42.9 C
New Delhi
Sunday, June 8, 2025

राजनैतिक गठबंधन vs सामाजिक गठबंधन

सामाजिक गठबंधन: बहुजन समाज का स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की राह

प्रस्तावना
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विविधता इसकी आत्मा में बसी है। विभिन्न विचारधाराएँ, क्षेत्रीय मुद्दे, और सामाजिक संरचनाएँ यहाँ के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देती हैं। आजादी के बाद से लेकर आज तक, भारत की शासन सत्ता पर तथाकथित उच्च जातियों का वर्चस्व रहा है। इन समूहों ने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक नीतियों को अपने हितों के अनुरूप ढाला, जिसके परिणामस्वरूप बहुजन समाज—शोषित और वंचित वर्ग—हाशिए पर धकेल दिया गया। इस विषमता को चुनौती देने के लिए मान्यवर कांशीराम ने एक क्रांतिकारी आह्वान किया: “वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।” इसी संकल्प के साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जन्म हुआ, जिसका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और दीर्घकालिक सत्ता के माध्यम से समतामूलक समाज की स्थापना करना है। यह लेख बसपा की इस अनूठी नीति—’सामाजिक गठबंधन’—के महत्व को उजागर करता है, जो राजनीतिक गठबंधनों से कहीं अधिक प्रभावशाली और दूरदर्शी है।


बसपा की विचारधारा: एक आंदोलन का स्वरूप
बसपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जिसकी जड़ें बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों में निहित हैं। मान्यवर कांशीराम ने इस आंदोलन को एक नया आयाम दिया, जिसमें शोषित और वंचित समाज को ‘बहुजन समाज’ के रूप में संगठित कर, उसे आत्मनिर्भर सत्ता दिलाने का संकल्प लिया गया। इस विचारधारा का आधार है—एक विचार (अम्बेडकरवादी सिद्धांत), एक लक्ष्य (समतामूलक समाज), एक दल (बसपा), एक झंडा (नीला झंडा, हाथी निशान), और एक नेतृत्व (बहनजी मायावती)। बसपा का मानना है कि सत्ता केवल साधन है, मंजिल नहीं; असली मंजिल है सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बसपा ने ‘सामाजिक गठबंधन’ को अपनी प्राथमिक रणनीति बनाया, जो जनता के बीच एकता, बंधुत्व और आत्मनिर्भरता की नींव रखता है। भाईचारा कमेटियां बसपा के सामाजिक गठबंधन के प्रति प्रतिबद्धता का सशक्त प्रमाण है। 


राजनीतिक गठबंधन: लाभ और सीमाएँ
भारतीय राजनीति में गठबंधनों का इतिहास पुराना है। विभिन्न दल तात्कालिक लाभ और सत्ता के लिए एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाते हैं, परंतु बसपा ने इस दृष्टिकोण को सीमित रूप में ही अपनाया। जब भी बसपा ने राजनीतिक गठबंधन किए—जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा या सपा के साथ—तो उसने अपने सिद्धांतों से समझौता किए बिना शोषित समाज के हित में ऐतिहासिक कार्य किए। उदाहरण के लिए, बहनजी के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकारों ने दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा, आरक्षण, और विकास की योजनाएँ लागू कीं। किंतु, गठबंधनों की एक कड़वी सच्चाई यह रही कि बसपा का वोट सहयोगी दलों को तो हस्तांतरित हो जाता है, परंतु सहयोगियों का वोट बसपा को नहीं मिलता।

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन इसका स्पष्ट उदाहरण है। इस गठबंधन में बसपा का वोट सपा को मिला, किंतु सपा का यादव वोट बसपा के पक्ष में नहीं आया—यह या तो शिवपाल यादव की पार्टी को गया या भाजपा को हस्तांतरित हो गया। परिणामस्वरूप, बसपा का वोट प्रतिशत पिछले चुनावों की तुलना में घट गया। मान्यवर कांशीराम इसे “दलदल में फंसना” कहते थे। इसलिए, बसपा ने राजनीतिक गठबंधनों को केवल आवश्यकता के समय ही अपनाया, परंतु इसे कभी प्राथमिकता नहीं दी। यह दृष्टिकोण बसपा को अन्य दलों से अलग करता है, जो गठबंधनों को अपनी राजनीति का आधार बनाते हैं।


सामाजिक गठबंधन: आत्मनिर्भरता और स्थायित्व की कुंजी
सामाजिक गठबंधन का अर्थ है एकता, बंधुत्व की ठोस बुनियाद पर जनता के बीच विचारधारा, लक्ष्य, और नेतृत्व के प्रति विश्वास स्थापित करना। यह गठबंधन तात्कालिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और आत्मनिर्भर सत्ता के लिए होता है। इसके माध्यम से बहुजन समाज को संगठित कर, उसे सत्ता तक पहुँचाने और समतामूलक समाज की नींव रखने का मार्ग प्रशस्त होता है। राजनीतिक गठबंधन से सत्ता तो मिल सकती है, परंतु वह स्थायी नहीं होती—हर चुनाव में नए सहयोगियों की आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत, सामाजिक गठबंधन एक ऐसी शक्ति का निर्माण करता है जो आत्मनिर्भर हो और जिसमें बाहरी सहायता की जरूरत न्यूनतम हो।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मायावती की निर्वाचन आयोग से अहम बैठक; EVM तथा चुनाव प्रणाली पर गंभीर चर्चा?

नई दिल्ली: देश की राजधानी स्थित निर्वाचन सदन में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती बहनजी ने आज भरत के मुख्य निर्वाचन...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...