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Monday, June 9, 2025

24 सितंबर : चमचों का जन्मदिन

आज ही के दिन गांधी एन्ड कांग्रेस कंपनी ने बाबासाहेब को पूना पैक्ट के लिए समझौता करने पर मजबूर किया था। बाबासाहेब इस पूना पैक्ट की दुष्परिणाम को समझ रहे थे परन्तु उनके सामने इसके सिवा कोई विकल्प नहीं था। यही वजह थी कि न चाहते हुए बाबासाहेब ने समझौता किया और अगले दिन से ही इसकी भर्त्सना करते हुए धिक्कारते हैं। मान्यवर अपने शोध के आधार पर  कहते हैं कि पूना पैक्ट एक ऐसा समझौता जिससे न तो गाँधी खुश थे और न बाबासाहेब। गाँधी तो इसलिए खुश नहीं थे कि वे कुछ देना ही नहीं चाहते थे लेकिन पूना पैक्ट से उन्हें कुछ देने के लिए हस्ताक्षर करना पड़ा और बाबासाहेब इसलिए दुखी थे कि पार्लियामेंट में जो चुनकर आयेगें वे प्रतिनिधित हमारे नहीं, दुश्मन के होंगे।[1]

इसी पूना पैक्ट का दुष्प्रभाव है कि आज हमारे पास चमचो की भीड़ जमा हो गयी है। बामसेफ के दो दिवसीय, तृतीय मध्य क्षेत्रीय सम्मेलन अहमदाबाद के अंबेडकर हॉल (सरस पुर) में 4 सितंबर 1982 को शाम 5 बजे बहुजन समाज को सम्बोधित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि ’24 सितंबर 1932 को जब पूना पैक्ट हुआ, उसके परिणामस्वरूप हम चमचा युग में फँस गये तो इसी दिन 24 सितंबर 1982 पूना से, पूना पैक्ट के ठीक पचास साल बाद हम न रुकने वाला सत् सामाजिक आन्दोलन शुरू कर रहें हैं। इसके माध्यम से हम चमचे नहीं लीडर पैदा करेगें।‘[2] बसपा ने बहुजन समाज में तमाम लीडर पैदा किए। पिछड़े समाज में राजनैतिक जागरूकता एवं उनमे पैदा हुए लीडर बसपा की नर्सरी में ही पैदा हुए हैं। परन्तु, ये सब बाबासाहेब के आन्दोलन से दूर निजी महत्वकांक्षाओं के शिकार होकर मनुवादी दुश्मनों (कांग्रेस, भाजपा) आदि के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए हैं। चमचों के इस दौर में बहुजन समाज में भारी पैमाने पर भटकाव देखने को मिल रहा है। बहुजन समाज के उस कांग्रेस में अपने लिए आशियाना तलाशने गए है जिसकी सदस्यता तक से दूर रहने के लिए स्वयं बाबासाहेब ने चेताया था।

चमचा युग के अन्धकार में फंसा शोषित समाज आज बहनजी की खिलाफत करते हुए चमचे अपनी राजनैतिक अस्मिता से दूर कांग्रेस में अपना हित तलाश रहे हैं कि उनकों इस संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि जिस पूना पैक्ट को बाबासाहेब धिक्कारते हैं उसी पूना पैक्ट के पचास पूरे होने पर कांग्रेस सरकार और कांग्रेस पार्टी एन्ड कंपनी के लोग पूना पैक्ट की स्वर्ण जयंती मनाने की जोर-शोर से तैयारी कर रहे थे। मान्यवर साहेब कांग्रेस के इस दलित विरोधी चरित्र को चिन्हित करते हुए कहते हैं कि ‘मैंने पूना पैक्ट को गौर से पढ़ने की कोशिश की, समझने की कोशिश की। इसके बाद समझा कि कांग्रेस सरकार और कांग्रेस पार्टी यह काम अपने हिसाब से सही कर रही है। जिन लोगों को पूना पैक्ट से फायदा हुआ उन्हें स्वर्ण जयंती मानना ही चाहिए। मुझे ख्याल आया कि अब कुछ लोगों को फायदा हुआ तो बहुत से दूसरे लोगों को हानि हुई है। उनके मिशन को आज मैं चला रहा हूं। जिन लोगों को पूना पैक्ट से हानि हुई है उन्हें क्या करना चाहिए? मैंने महसूस किया कि हम तो रंगरेलियां नहीं बना सकते हम स्वर्ण जयंती नहीं मान सकते तो हमें क्या करना चाहिए? हमने सोचा 24 सितंबर को पुणे जेल में पड़ी बाबासाहेब और गांधी की मूर्तियों का प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी अनावरण करेंगी। जिस पूना से यह लहर शुरू हुई है मैंने सोचा कि इसी पूना में हमें इसका धिक्कार करना चाहिए ऐसा फैसला मैंने आज से लगभग 4 महीने पहले किया अपने पुणे के साथियों तथा पुराने साथियों से भी सलाह ली तथा बाबासाहेब की किताबों Mr Gandhi and Emancipation of Untouchable, What Gandhi and Congress done for Untouchables और States and Minorities को पढ़ने के बाद और बाबासाहेब के पुराने साथियों से सलाह लेने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि हमें धिक्कार करना चाहिए।[3]

आगे मान्यवर बताते हैं कि ‘पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने के अगले ही दिन 25 सितंबर 1932 से ही डॉक्टर अंबेडकर इसका धिक्कार करते आए हैं। उन्होंने 25 सितंबर 1932 को कहा था अछूत लोग गामी में थे, उनको गर्मी में होना चाहिए था क्योंकि उनके साथ धोखा हुआ था। बाबासाहेब ने 15 मार्च 1947 को संविधान सभा को लगभग 100 पृष्ठ का ज्ञापन दिया जो बाद में States and Minorities किताब के रूप में हमारे सामने आया, उसमें भी उन्होंने पूना पैक्ट का अधिकार किया था। बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर जिन्होंने पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे, धिक्कार करते रहे। धिक्कार ही नहीं करते रहे बल्कि इससे हमें जो हानि हुई, जो हमारे साथ धोखा हुआ, वे अपने जीवन के आखिरी दिन 6 दिसंबर 1956 तक उसका मुकाबला करने की कोशिश करते रहे।’[4]

भारत के इतिहास में 24 सितंबर चमचों को जन्मदिन के तौर पर याद की जाती है। इसने भारत के लोकतंत्रीकरण की गति को धीमा किया है। इसलिए इसे काला दिवस के तौर पर जाना जाता है। इस दिवस को याद पूना पैक्ट धिक्कार दिवस के पचास वर्ष पूरे होने पर 24 सितम्बर 1982 को राष्ट्र महानायक मान्यवर साहेब ने बहुजन समाज को चमचों से सावधान करने के लिए चमचो के लक्षण आदि को बयां करती अपनी कालजयी कृति ‘चमचा युग’ का विमोचन किया था। बहुजन समाज किस कदर मान्यवर साहेब के ‘सकारात्मक एजेण्डे’ से भटका है इसका उदाहरण चमचा युग के प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित चमचा युग के कवर से देखी जा सकती है। 

इसी पूना पैक्ट धिक्कार दिवस के पचास वर्ष पूरे होने पर लोकतंत्र के महानायक मान्यवर साहेब बहुजन समाज को पूना पैक्ट के दुष्प्रभावों से अवगत कराने हेतु मान्यवर साहेब लिखित ‘चमचा युग’ की मूल किताब के कवर पर गांधी कहीं नहीं है परन्तु बाद में ‘चमचा युग’ नाम से तमाम प्रकाशक किताब छाप और बेंच रहे हैं। इन प्रकाशकों से सवाल यह है कि किस कारण से इन प्रकाशकों ने अनावश्यक तौर पर गांधी को कवर पेज पर स्पेस दिया है? इसी तरह से जब रिचर्ड एटेनबरो गाँधी फिल्म बनाते हैं तो उसमे बाबासाहेब को कोई स्पेस नहीं दिया जाता है, बाबासाहेब का जिक्र तक नहीं होता है परन्तु जब जब्बार पटेल बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर फिल्म बनाते है तो उसमें हर जगह गाँधी दिखाई पड़ते है। आखिर ऐसा क्यों है कि गांधीवादी लोग बाबासाहेब का जिक्र तक नहीं करना चाहते है, बाबासाहेब को भूलना चाहते है तो अम्बेडकरवादी हर बात पर गाँधी का जिक्र करते हुए गाँधी पर अपनी ऊर्जा और समय क्यों नष्ट करते है। क्या आज भी बहुजन समाज के लोग प्रतिक्रियावादिता में ही फंसे हुए नहीं है? क्या बहुजन समाज के लोग आज भी मान्यवर साहेब, बहनजी और बसपा के सकारात्मक एजेण्डे को समझ नहीं पायें है? यदि इसका जवाब हां है तो यह बहुजन आन्दोलन में सदुपयोग होने वाली बहुजन ऊर्जा व समय का बड़ा दुरूपयोग है। अम्बेडकरवादी होने का दावा करने वाले ऐसे प्रकाशक भी हक़ीक़त में चमचे ही हैं।

इन्हीं प्रकाशकों की तरह से आज के तथाकथित बहुजन युट्यूबर्स भी बसपा और बहनजी का नाम लेकर चैनल शुरू करते हैं। बहुजन समाज का भरोसा जीतते हैं। जब इनको इनकी जरूरत के मुताबिक, घर चलाने के हेतु पर्याप्त सब्सक्राइबर मिल जाते है तो ये अपने से बड़े चमचों की तरफ रुख करते है, दुश्मनों के हाथों बिक जाते हैं। ये युट्यूबर्स बसपा, बहनजी के नाम से बहुजन का भरोसा जीतकर अपने से बड़े चमचों का प्रचार शुरू कर देते हैं। अपने से बड़े चमचों को कवरेज देना शुरू कर देते हैं।

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान को उदाहरण के तौर पर देखा जाय तो ऐसे बहुत से चमचे हैं जो बसपा से जुड़ गये थे और इन्होने अपनी महत्वाकांक्षा एवं मनुवादियों के इशारे पर बसपा पदाधिकारियों की छवि ख़राब करने, बसपा को बदनाम करने और कमजोर करने का हर संभव प्रयास किया है। आज मूलनिवासी के नाम पर एक चमचा तो महाराष्ट्र को छोड़कर उत्तर प्रदेश में आता है और बहुजन समाज को विदेशी एवं मूलनिवासी के विमर्श में उलझाकर बहुजन समाज को उसके सकारात्मक मुद्दे से भटकाने का प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में कुछ चमचे तो तमाम दलों व संगठनों में ख़ाक छानकर बहुजन राजनीति में आये। सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनकर बसपा में प्रवेश लिया। अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु जिलाध्यक्ष बनाने, टिकट पाने के लिए बसपा के पदाधिकारियों तक पर अनैतिकता का आरोप लगाते है। बसपा पदाधिकारियों के साथ मारपीट तक करते है। अनुशासनहीनता करते हैं। हालाँकि बाद में उच्च पदाधिकारी जब इन चमचों की शिनाख्त कर पाते है तो उचित संज्ञान लेते हुए इन चमचों पार्टी से निकाल देते है तो इसके बाद ये चमचे अपने मूल स्थान से दूर दूसरी जगहों पर बहुजन पत्रकारिता, आन्दोलन, जागरूकता आदि के जरिये अपनी एक सकारात्मक छवि गढ़ने की कोशिस करते है। इसके चंद महीनों के बाद ही ये चमचे जो बसपा और बहनजी के संदेशों को भारत के कोने-कोने में पहुँचाने का दावा करते थे वही दुश्मनों की गोद में बैठे बड़े चमचों की रिपोर्टिंग और कवरेज शुरू कर देते हैं। इसकी खास वजह यह है कि स्थान या चोला बदल लेने से चमचेपन का चरित्र नहीं बदल सकता है। फिलहाल ये चमचेपन की विशेषता बहुजन यूट्यूब पत्रकारिता का एक विशेष गुण रहा है। अब सवाल समाज से है कि क्या ऐसे चमचों को समाज पहचान पाया है?

महाराष्ट्र के चमचों के संदर्भ में मान्यवर साहेब ने सिकंदरामऊ में 10 अक्टूबर 1982 को विशाल पूना धिक्कार परिषद् में उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि – ‘अलीगढ़ में इतने लोग नहीं  बिके, जितने महाराष्ट्र से बिके हैं।’ [5] महाराष्ट्र के चमचों के एक खास गुण को चिन्हित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि – ये कैसा अम्बेडकरवादी है जो बाबा-बाबा कहते-कहते गाँधी के चरणों में नतमस्तक हो जाता है। यह बात मान्यवर साहेब ने महाराष्ट्र के चमचों के बारे में जरूर कही है परन्तु यह सभी चमचों का विशिष्ट गुण है।

यही वजह है कि आज तमाम चमचे बाबासाहेब के मिशन की बात करते-करते कांग्रेस में शामिल हो रहे है। INDI गठबंधन को सत्ता सौंपने के लिए अभियान चला रहे हैं जबकि इसी कांग्रेस के इशारे छोटे चमचे ने बड़े चमचे के कहने पर पटना में बाबासाहेब पर पत्थर बरसाया था। इसकी कांग्रेस ने बाबासाहेब को इतिहास के पन्नों से मिटाने का भरसक प्रयास किया। इसी कांग्रेस के इशारे पर कांग्रेस के बड़े चमचे ने अपने बयान में कहा कि मान्यवर साहेब विदेशों से पैसा मिलता है। इसी चमचे ने मान्यवर साहेब को सीआईए का एजेन्ट कहा। कांग्रेस सरकार और कांग्रेस पार्टी के इशारे पर ही बहुजन समाज के चमचों (70 अख़बारों एवं उसमें लिखें वाले बहुजन समाज में जन्मे चमचों ने मान्यवर साहेब के खिलाफ पूरा निगेटिव नैरेटिव चलाकर बदनाम किया जैसा आज युट्यूबर्स बहनजी और बसपा के खिलाफ चला रहे हैं। इसके बावजूद यदि समाज इन चमचों को नहीं समझ पा रहा है और कांग्रेस की गोद में आशियाना ढूढ़ रहा है तो इसका दोषी खुद समाज है जो अपने नेतृत्व, अपने दल, अपनी विचारधारा, अपने झण्डे एवं अपने लक्ष्य से दूर अपने शत्रु के घर में पनाह लेने को आतुर है।

चमचों का जिक्र करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि  –हमारी गति को देखकर दलित समाज के 70 समाचार पत्रों ने हमारे विषय में उल्टा-सीधा लिखना शुरू किया है, हमें उनसे उलझना नहीं है। उनमें से कुछ पात्र हमें जानते भी नहीं हैं। इसका मतलब यह हुआ कि लिखा नहीं, लिखाया गया है। उनके पीछे जो हाथ है वही हमारा असली दुश्मन है। वे हमें दो तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं। एक, हमारे मिशन को डैमेज करके। दुसरे, कार्यकर्ताओं पर आक्षेप लगाकर।’[6] आज यदि बहुजन समाज की पत्र-पत्रिकाओं और तथाकथित बहुजन युट्यूबर्स पर गौर करे तो हम पाते हैं कि ये ठीक उसी तरह से बहनजी के खिलाफ बहुजन को गुमराह कर रहे है जैसे कि मान्यवर साहेब के समय में किया था।

आगे मान्यवर साहेब कहते हैं कि –‘डॉ अम्बेडकर जब अपना मिशन चला रहे थे, उनके ऊपर भी बहुत से आक्षेप लगाए गए थे। उनको देशद्रोही की संज्ञा दी गयी।’[7] इसी तरह आज जब बहनजी मिशन को कुशलतापूर्वक आगे ले जा रहीं हैं तो मनुवादियों के इशारे पर चमचों के द्वारा बहनजी पर मिशन से भटकने, टिकट बेचने, कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस की बी टीम का आरोप लगाकर बहुजन समाज को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह ब्राह्मण-बनिया और बहुजन मीडिया के द्वारा बाबासाहेब को, फिर मान्यवर साहेब और आज बहनजी को पहले ब्लैक-आउट करने का प्रयास किया गया, और जब ये सफल नहीं हुए तो भारत राष्ट्रनिर्माण को समर्पित बहुजन आन्दोलन के इन तीनों महान विभूतियों को ब्लैकमेल करने का प्रयास किया जा रहा है।

कुछ यूट्यूब के चमचे तो इस कदर चमचागीरी करते है कि बड़े चमचों के इशारों पर बहनजी को सलाह देने लगते है और बहुजन समाज को उनके मूल मुद्दों से भटकाकर बहुजन समाज को बसपा के खिलाफ करने के लिए स्टोरी चलाने लगते हैं। ये सभी तथाकथित बहुजन युट्यूबर्स भी अपनी जीविका चलाने के लिए बसपा और बहनजी के नाम इस्तेमाल करने वाले आले दर्जे के चमचे हैं जिन्हें बहुजन समाज आज तक नहीं पहचान पाया है। चमचों की इन सब गतिविधितयों से बहुजन आन्दोलन की गति को नुकसान होता है। तथाकथित बहुजन यूट्यूब चैनल्स एवं अन्य युट्यूबर्स के चमचेपन, बेशर्मी, धूर्तता संग जनता के सामने पैदा हुई असमंजस कि स्थिति को उजागर करते हुए सुप्रसिद्ध समाज विज्ञानी प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि – ‘आज कल एक हास्यापद नज़ारा यूट्यूब चैनलों पर देखने के लिए मिल रहा है कि जो एक समय अन्ना हज़ारे एवं केजरीवाल के आंदोलन को महिमा मंडित कर समाज को गुमराह करने का अपराध कर चुके है वो आज फिर स्वघोषित बुद्दिजीवी बन कर समाज को दिशा देने का काम कर रहे है। समाज के साथ इस छल का उन्हें तनिक भी पश्चाताप नहीं है। और, कुछ तो सत्ता के गलियारे में बहुत ऊपर तक पहुंच गए। यही पर जनता ठगी गयी। बड़ी असमंजस की स्थिति है। विश्वास किस पर करे?’

यह भी सच है कि इसमें बहुजन सिपाहियों, बसपा एवं आदरणीया बहनजी का कोई दोष नहीं है क्योंकि जहाँ एक तरफ बहनजी, बसपा आज भी बाबासाहेब की वैचारिकी, मान्यवर साहेब के सिद्धांतों एवं सूत्रों को आत्मसात कर अपनी स्वतंत्र कार्यशैली और आत्मनिर्भर अस्मिता के साथ सामजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति के लिए संघर्षरत हैं तो वहीं दूसरी तरफ पूना पैक्ट की पैदाईस चमचों (जिसमे युट्यूबर्स भी शामिल हैं) की तादाद में इजाफ़ा बहुत तेजी से हुआ है। इसलिए बहुजन आन्दोलन की माध्यम पड़ी गति, बहुजन समाज के भटकाव एवं दुश्मनों की सफलता की वजह, चमचों के चलते बहुजन समाज को होने वाली हानि के संदर्भ में मान्यवर साहेब बहुत पहले ही रेखांकित कर चुके है कि ‘कसूर ज़माने का है और जमाना चमचों का है।’[8]

स्रोत :

[1] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-16, 04 अक्टूबर, 1982

[2 बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-16, 04 अक्टूबर, 1982

[3] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-24, 29 नवम्बर, 1982

[4] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-24, 29 नवम्बर, 1982

[5] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-21, 08 नवम्बर, 1982

[6] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-16, 04 अक्टूबर, 1982

[7] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-16, 04 अक्टूबर, 1982

[8] बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक-15, 27 सितंबर, 1982


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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