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Monday, June 9, 2025

NDA बनाम BPA : बसपा के नेतृत्व में भाजपा को हराया जा सकता है

आने वाले आम लोकसभा चुनाव-2024 को लेकर राजनैतिक जमीन की गर्मी अभी से महसूस की जा सकती है। परतंत्र राजनैतिक दलों ने अपने महत्व को बनाये रखने के लिए लगातार दलीय सम्मेलन कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि जो दल इस सम्मेलन में शामिल हैं वे सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर लम्बे समय से भाजपा के सहयोगी रहे हैं। इनमें से कई दलों ने तो भाजपा के साथ प्री-पोल एलायंस करके चुनाव तक लड़ा है। डीएमके आदि एनडीए की सरकार में शामिल रहे हैं। सपा, राजद जैसे दलों ने उत्तर प्रदेश और विहार का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने में भाजपा का साथ देकर भाजपा को मजबूत किया है। ऐसे में सभी क्षेत्रीय दल जो भाजपा के साथ रहें हैं या बाहर रहकर भाजपा को मजबूत किया है वे बिके हुए अखबारों, यूट्यूबर्स और सोशलमीडिया के तथाकथित जानकारों के माध्यम से खुद को सेक्युलर घोषित कर खुद को विकल्प के तौर पर जबरन प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे में नैगेटिव नैरेटिव्स एवं एजेण्डा, जो एंटी-बहुजन है, लाजमी है।

इसी कड़ी में दलितों को गुमराह करने के लिए कुछ तथाकथित विद्वानों ने एजेण्डा चलाया है कि दलित समाज किसी दलित को लाल किले पर ध्वजारोहण करते देखना चाहता है जबकि सत्य यह है कि दलित समाज किसी भी दलित को नहीं बल्कि Ambedkarites by Conviction वाले दलित को लाल किले पर ध्वजारोहण करते देखना चाहता है। खरगे जी कांग्रेस के लिए विकल्प हो सकतें हैं परन्तु बहुजन समाज के लिए कतई नहीं क्योंकि खरगे साहब Ambedkarites by Convenience (मौसमी अम्बेडकरवादी जो कि या तो मनुवादी होता है या फिर मनुवादियों का चमचा होता है जो कि बहुजन समाज की आत्मनिर्भर सत्ता के रास्ते में बाधा होता है) का हिस्सा हैं, परतंत्र राजनीति (जिसमें इनके चेहरे का इस्तेमाल कर पार्टी के मूल एजेण्डा को लागू करने के लिए किया जाता है। इसमें सिर्फ इनका चेहरा होता और एजेण्डा, नीति, रणनीति आदि पार्टी का होता है जो कि मनुवादी होता है) का हिस्सा हैं जबकि बाबासाहेब, मान्यवर साहेब ने बहुजन समाज को Ambedkarites by Conviction और स्वतंत्र राजनीति का खुला संदेश देते हैं।

ऐसे में, सत्य यही है कि भारत का वंचित शोषित जगत सिर्फ और सिर्फ ‘बहनजी‘ को लाल किले पर ध्वजारोहण करते हुए देखना चाहता है। बिना बहनजी के भाजपा को हटाना आसान नहीं है। इसलिए कांग्रेस एवं सभी गैर-एनडीए दलों आदि के पास बहनजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

याद रहे, मोदी जी अगर किसी के सामने बौने नजर आते हैं तो वह बहनजी हैं। भाजपा को यदि कोई शिकस्त दे सकी है तो वह बसपा है। भाजपा के समर्थन को तीन बार अपने एजेण्डे के मुताबिक यदि सरकार बनाकर कोई इस्तेमाल करने में सफल रही है तो वह बसपा ही है। केन्द्र की भाजपा सरकार को यदि कोई अकेले दम पर अपने एक वोट से सत्ताच्युत करने में सफल रही है तो भी वह बसपा है।

कांग्रेस यदि बसपा को किनारे कर देश में सबके साथ भी गठबंधन कर ले तो भी आज की भाजपा को सत्ता से बाहर नहीं कर सकती है। इस बात की ठोस वजह है। आज स्वतंत्र विचारधारा, नायक-नायिकाएं, स्वतंत्र सकारात्मक एजेण्डा, आत्मनिर्भर रणनीति, जमीनी समर्थन, स्वतंत्र इतिहास एवं सांस्कृतिक पूंजी वैचारिक जंग के हथियार हैं। इसलिए यदि आज के दौर में पड़ताल की जाय तो अपनी स्वतंत्र विचारधारा, नायक-नायिकाएं, स्वतंत्र सकारात्मक एजेण्डा, आत्मनिर्भर रणनीति, जमीनी समर्थन, स्वतंत्र इतिहास और सांस्कृतिक पूंजी के तौर पर BSP के बाद यदि कोई आत्मनिर्भर दल हैं तो वह BJP ही है।

यदि थर्ड फ्रंट के नाम पर अनावश्यक सम्मेलन कर जनता को गुमराह करने वाले तमाम क्षेत्रीय दलों पर गौर किया जाय तो उनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है, नायक-नायिकाओं संग स्वतंत्र सकारात्मक एजेण्डे, आत्मनिर्भर रणनीति, ऐतिहासिक धाती और सांस्कृतिक पूंजी का नितांत अभाव है। यदि ये सभी क्षेत्रीय दल किसी विचारधारा, नायक-नायिकाओं, ऐतिहासिक धाती एवं सांस्कृतिक पूंजी आदि को क्लेम भी करते हैं तो वह पहले से ही भाजपा का हिस्सा है। या यूँ कहिए कि आज के दौर में बसपा और भाजपा को छोड़कर किसी भी दल के पास अपनी कोई स्वतंत्र विचारधारा, नायक-नायिकाएं, स्वतंत्र सकारात्मक एजेण्डा, आत्मनिर्भर रणनीति, ऐतिहासिक धाती और सांस्कृतिक पूंजी बिल्कुल नहीं है। ऐसे में इन महत्वपूर्ण तत्वों के अभाव में भाजपा को शिकस्त देना बहुत कठिन है।

थर्ड फ्रंट वालों के संदर्भ में दो बातें और भी महत्वपूर्ण है कि इनमें आपसी खींचातानी है। ये कभी भी एक सहमति के प्वाइंट पर नहीं आ सकतें हैं क्योंकि ये अपने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तय कर ले तो बड़ी बात होगी क्योंकि इसमें हर कोई अपने आप को प्रधानमंत्री की रेस का रेसर समझता है। दूसरा कारण है इनका अपने क्षेत्र विशेष में सीमित होना है। इनका इनके क्षेत्र विशेष के बाहर कोई जमीन नहीं है। इसलिए केन्द्र में बनने वाली सरकार को प्रभावित मात्र करने के लिए ये दल थर्ड फ्रंट के नाम पर हमेशा से सम्मेलन करते रहते हैं ताकि केन्द्र में इनकी पूंछ बनी रहे। ये भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए नहीं सम्मेलन कर रहे हैं क्योंकि ये जानते हैं कि आज की भाजपा को रोकना इनके सामर्थ्य के बाहर है। इसलिए ये जैसे-तैसे खुद को जिंदा रखने के लिए सम्मेलन कर रहे हैं क्योंकि ये भी अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत की जनता विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में अलग-अलग सोच के साथ वोट करती है। ऐसे में जनता को गुमराह करने वाले इस तरह के सम्मेलन इनके लिए मृत्यु के दरवाजे पर खड़े व्यक्ति की अंतिम सांसों की तरह है जिसे टूटने से रोकना इनका मकसद है बजाय कि भाजपा को सत्ताच्युत करने के।

आगे, यदि तथाकथित सामाजिक न्याय के मौसमी पैरोकारों की बात मानकर इस चुनावी जंग (2024) को मनुवाद (भाजपा) को शिकस्त देने के नजरिये से भी देखा जाय तो भी इसका विकल्प अम्बेडकरवाद है जिसकी एकमात्र वाहक बहनजी के नेतृत्व वाली ‘सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति‘ को समर्पित बसपा ही है। अत: यह स्वत: स्पष्ट है कि यदि भाजपा का कोई विकल्प है तो बसपा ही है।

यदि नरेंद्र दामोदर मोदी किसी के सामने बौने हैं तो वह बहनजी ही हैं। यदि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का कोई विकल्प हो सकता है तो वह बसपा के नेतृत्व वाली ‘बहुजन प्रोग्रेसिव एलायंस‘ (BPA – Bahujan Progressive Alliance) जैसी एलायंस ही हो सकती है। बसपा के नेतृत्व में इस तरह के सफल एलायंस की प्रबल संभावना है। वजह – बसपा एक आत्मनिर्भर राष्ट्रीय दल है। देश के हर राज्य में इसकी जमीन है। प्रभावशाली, सक्षम, दूरदर्शी व कुशल नेतृत्व है। राष्ट्र हित चाहने वालों को अब सोचना होगा कि यदि मनुवादी भाजपा एवं कांग्रेस के नेतृत्व में एनडीए यूपीए बन सकता है, सफलतापूर्वक शासन कर सकता है तो अम्बेडकरवादी बसपा के नेतृत्व में भी एलायंस सफलतापूर्वक बेहतरीन शासन कर सकता है।

फिलहाल, यदि बहनजी द्वारा विभिन्न प्रेस कॉन्फ्रेंस एवं ट्विटर के जरिये दिये गए तमाम बयानों पर गौर करें तो स्पष्ट है कि जब तक कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय दल आदि बहनजी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं करते हैं, खुला समर्थन नहीं देते हैं तब तक बसपा ‘एकला चलो’ की नीति पर अडिग रहेगी।

ऐसे में अब तय कांग्रेस आदि को करना है कि वो भाजपा के साथ हैं या खिलाफ। यदि खिलाफ है तो उनके पास बहनजी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि सभी सकारात्मक मापदंडों पर देखा जाय तो नरेंद्र दामोदर मोदी का कद आज भी बहनजी के सामने बहुत ज्यादा बौना है। भाजपा का विकल्प सिर्फ और सिर्फ बसपा ही दिखाई पड़ती है। एनडीए शिकस्त का नाम है बसपा के नेतृत्व वाली ‘बहुजन प्रोग्रेसिव एलायंस’ है। आज सभी लोग एकजुट होकर ‘बहनजी‘ को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करें तो चुनाव से पहले ही भाजपा बैकफुट पर होगी। बसपा के नेतृत्व में ‘बहुजन प्रोग्रेसिव एलायंस’ (BPA) की सरकार होगी। अब गेंद कांग्रेस एण्ड कम्पनी के हाथ में है कि क्या कांग्रेस और गैर-एनडीए राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल बसपा (BSP) के नेतृत्व में ‘बहुजन प्रोग्रेसिव एलायंस‘ (BPA) में शामिल होने को तैयार हैं?


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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