सामाजिक गठबंधन: बहुजन समाज का स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की राह
प्रस्तावना
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विविधता इसकी आत्मा में बसी है। विभिन्न विचारधाराएँ, क्षेत्रीय मुद्दे, और सामाजिक संरचनाएँ यहाँ के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देती हैं। आजादी के बाद से लेकर आज तक, भारत की शासन सत्ता पर तथाकथित उच्च जातियों का वर्चस्व रहा है। इन समूहों ने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक नीतियों को अपने हितों के अनुरूप ढाला, जिसके परिणामस्वरूप बहुजन समाज—शोषित और वंचित वर्ग—हाशिए पर धकेल दिया गया। इस विषमता को चुनौती देने के लिए मान्यवर कांशीराम ने एक क्रांतिकारी आह्वान किया: “वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।” इसी संकल्प के साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जन्म हुआ, जिसका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और दीर्घकालिक सत्ता के माध्यम से समतामूलक समाज की स्थापना करना है। यह लेख बसपा की इस अनूठी नीति—’सामाजिक गठबंधन’—के महत्व को उजागर करता है, जो राजनीतिक गठबंधनों से कहीं अधिक प्रभावशाली और दूरदर्शी है।
बसपा की विचारधारा: एक आंदोलन का स्वरूप
बसपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जिसकी जड़ें बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों में निहित हैं। मान्यवर कांशीराम ने इस आंदोलन को एक नया आयाम दिया, जिसमें शोषित और वंचित समाज को ‘बहुजन समाज’ के रूप में संगठित कर, उसे आत्मनिर्भर सत्ता दिलाने का संकल्प लिया गया। इस विचारधारा का आधार है—एक विचार (अम्बेडकरवादी सिद्धांत), एक लक्ष्य (समतामूलक समाज), एक दल (बसपा), एक झंडा (नीला झंडा, हाथी निशान), और एक नेतृत्व (बहनजी मायावती)। बसपा का मानना है कि सत्ता केवल साधन है, मंजिल नहीं; असली मंजिल है सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बसपा ने ‘सामाजिक गठबंधन’ को अपनी प्राथमिक रणनीति बनाया, जो जनता के बीच एकता, बंधुत्व और आत्मनिर्भरता की नींव रखता है। भाईचारा कमेटियां बसपा के सामाजिक गठबंधन के प्रति प्रतिबद्धता का सशक्त प्रमाण है।
राजनीतिक गठबंधन: लाभ और सीमाएँ
भारतीय राजनीति में गठबंधनों का इतिहास पुराना है। विभिन्न दल तात्कालिक लाभ और सत्ता के लिए एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाते हैं, परंतु बसपा ने इस दृष्टिकोण को सीमित रूप में ही अपनाया। जब भी बसपा ने राजनीतिक गठबंधन किए—जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा या सपा के साथ—तो उसने अपने सिद्धांतों से समझौता किए बिना शोषित समाज के हित में ऐतिहासिक कार्य किए। उदाहरण के लिए, बहनजी के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकारों ने दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा, आरक्षण, और विकास की योजनाएँ लागू कीं। किंतु, गठबंधनों की एक कड़वी सच्चाई यह रही कि बसपा का वोट सहयोगी दलों को तो हस्तांतरित हो जाता है, परंतु सहयोगियों का वोट बसपा को नहीं मिलता।
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन इसका स्पष्ट उदाहरण है। इस गठबंधन में बसपा का वोट सपा को मिला, किंतु सपा का यादव वोट बसपा के पक्ष में नहीं आया—यह या तो शिवपाल यादव की पार्टी को गया या भाजपा को हस्तांतरित हो गया। परिणामस्वरूप, बसपा का वोट प्रतिशत पिछले चुनावों की तुलना में घट गया। मान्यवर कांशीराम इसे “दलदल में फंसना” कहते थे। इसलिए, बसपा ने राजनीतिक गठबंधनों को केवल आवश्यकता के समय ही अपनाया, परंतु इसे कभी प्राथमिकता नहीं दी। यह दृष्टिकोण बसपा को अन्य दलों से अलग करता है, जो गठबंधनों को अपनी राजनीति का आधार बनाते हैं।
सामाजिक गठबंधन: आत्मनिर्भरता और स्थायित्व की कुंजी
सामाजिक गठबंधन का अर्थ है एकता, बंधुत्व की ठोस बुनियाद पर जनता के बीच विचारधारा, लक्ष्य, और नेतृत्व के प्रति विश्वास स्थापित करना। यह गठबंधन तात्कालिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और आत्मनिर्भर सत्ता के लिए होता है। इसके माध्यम से बहुजन समाज को संगठित कर, उसे सत्ता तक पहुँचाने और समतामूलक समाज की नींव रखने का मार्ग प्रशस्त होता है। राजनीतिक गठबंधन से सत्ता तो मिल सकती है, परंतु वह स्थायी नहीं होती—हर चुनाव में नए सहयोगियों की आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत, सामाजिक गठबंधन एक ऐसी शक्ति का निर्माण करता है जो आत्मनिर्भर हो और जिसमें बाहरी सहायता की जरूरत न्यूनतम हो।