बहुत दिन हो गए हैं, आज फिर मान्यवर साहेब कांशीराम की लिखी किताब “चमचा युग” की बात कर लेते है. किताब में कई तरह के चमचों का साहेब ने जिक्र किया है. लेकिन, मेरा फोकस दो प्रकार के चमचों पर ज्यादा है (1) अज्ञानी चमचे (2) प्रबुद्ध चमचे या अम्बेड़करवादी चमचे.
किताब के अनुसार दलित शोषित समाज में अज्ञानी चमचे बहुत ज्यादा हैं, इसमे दलितों शोषितों की एक बड़ी जमात वो है जिनको कभी डॉ अम्बेड़कर के जीवन संघर्षो के बारे मे पता ही नही है और ना उनके मकसदों का पता है. दलित, आदिवासी और पिछड़ों की इस व्यापक स्तर की अज्ञानता का भरपूर फायदा तथाकथित उच्च हिन्दूओं ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं. इनकी कमजोरियों और अज्ञानता का लाभ उठाकर हिन्दुओं की ताकतवर जातियों ने और अम्बेड़करवादी चमचों ने खुब उठाया है. किताब में लिखा है कि यही अज्ञानी चमचे डॉ अम्बेड़कर के जीवनकाल मे उनके लिए सबसे बड़े सिरदर्द बने रहे. इन्ही गुमराह लोगों ने डॉ अम्बेड़कर के राजनैतिक मिशन को आगे बढ़ने ही नही दिया.
दूसरी प्रकार के जिन चमचों का किताब में जिक्र है, वो प्रबुद्ध या अम्बेड़करवादी चमचे हैं, मान्यवर कांशीराम के हिसाब से ये चमचा युग के सबसे ज्यादा दुखद हिस्से हैं. डॉ अम्बेड़कर ने कहा था कि वो अज्ञानी जनसमूह की भूमिका और उनके आचरण को समझ सकते हैं, उनको उनकी अज्ञानता के चलते गुमराह किया गया है. लेकिन, जो समाज के प्रबुद्ध लोग हैं, पढ़े लिखे लोग है, उनको तो गाँधी और अम्बेड़कर की भुमिका पता होनी ही चाहिए. इन चमचों में समाज के ज्यादातर नौकरी पेशा लोग, रिटायर कर्मचारी, वकील, डॉक्टर, बिजनेसमैन और मनुवादी पार्टियों में अपनी जगह बनाते अनेकों छोटे-मोटे उदितराज मिलेंगे.
जब समाज का एक प्रबुद्ध व्यक्ति अपनी बातों से समाज के साधारण लोगों को समझाने में कामयाब हो जाता है कि सारा दोष अम्बेड़कर और कांशीराम जैसे लोगों की सोच में है; जो आपको बेवकूफ बनाकर खुद अंग्रेजों से मोटी रकम पायेंगे या वो तो फलाने ढ़िमकाने की बी टीम है तो लोग अपने सच्चे नेताओं से जुड़ नही पाते.
कांशीराम साहेब ने लगभग 40 साल संघर्ष करके भी इतने राज्यों मे सरकार नही बना पाये जितनी 7-8 सालों में अम्बेड़करवादी चमचों की मदद से केजरीवाल ने बना ली. और तो और इन्ही अम्बेड़करवादी चमचों की मदद से एक तिहाई दलित आबादी वाले कांशीराम साहेब के गृह राज्य पंजाब में विपक्ष की भूमिका तक में पैर नही जमा पाए. प्रबुद्ध या अम्बेड़करवादी चमचों और अज्ञानी चमचों का सम्बंध उन भेड़ों के समुह की तरह होता है जो अपने मालिक (यानि प्रबुद्ध चमचे) के पीछे-पीछे मुंडी नीचे करके चलने में ही खुद को होशियार समझने लगते हैं, ये पीछे-पीछे मुंडी नीचे करके चलने वाली भीड़ अज्ञानी चमचे हैं.
किसी साथी को शब्द बुरे लग सकते हैं लेकिन ये आंकलन मेरा नही बल्कि मान्यवर साहेब की किताब चमचा युग के हिसाब से है. बुरा मानने से पहले इतना याद रखना कि भेड़ अपना रास्ता खुद तय नही करती, मालिक अगर कीचड़ में से निकलेगा तो ये भी कीचड़ में से ही निकलेगी, भले ही साइड में सारा सुखा रास्ता क्यों न हो.
सवाल करना सीखो, अज्ञानी चमचे बनना बंद कर दो, प्रबुद्ध या अम्बेड़करवादी चमचों की दलाली खुद ब खुद बंद हो जायेगी. इनकी सारी प्रबुद्धता आपकी अज्ञानता पर ही टिकी हुई है.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह; ये लेखक के निजी विचार हैं)