भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ तब आया जब उत्तर प्रदेश के विशाल भू-भाग पर सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की लहर उठी। यह वह दौर था जब मनुवादी विचारधारा का गणित चरमराया और उसका अभिमान चूर-चूर हुआ। बुद्ध, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, कबीर और रैदास जैसे महान विचारकों की प्रेरणा ने समाज के केंद्र में अपनी जगह बनाई, जिसने न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत को एक नई दिशा दी। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेतृत्व में, विशेष रूप से सुश्री मायावती जी, जिन्हें ‘बहनजी’ के नाम से जाना जाता है, के कुशल मार्गदर्शन में एक ऐसी सरकार का उदय हुआ जिसने संविधान के अनुरूप शासन और कानून के राज को मजबूती प्रदान की। 13 मई, 2007 को दोपहर 1 बजे, बहनजी ने चौथी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली (स्रोत: उत्तर प्रदेश विधानसभा अभिलेख), जिसने भारतीय राजनीति में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा। इस दिन बसपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता हासिल की और गठबंधन की राजनीति पर विराम लगाते हुए स्वतंत्र एजेंडे और अम्बेडकरवादी दृष्टिकोण के साथ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।
बसपा के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में सर्वांगीण विकास की नींव रखी गई। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति हुई। गरीबों, विधवाओं और छात्रों के लिए पेंशन और छात्रवृत्ति योजनाओं ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त किया (स्रोत: उत्तर प्रदेश सरकार की आधिकारिक रिपोर्ट, 2007-2012)। मुस्लिम समुदाय के लिए लघु उद्योगों को बढ़ावा, मदरसों का आधुनिकीकरण और बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाली योजनाओं ने समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त किया। वैश्विक मानकों पर आधारित इंजीनियरिंग, मेडिकल, आयुर्वेद और कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। बहुजन नायकों और नायिकाओं के नाम पर जिलों, स्मारकों और प्रेरणा स्थलों का निर्माण कर हाशिए पर पड़े समाज के इतिहास और संस्कृति को सम्मान दिया गया। मान्यवर साहेब शहरी विकास योजना और डॉ. अम्बेडकर ग्राम विकास योजना जैसी पहलों ने उत्तर प्रदेश का कायाकल्प किया। प्रशासन में अनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर साम्प्रदायिक दंगों और एससी-एसटी पर अत्याचारों को रोकने में सफलता मिली, जिससे कानून व्यवस्था सुदृढ़ हुई। इन प्रयासों का परिणाम राज्य की जीडीपी और मानव विकास सूचकांक में उल्लेखनीय वृद्धि के रूप में सामने आया (स्रोत: भारत सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण, 2007-2012)।
बहनजी की कार्यशैली, उदारता और आत्मानुशासन ने उन्हें समतामूलक समाज के निर्माण का प्रतीक बनाया। उनके नेतृत्व में बसपा का शासन न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत बना। हालांकि, इन सकारात्मक बदलावों के बावजूद, विपक्षी दलों ने बसपा और बहनजी के खिलाफ सुनियोजित षड्यंत्र रचा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) ने जातिवादी मीडिया और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर दुष्प्रचार फैलाया। सपा ने तो हद पार करते हुए अम्बेडकर पार्क को ‘ऐय्याशी का अड्डा’ करार दिया, वहां स्थापित प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त किया और बसपा शासन में दलितों को मिले प्रमोशन को सुप्रीम कोर्ट के जरिए रद्द करवाया (स्रोत: समाचार रिपोर्ट, 2012-2014)। एससी-एसटी एक्ट को बदनाम करने में भी सपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मनुवादी मीडिया और विपक्ष ने इस नकारात्मकता को हवा दी, जिसने लोकतंत्र की नींव को कमजोर किया और राष्ट्र निर्माण में बाधा डाली। इसका सबसे बड़ा नुकसान वंचित वर्गों को उठाना पड़ा।
आज स्थिति चिंताजनक है। जनविरोधी ताकतें सत्ता पर काबिज हो चुकी हैं और देश की संपदा कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर दी गई है। वंचित वर्गों की भागीदारी प्रतीकात्मक बनकर रह गई है। वोटों की जगह नोटों का प्रभाव बढ़ गया है। मानवाधिकारों का हनन, कानून व्यवस्था का पतन और पुलिस कस्टडी में हत्याएं आम हो गई हैं। दलित और पिछड़े वर्गों पर अत्याचारों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है (स्रोत: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, 2023)। जंगलराज और साम्प्रदायिकता अपने चरम पर हैं, और मनुवादी सरकारें इसे उचित ठहरा रही हैं। इसका दुष्परिणाम उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे भारत को भुगतना पड़ रहा है। फिर भी, लोकतंत्र की शक्ति अडिग है। जनता देर से ही सही, सत्य को पहचानती है। वह शासन, प्रशासन और नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करेगी और अपने सच्चे हितैषी को पहचानकर बसपा की ओर रुख करेगी। भारत के लोकतंत्रीकरण और संवैधानिकता की स्थापना के साथ ही देश का ‘अम्बेडकराइजेशन’ होगा, जो एक समृद्ध, सशक्त और समतामूलक भारत के निर्माण में योगदान देगा।
13 मई, 2007 का दिन न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा बन गया। बहनजी की कार्यशैली और आत्मानुशासन आज भी देश के लिए एक मिसाल है। वह स्वयं समतामूलक समाज के आंदोलन की जीवंत प्रतीक हैं। बसपा का यह स्वतंत्र शासन भारत को एक स्वतंत्र राजनीति और अम्बेडकरी विकल्प प्रदान करने में सफल रहा। यही कारण है कि उस समय जनता ने नारा बुलंद किया था, “यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है।” यह ऐतिहासिक कार्य भारत के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को मजबूत करने का आधार बना।