भारत राष्ट्र निर्माण : समतावादी मार्ग और बसपा की भूमिका
भारत के राष्ट्र निर्माण हेतु सकारात्मक एजेंडा स्थापित कर समतावादी विचारधारा से प्रेरित होकर आत्मसंयम, अनुशासन और सृजनशील मनोदशा के साथ कार्य करने की अपरिहार्य आवश्यकता है। बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भारत के नवनिर्माण के लिए हर आवश्यकता की पूर्ति हेतु राजनीति को ‘मास्टर चाबी’ निरूपित किया था। उन्होंने कहा, “राजनीतिक सत्ता के बिना सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं।” (स्रोत: आंबेडकर, “अनहिलेशन ऑफ कास्ट,” 1936, पृ. 42)। इस संदर्भ में राजनीति में संलग्न व्यक्तियों और जनमानस का दायित्व बढ़ जाता है कि वे समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की स्थापना हेतु संनिष्ठ प्रयास करें और अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
मतदान से पूर्व यह अनिवार्य है कि भारत राष्ट्र निर्माण के संकल्प को आत्मसात करने वाले लोग यह समझें कि जातिगत विद्वेष और धार्मिक उन्माद को प्रोत्साहन देकर राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। भारत के राजनैतिक दलों का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को छोड़कर शेष सभी दल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्र विसर्जन की दिशा में कार्यरत हैं। वर्तमान समय में बसपा ही वह एकमात्र शक्ति है, जो भारत राष्ट्र निर्माण के संकल्प को साकार करने में सक्षम है। इसे निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर संक्षेप में समझा जा सकता है।
प्रथम : सकारात्मक एजेंडा और समतावादी वैचारिकी
बसपा भारत का एकमात्र राजनैतिक दल है जो सकारात्मक एजेंडा पर आधारित राजनीति करता है। यह सत्ता और संसाधनों के प्रत्येक क्षेत्र में देश के सभी वर्गों के समुचित स्व-प्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने हेतु संनादति है। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए बसपा समतावादी विचारधारा को अपनाकर हिंदू व्यवस्था और अन्य अमानवीय कुरीतियों से पीड़ित जातियों और समुदायों को संगठित कर रही है। इस प्रकार यह भारत में लोकतंत्र की जड़ों को सुदृढ़ करने का अतुलनीय कार्य कर रही है।
इसके विपरीत, समाजवादी पार्टी (सपा), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे दल विध्वंसकारी सोच के साथ लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहे हैं। जहां बसपा ने हाशिए के समाज के नायकों, नायिकाओं और उनके इतिहास को स्थापित करने हेतु स्मारक और जिले बनाए, वहीं सपा जैसे दलों ने इन प्रयासों को नष्ट कर बहुजन इतिहास को दफन करने का प्रयास किया (स्रोत: उत्तर प्रदेश विधानसभा अभिलेख, 2014)। बसपा अकेले अपने बल पर सृजनशील सोच के साथ राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर है।
द्वितीय : सिद्धांतों के प्रति निष्ठा और लोकतांत्रिक मूल्य
बसपा की अपने आंदोलन के सिद्धांतों और सूत्रों के प्रति प्रतिबद्धता इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि यह अपने विरोधियों पर मिथ्या आरोप लगाकर उन्हें परास्त करने के बजाय सकारात्मक और सृजनात्मक एजेंडा के बल पर विजय प्राप्त कर शोषित, वंचित और पीड़ित समाज को सत्तासीन करने में विश्वास रखती है। बसपा एकमात्र दल है जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा। इसके विपरीत, समाजवादी, मनुवादी, गांधीवादी, मार्क्सवादी और हिंदूवादी विचारधारा के दलों ने धार्मिक उन्माद, जातिगत नफरत, साम्प्रदायिकता और विधायकों-सांसदों की खरीद-फरोख्त जैसे निकृष्ट साधनों से सत्ता हथियाई है। उदाहरण के लिए, 2019 में महाराष्ट्र में विधायकों की खरीद-फरोख्त की घटना इसका प्रमाण है (स्रोत: द हिंदू, 25 नवंबर 2019)।
तृतीय : समाधान पर बल और अनुशासित दृष्टिकोण
बसपा केवल विरोध तक सीमित नहीं रहती, अपितु समाधान प्रस्तुत करने में विश्वास रखती है। यह समस्याओं पर शोर मचाने के बजाय उनके निराकरण पर ध्यान केंद्रित करती है। बसपा ने कभी भी अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ नकारात्मक प्रचार का सहारा नहीं लिया, बल्कि जनहित के मुद्दों को आधार बनाकर समर्थन या विरोध का निर्णय लिया। इस दृढ़ता के लिए अनुशासन अपरिहार्य है। बसपा के अनुशासन का प्रमाण यह है कि जहां सपा, भाजपा आदि दलों के नेताओं ने बसपा की माननीय अध्यक्षा मायावती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं, वहीं बसपा के किसी भी नेता ने विरोधी दलों की महिला नेताओं पर अभद्र टिप्पणी नहीं की। यदि कोई ऐसा करता पाया गया, तो उसे तत्काल संगठन से निष्कासित कर दिया गया (स्रोत: बसपा आधिकारिक बयान, 2019)।
निष्कर्ष : बसपा—आंदोलन और राष्ट्र निर्माण का संवाहक
बसपा एक राजनैतिक दल से पहले बहुजन आंदोलन है। यह सत्ता के भूखे दलों और नेताओं की भाँति लोकलुभावन वादों, साम्प्रदायिकता, जातिगत नफरत या द्वेष पर आधारित राजनीति नहीं करती। आज जनता धार्मिक और जातिगत नफरत के आहार से संचालित हो रही है। सपा, भाजपा, टीएमसी, आप, राजद, जदयू और कांग्रेस जैसे दल इसी आधार पर जनता को गुमराह कर सत्ता और विपक्ष में काबिज हैं।
अब जनता के समक्ष यह प्रश्न है कि वह सपा, भाजपा आदि की विध्वंसकारी सोच को कब तक पोषित कर भारत का विसर्जन करेगी, अथवा बसपा के साथ खड़ी होकर बाबासाहेब के समतामूलक समाज के स्वप्न को साकार करेगी? यह निर्णय ही भारत के भविष्य को निर्धारित करेगा।
स्रोत और संदर्भ:
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर, “अनहिलेशन ऑफ कास्ट,” 1936, संकलित रचनाएँ, खंड 1, पृ. 42, प्रकाशक: भारत सरकार।
- उत्तर प्रदेश विधानसभा अभिलेख, “बसपा स्मारकों पर विवाद,” 2014।
- “महाराष्ट्र में विधायकों की खरीद-फरोख्त,” द हिंदू, 25 नवंबर 2019।
- बसपा आधिकारिक बयान, “अनुशासन पर कार्रवाई,” 2019, बसपा कार्यालय प्रकाशन।