्रेस तो कभी सामाजिक न्याय की रट लगाये क्षेत्रीय दलों में उलझ कर रह जाता है। यही नहीं बहुजन समाज सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति के बृहद लक्ष्य से इतर कभी किसी घटना तो कभी आरक्षण बचाओ, कभी संविधान बचाओ, कभी लोकतंत्र बचाओ, कभी कैंडल जलाओ मार्च आदि में लगातार उलझ कर अपनी सारी ऊर्जा एवं महत्वपूर्ण समय एवं सीमित संसाधन को व्यर्थ नष्ट करता जा रहा है।
उन्मादी व फर्जी आन्दोलन व आंदोलनकारियों से बहुजन समाज को सावधान करते हुए सुविख्यात समाजशास्त्री प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि –
’25 लाख का मुआवज़ा, एक घर, एक कनिष्ट लिपिक की नौकरी, और फास्ट ट्रॅक कोर्ट की जाँच…..शायद इसके बाद सड़क पर आंदोलन चलवाने वालो का गुस्सा शांत हो गया होगा? हो सकता है इससे एक परिवार को व्यक्तिगत राहत भी मिल गयी होगी। परंतु एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2019 में ही लगभग 3500 दलित महिलाओ के साथ यौन उत्तपीड़न की घटनाए हुई। कितने लोग सड़क पर उतरे? हम उन्हे देख भी नही पाए। सड़क पर आंदोलन छोड़ो, इस प्रकार के उत्तपीड़न को रोकने के लिए मजबूत अखिल भारतीय संगठन के साथ-साथ अपने हाथो में सत्ता लेना ज़्यादा ज़रूरी है। हाँ, फर्जी और झूठे सड़क पर उतरो,आंदोलन करवाने वालों से सावधान रहिए। वे तो बस ये चाहते है की हमारा पूरा समाज बस आंदोलन करने में अपना समय, अपनी सोच, अपनी ताक़त, अपनी चाहत, अपना पैसा, और उर्जा खर्च करता रहे। कहीं दलित समाज अपनी शर्तो पर, अपने एजेंडे पर अपना आत्मनिर्भर संगठन बना कर सत्ता पर कब्जा न कर ले।’ अतः स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन समाज सड़क पर उतरकर आंदोलन करने की बजाय सत्ता पर कब्जा करने में लगाएं तो बहुजन समाज के किसी एक परिवार को नहीं बल्कि भारत की पूरी की पूरी जनता को न्याय मिल जाएगा।
दुखद है कि बहुजन समाज यह आज भी नहीं समझ पा रहा है कि इन छोटे-छोटे धरना-प्रदर्शन आदि से हालात बदलने वाले नहीं हैं, अत्याचारों के सिलसिले पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। यदि बहुजन समाज हर तरह के जुल्म-ज्यादती से छुटकारा चाहता है तो उसे बसपा के साथ आना होगा। व्यवस्था परिवर्तन के लिए बसपा के नेतृत्व में राजनैतिक सत्ता अपने हाथो में लेनी होगी क्योंकि राजनैतिक सत्ता सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे सशक्त व कारगर माध्यम है।
याद रहे,
‘विरोध और धरना प्रदर्शन को क्रांति समझना एक गलती है। इससे अभी तक कोई कारगर बदलाव नहीं दिखा है क्योंकि विकल्पहीन, लक्ष्य विहीन एवं अनावश्यक विरोध समस्या का समाधान नहीं है।’
फिलहाल उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन समाज को अनावश्यक मुद्दे पर ऊर्जा और समय खर्च करने के बजाय अपनी बसपा पार्टी, अपने सकारात्मक एवं सृजनात्मक एजेण्डे, अपनी नेता बहनजी और बसपा सरकार की ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय‘ की नीति एवं चहुँमुखी विकास की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करके जन-जन को अपने अम्बेडकरी मिशन से जोड़कर अपनी ‘बसपा सरकार‘ बनाने के लिए सोचना चाहिए, काम करना चाहिए क्योंकि विकल्पहीन, लक्ष्यविहीन एवं अनावश्यक विरोध किसी समस्या का समाधान नहीं है।