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Monday, June 9, 2025

नया संसद भवन : ‘अनावश्यक विरोध’ विरोध के मायने को कमजोर करता है

लोकतंत्र की सीटों का निर्धारण जनसंख्या के अनुसार किया जाता है। मौजूदा लोकसभा की सीटों का निर्धारण 1971 की जनसंख्या को आधार मानकर किया गया है। आज आधी सदी बीत चुकी है। इस दरमियाँ जनसंख्या में भी काफी इजाफा हुआ है। इसके मद्देनजर लोकसभा सीटों को बढ़ाना जरूरी हो गया। लोकसभा सीटों को बढ़ाने से पहले सभी सांसदों के बैठने के लिए जगह भी होनी चाहिए। इस लिहाज़ से संविधान निर्माण का साक्षी और भारत की ऐतिहासिक व गौरवशाली धरोहर हमारी संसद में स्पेस को लेकर समस्या है। इसलिए नये संसद भवन का निर्माण जरूरी हो गया। इस राष्ट्रहित के मुद्दे पर मौजूदा भाजपा सरकार से पहले कांग्रेस सरकार ने भी विचार किया है। फिलहाल मौजूदा केन्द्र सरकार ने भव्य संसद भवन का निर्माण कराया और भारत को इस नवीन धरोहर से नवाजा है। ये देश के लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक कार्य है।

Naya Sansad Bhavan New Parliament Building of India

सरकार ने इसका निर्माण कराया है तो इसका उद्घाटन भी सरकार के मुखिया ही कर रहे हैं। अब दलित, आदिवासी, पिछड़ों एवं अकलियत समाज को उसके मुद्दे से भटकाने हेतु इस ऐतिहासिक कार्य का विरोध करते हुए भाजपा के ही छुपे परन्तु सच्चे संगी कांग्रेस, सपा, आप आदि ने उद्घाटन को लेकर विरोध शुरू किया है। इनका मानना है कि संसद भवन का उद्घाटन संसद के तीसरे महत्वपूर्ण भाग यानि कि देश की प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए। कांग्रेस की बात से यदि सहमति जताई भी जाय तो सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। वहाँ जब नये विधानसभा भवन निर्माण के बाद उद्घाटन का समय आया तो कांग्रेस की छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ के राज्यपाल को क्यों आमंत्रित नहीं किया? क्यों कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा सभा का उद्घाटन कांग्रेस की नेता सुश्री सोनिया गाँधी जी से कराया?

फिर भी, यदि सरकार को विपक्ष यह सलाह देती कि नये संसद भवन का उद्घाटन महामहिम राष्ट्रपति द्वारा कराया जाना चाहिए तो भी इनकी बात को समझा जा सकता था परन्तु जिस तरह से कांग्रेस आदि विरोध कर रहे हैं, बहिष्कार कर रहे हैं यह लोकतंत्र में विरोध के मायने को कमज़ोर कर रहा है। हमेशा सरकार का विरोध ठीक नहीं है। सरकार का विरोध जनविरोधी मुद्दों पर होना चाहिए। जनहित के मुद्दों पर विपक्ष का नैतिक दायित्व है कि वह सरकार का साथ दे। सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना विपक्ष में लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक नैतिकता के साथ-साथ उनके कमज़ोर आत्मबल को परिलक्षित करता है। और, कमज़ोर लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक मूल्यों वाला विपक्ष कभी सशक्त लोकतंत्र निर्माण के साथ न्याय नहीं कर सकता है। आज के विपक्ष एवं सत्ता पक्ष को भारत की तीन महान शख्सियतों (बाबासाहेब, मान्यवर साहेब एवं बहनजी) से सीख लेनी चाहिए कि कैसे उन्होंने हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हमेशा राष्ट्र हित को आगे रखते हुए जनहित में लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक मूल्यों को जहन में रखकर मुद्दों के अनुसार सरकार का पूरी दृढ़ता के साथ विरोध भी किया और साथ भी दिया है, फिर चाहे केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा। इतिहास गवाह है बसपा ने उत्तर प्रदेश में तीन बार गठबंधन की सरकार जरूर चलाई है परन्तु अपनी शर्तों एवं अपने एजेण्डे पर। उत्तर प्रदेश में जब भाजपा ने लोकतंत्र को कमज़ोर करने का अलोकतांत्रिक एवं असंवैधानिक कृत्य किया तो भाजपा को सबक सिखाने के लिए लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक तरीके से बहनजी ने एक वोट से भाजपा की सरकार गिरा कर भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था।

इसलिए बहुजन समाज को समझना होगा कि ‘सिर्फ विरोध के लिए विरोध अनुचित है।’ कांग्रेस सपा आप आदि मिलकर बहुजन समाज को उसके अपने आन्दोलन और एजेण्डे से दूर करने के लिए ऐसे षड्यंत्र करते हैं। कांग्रेस सपा आप भाजपा टीएमसी राजद जदयू समेत सभी जातिवादी एवं साम्प्रदायिक दल बहुजन आन्दोलन की एकमात्र वाहक बहुजन समाज समाज पार्टी को रोकने के लिए ऐसे षड्यंत्र करते हैं। चिंता का विषय यह है कि ऐसे भटकाऊ मुद्दों एवं षड्यंत्रों में उलझ कर बहुजन समाज अपने नेतृत्व और दल पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर देता है। बहुजन समाज का यह रवैया बहुजन आन्दोलन के हानिकारक है। बहुजन समाज को अपने एजेण्डे पर अडिग रहते हुए मनुवादी षड्यंत्रों से सावधान व इनके जाल से दूर रहना होगा।

ऐसे में कम से कम अब बहुजन समाज को मूल्यांकन करना चाहिए कि राष्ट्र की ऐतिहासिक धरोहर का कांग्रेस, सपा, आप आदि द्वारा किया जा रहा विरोध कितना जायज़ है? वैसे तो यह सर्वविदित है कि भाजपा के लोग भी मुगलों की बनाई राष्ट्रीय धरोहर का विरोध करते हैं जो कि निन्दनीय एवं अनुचित है परन्तु कांग्रेस, सपा, आप आदि संसद भवन का विरोध कर रहे हैं। सपा के लोग तो भारत की राष्ट्रीय धरोहर ‘अम्बेडकर पार्क‘ तक का विरोध करते हैं। सपा के लोग तो बाबा साहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी की मूर्ति तक को तोड़ने में लगे रहते हैं। यह तो और भी ज्यादा निन्दनीय एवं अनुचित है। इस परिप्रेक्ष्य में भाजपा और कांग्रेस, सपा, आप, राजद, जदयू, टीएमसी, एनसीपी आदि सब एक साथ हैं। ये सब अलग-अलग चेहरे के साथ एक ही विचारधारा (मनुवाद) की पोषक हैं। ऐसे में क्या भाजपा विरोध, क्या कांग्रेस समर्थन? इससे बहुजन को क्या सरोकार है? यदि कोई इस समय संसद भवन के मुद्दे पर किसी भी अस्मिता को लेकर यदि संसद भवन स्वागत समारोह का बहिष्कार करता है तो यह सब दलितों, आदिवासियों, पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों को गुमराह करने मात्र के लिए है।

फिलहाल, यह भी सत्य है कि नये संसद भवन का निर्माण सरकार ने कराया है तो सरकार को इसका उद्घाटन करने का पूरा हक है। परन्तु फिर भी यदि सरकार चाहती, तो नये संसद भवन का उद्घाटन महामहिम राष्ट्रपति द्वारा करवा सकती थी परन्तु जब प्रधानमंत्री कैमराजीवी हो तो ऐसा होना असंभव है। इसलिए सब कुछ जानते हुए अनावश्यक मुद्दों पर ऊर्जा एवं समय खर्च करना विवेक हीनता का परिचायक है।

फिलहाल, बुद्ध, फूले, शाहू, अम्बेडकर आन्दोलन को समर्पित बहनजी के स्टैंड का लोग इंतजार कर रहे थे। बहनजी ने अपने सकारात्मक एवं सृजनात्मक एजेण्डे के अनुसार दलगत राजनीति से ऊपर उठकर फैसला लेते हुए भाजपा, कांग्रेस आदि से अलग भारतीय लोकतंत्र में होने वाले परिसीमन के मद्देनजर नयी ऐतिहासिक व राष्ट्रीय धरोहर नये संसद भवन का स्वागत किया है। 25 मई 2023 को बहनजी लिखतीं है कि – ‘केन्द्र में पहले चाहे कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो या अब वर्तमान में बीजेपी की, बीएसपी ने देश व जनहित निहित मुद्दों पर हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनका समर्थन किया है तथा 28 मई को संसद के नये भवन के उद्घाटन को भी पार्टी इसी संदर्भ में देखते हुए इसका स्वागत करती है।

BSP Supremo Mayawati Tweets on New Parliament Building of India

नये संसद भवन के उद्घाटन को दलित आदिवासी अस्मिता से जोड़ कर बहुजन को गुमराह करने वाली कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के दोहरे चरित्र को उजागर करते हुए बहनजी लिखतीं है कि – ‘राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा नए संसद का उद्घाटन नहीं कराए जाने को लेकर बहिष्कार अनुचित है। सरकार ने इसको बनाया है इसलिए उसके उद्घाटन का उसे हक है। इसको आदिवासी महिला सम्मान से जोड़ना भी अनुचित है। यह उन्हें निर्विरोध न चुनकर उनके विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा करते वक्त सोचना चाहिए था।

भाजपा कांग्रेस आदि के एजेंडे से दूर बहनजी ने संसद भवन का स्वागत किया है। अपनी पूर्व निर्धारित समीक्षा बैठकों के कारण बहनजी संसद भवन के स्वागत में शामिल नहीं पायेंगी परन्तु उन्होंने अन्य दलों की तरह अनावश्यक विरोध को किनारे करते हुए लिखतीं हैं कि – ‘देश को समर्पित होने वाले कार्यक्रम अर्थात नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का निमंत्रण मुझे प्राप्त हुआ है, जिसके लिए आभार और मेरी शुभकामनायें। किन्तु पार्टी की लगातार जारी समीक्षा बैठकों सम्बंधी अपनी पूर्व निर्धारित व्यस्तता के कारण मैं उस समारोह में शामिल नहीं हो पाऊंगी।‘ इस प्रकार बहनजी दलगत राजनीति से ऊपर देशहित एवं जनकल्याण के मद्देनजर नये संसद भवन का स्वागत करते हुए बहुजन आन्दोलन के महत्वपूर्ण का कार्य में पूरी सकारात्मकता के साथ तल्लीन हैं।

भाजपा विरोध को मिशन समझने वाले लोग आज कांग्रेस के साथ खड़े हैं। जबकि गांधीजी को अपनी सांस्कृतिक पूंजी का हिस्सा मानने वाली कांग्रेस के नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहिर लाल नेहरू ने ‘चीन से पराजय के मात्र दो महीने बाद ही उस आरएसएस को गणतंत्र दिवस (1963) की परेड में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जिसे कभी उन्होंने अपने प्रिय बापू की हत्या का दोषी बताया था।’ आखिर कांग्रेस का आरएसएस से ये कैसा विरोध है? कांग्रेस देश के साम्प्रदायिक व देश के लिए हानिकारक आरएसएस जैसे संगठन से इतना प्रेम क्यों है?

यही नहीं, जिस आरएसएस के विरोध में बहुजन समाज के लोग कांग्रेस के साथ सुर में सुर मिला रहे हैं, जिस सावरकर का आज विरोध कर रहे हैं उसी सावरकर की चौथी पुण्यतिथि (1970) पर कांग्रेस की ही नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने सावरकर के नाम पर उस समय 20 पैसे वाला डाक टिकट जारी किया था। जब डीएस-4 के तहत हरियाणा विधानसभा चुनाव में मान्यवर साहेब ने सफल प्रयोग किया तो बहुजन समाज की स्थापित होती राजनैतिक पहचान से चिंतित आरएसएस ने बाद के चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार किया जबकि तब तक भाजपा भी अस्तित्व में आ चुकी थी। कुछ लोगों का कहना है कि सावरकर के जन्मदिवस पर संसद का उद्घाटन किया जा रहा है परन्तु यह भी सत्य है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहिर लाल नेहरू की स्मृति दिवस पर नये संसद का उद्घाटन किया जा रहा है। इसका कारण स्पष्ट है कि भाजपा कांग्रेस और इनकी विचारधारा और उद्देश्य एक ही हैं। इनका संयुक्त लक्ष्य है कि दलितों आदिवासियों पिछड़ो एवं अल्पसंख्यकों की खुद मुख्तार सरकार बनने से रोकना और भारत में मनुवाद को मजबूत करना। इस बात को इससे भी समझा जा सकता है कि भाजपा ने अयोध्या में राममंदिर का निर्माण जरूर कराया है परन्तु इसकी बुनियाद श्री राजीव गाँधी ने रखी थी। ऐसे में बहुजन समाज को समझना होगा कि वे कांग्रेस के साथ खड़े होकर आरएसएस और भाजपा का कैसा विरोध कर रहे हैं? क्या यह विरोध कोई सकारात्मक परिणाम दे सकता है? यदि नहीं तो बहुजन समाज अपनी बसपा के मुद्दों से दूर इनके षड्यंत्रों में क्यों उलझ रहा है?

फिलहाल, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बहुजन समाज के लोग भी कांग्रेसी झांसे में आकर अनावश्यक विरोध का हिस्सा बन चुकें हैं। संसद भवन का उद्घाटन कौन करे, यह निर्णय सरकार का है। यह हमारे लिए कोई बहुत महत्व की बात नहीं है। हमारे लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि नया संसद भवन बन चुका है। इसलिए ‘जातिवार जनगणना‘ करायी जाय। लोकसभा सीटों का पुनर्निर्धारण किया जाय। चुनाव को ‘फ्री एण्ड फेयर‘ किया जाय। ईवीएम को हटाकर ‘बैलट पेपर‘ से चुनाव की पुनः शुरुआत की जाय। निजी क्षेत्र एवं राज्यसभा की सीटों में भी दलितों एवं आदिवासियों के ‘आरक्षण‘ को लागू किया जाय। उच्च न्यायपालिका में बहुजन समाज की ‘समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी‘ को सुनिश्चित किया जाय। दलितों एवं आदिवासियों को कम से कम उनकी जनसंख्या के अनुपात में उनके ‘आरक्षण‘ के कोटे को पूरा किया जाय। अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के मद को पूरी निष्ठा के साथ उनके हित के खर्च किया जाय। इससे भी आगे यह सब करने के लिए बहुजन समाज को अपनी सत्ता स्थापित करने पर जोर देना चाहिए। जिसके लिए अपनी नेता बहनजी और संगठन बसपा के साथ हर सूरत-ए-हाल में पूरी दृढ़ता से बने रहना चाहिए। बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में अपना योगदान करते हुए बहुजन कारवां को मजबूत करना चाहिए।

दलित आदिवासी पिछड़े एवं अल्पसंख्यक समाज की एकमात्र नेता और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की नीति पर शासन करने वाली भारत राष्ट्र निर्माण एवं भारत सामाजिक परिवर्तन की महानायिका परम आदरणीया बहनजी ने 28 मई 2023 को नये संसद भवन के लोकार्पण पर केन्द्र सरकार एवं देशवासियों को बधाई देते हुए देश के कारोबार को बाबासाहेब लिखित संविधान के अनुरूप चलाने की पुरज़ोर अपील करते हुए लिखतीं है कि – ‘नये संसद भवन के आज किये गये उद्घाटन के लिए केन्द्र को शुभकामनायें। इस नए संसद भवन का परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मानवतावादी सोच तथा उनके बनाये गये पवित्र संविधान की नेक मंशा के हिसाब से देश व जनहित में सही व भरपूर इस्तेमाल हो, यह उचित होगा।‘ बहनजी ने एक जिम्मेदार विपक्ष, एक दूरदर्शी नेता, और बाबासाहेब एवं मान्यवर साहेब द्वारा तय किए गए संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए एक स्वाभिमानी, जिम्मेदारी और ईमानदार विपक्ष की भूमिका में खुद को एक फिर चरितार्थ किया है। देश को ऐसे ही सोच, समझ और सुलझे सत्ता और विपक्ष की जरूरत है। ऐसे में बहनजी भारत के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक क्षेत्र के साथ-साथ देश-दुनियां के लिए एक राजनैतिक विश्वविद्यालय हैं। आज के सत्ता पक्ष एवं विपक्ष को बहनजी से सीखने की जरूरत है ताकि एक सुन्दर, श्रेष्ठ, सुदृढ़ भारत का सृजन किया जा सके।

इसलिए हमारा स्पष्ट मत है कि कम से कम अब बहुजन समाज को समझना चाहिए कि भाजपा कांग्रेस, सपा, आप, टीएमसी, राजद, जदयू, शिवसेना, एनसीपी आदि सभी दल साम्प्रदायिक, जातिवादी और दलितों, आदिवासियों, पिछडों एवं अल्पसंख्यकों के घोर विरोधी हैं। इसलिए इनके पूर्व निर्धारित एवं पूर्व नियोजित किसी भी मुद्दे में उलझनें से बचना चाहिए। यदि आप मौजूदा सरकार से सहमत नहीं है तो आप अपने वोट का सही इस्तेमाल करते हुए अपनी (बसपा) सरकार बना लीजिए। जितना चाहें निर्माण कीजिये, जिससे चाहें उद्घाटन करवायें। जिसे चाहें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति बनाये। इसलिए बहुजन समाज की नजर अनावश्यक विरोध के बजाय के बजाय सरकार बनाने की तरफ होनी चाहिए। कांग्रेस सपा आदि के झांसे में आकर अपनी ऊर्जा और समय व्यर्थ करने के बजाय राष्ट्र हित, जनहित, समतामूलक समाज सृजन को पूरी निष्ठा के साथ समर्पित अपनी नेता बहनजी एवं अपने बहुजन आन्दोलन के सकारात्मक एवं सृजनात्मक एजेण्डे (सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति) पर अडिग रहते हुए बसपा को मजबूत करने में अपनी ऊर्जा, समय और हर तरह की पूंजी का हर संभव सदुपयोग करना चाहिए।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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