विश्वविद्यालयी विधा में प्रोफेसर, शोधार्थी व आधारभूत संरचना प्रमुख अंग हैं। किसी विश्वविद्यालय का नाम और अर्जित सोहरत इनके सामूहिक कृत्यों का प्रतिफल होता है। हर अंग का अपना महत्व है जिसमें प्रोफेसर शब्द सबसे अहम और उच्चतम् अकादमिक पद है। ये विद्वानों द्वारा अर्जित सिर्फ एक अलंकार न होकर एक जिम्मेदारी है।
प्रोफेसर अपने विषय का विशेषज्ञ, मूलतः शोधकर्ता, शोधार्थियों का सुपरवाइजर, सर्वोच्च स्तर का विश्वविद्यालयी शिक्षक होता है जो सामान्यतः स्नातक, स्नातकोत्तर आदि को विश्वविद्यालयों में पढ़ाता भी है।
प्रोफेसर शब्द क्षेत्र विशेष में विद्वता का परिचायक है। प्रोफेसर को ज्ञानवान होने के साथ-साथ नैतिक भी होना चाहिए। यह नैतिकता ही ज्ञान को मानव हित में इस्तेमाल करना सुनिश्चित करता है। यदि किसी ज्ञानवान में नैतिकता और सत्यनिष्ठा नहीं है तो वह अपने ज्ञान का दुरूपयोग भी कर सकता है। स्पष्ट है कि एक प्रोफेसर को ज्ञानवान होने के साथ-साथ नैतिक और सत्यनिष्ठावान भी होना चाहिए।
प्रोफेसर किताबों, घटनाओं, समाजिक परिस्थितियों और स्वतंत्र चिंतन की अंतरक्रिया के परिणामस्वरूप ज्ञान-विज्ञान की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मानवता के हित में नवीन ज्ञान का उत्पादन करता है, उसका प्रचार-प्रसार करता हैं, ज्ञान का विकेन्द्रीकरण कर समाज के अंतिम पायदान पर बैठे मानव तक ज्ञान को पहुँचाने में अहम भूमिका निभाता है।
आजकल समाज में प्रोफेसर जैसे इतने महत्वपूर्ण शब्द का बडे़ गैर-जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। एक शोधार्थी के विश्वविद्यालयी क्षेत्र में सहायक अध्यापक बनने से लेकर प्रोफेसर बनने तक का सफर तय करने में उच्च कोटि के शोध, शोध सुपरविजन के साथ-साथ कम से कम 15 वर्षों का अनुभव चाहिए होता है परन्तु सामाजिक न्याय के नाम पर जागरूक दलित समाज में जाकर ‘ब्रह्मणवाद’ के नाम पर जाति विशेष को कोसकर ख्याति प्राप्त करने वाले भी यूट्यूब चैनल्स आदि माध्यमों से खुद को प्रोफेसर के तौर पर प्रचारित करवाकर टीआरपी बटोरने की होड़ में लगे हुए हैं। यह अत्यंत दुखद है कि प्रोफ़ेसर जैसे उच्चतम अकादमिक पद का भारत में इतने धड़ल्ले से जिम्मेदारी से इतर सिर्फ अलंकार के तौर पर प्रयोग किया जा रहा। इसका एक संभावित कारण यह हो सकता है कि भारत में क्षेत्र विशेष में विद्वता के इस उच्चतम पद को लोगों ने शायद सिर्फ जीविका साधन यानि कि नौकरी मात्र ही समझा है। यही संभव वजह प्रतीत होती कि शब्दों के मूल मायने से दूर ऐसे एढ़ाग के अध्यापकों द्वारा प्रोफेसर (यूट्यूबर्स आदि माध्यमों के जरिये) के रूप में खुद को प्रचारित करवा जाना देश के लिए ज्ञान उत्पादन करने वाले उच्च कोटि के शिक्षकों व विश्वविद्यालयों के साथ किसी अन्याय से कम नहीं है।
अपने विषय में उम्दा श्रेणी के विश्वस्तरीय शोधपत्र लिखने वाले, विश्व के टॉप शोधपत्रों में प्रकाशित करने के साथ देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में होने वाले सेमिनारों आदि में अपने विषय को गहराई से व्यक्त करने के संदर्भ में समतावादी विचारक, सुविख्यात समाज विज्ञानी प्रो विवेक कुमार प्रोफेसर शब्द के मायने व इसके दायित्व को बड़ी गहराई परन्तु बडे़ सरल ढंग से व्याख्यायित करते हुए लिखते हैं कि –
‘यूनिवर्सिटी और कालेज के शिक्षकों का कर्तव्य बनता है की वे अपने विषय के ज्ञान का प्रचार एवं प्रसार करे ताकि उनका ज्ञान चंद अभिजात्य वर्ग की पूंजी न होकर जनसामान्य तक पहुंचाया जा सके।’
यद्द्पि इसके लिए अपनी यूनिवर्सिटी में पढ़ना, फिर अपने शोध छात्रों के शोध-प्रबंधों को सुपरवाइज करना, साथ-साथ शोध-पत्रों में अपने लेखों को राष्ट्रिय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर प्रकशित करना, अपने ज्ञान को मानक प्रकाशकों से बिना अपना पैसा व्यय किये प्रकशित करना एवं विश्वविद्यालय के अनेक कार्यालयों में अपना योगदान देने के बाद इसके लिए समय निकालना अत्यंत कठिन होता है। यह तभी हो सकता है जब आपमें अपने विषय के प्रति प्रतिबद्धता एवं समर्पण हो।’
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर प्रो विवेक कुमार ने ख़ुद को विश्वविद्यालय, अपने विषय, शोध, सुपरविजन में जहाँ प्रोफेसर शब्द के मायने को चरितार्थ किया वहीं दूसरी तरफ विषमतावादी संस्कृति वाले समाज में समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाते हुए, विश्वविद्यालय कैंपस के बाहर, समाज में भी अपने दायित्वों को पूरी निष्ठा कर साथ निभा रहे है।
अपने प्रोफेशन के प्रति ईमानदारी, निष्ठा एवं समर्पण से जहाँ अकादमिक जगत में प्रोफ़ेसर शब्द के मायने चरितार्थ करते हुए एक आदर्श स्थापित किया है तो वहीं दूसरी तरफ बुद्ध, रैदास, फूले, अम्बेडकर जैसे समतावादी महानायकों, महानायिकाओं, संतों, गुरूओं के संघर्षों, संदेशों में गहरी आस्था व इनके समतावादी विचारों के प्रति प्प्रतिबद्धता के चलते ही आज प्रो विवेक कुमार भारत राष्ट्र निर्माण को समर्पित ‘बहुजन आन्दोलन और युवाओं’ के बीच एक मजबूत कड़ी बनकर भारत राष्ट्र निर्माण के वाहक बहुजन आन्दोलन के एक मजबूत स्तम्भ भी बन चुके हैं।
— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)