बचपन से बाबासाहेब अम्बेड़कर की बहुत सी फोटो देखी हैं, उनमे से शायद एक भी फोटो ऐसी नही मिलेगी जिसमे वो आसमान की तरफ उँगली का इशारा कर रहे हो. जो पहले वाली फोटो थी उनमे बाबासाहेब की उँगली का इशारा आसमान की तरफ ना होकर सामने फोटो मे दिखाएँ गए संसद भवन की तरफ होता था. बाबासाहेब की उँगली का इशारा संसद इसीलिए था क्योंकि वो अपने शोषित और बहुजन समाज को बताना चाह रहे थे कि देश की तकरीबन सभी समस्याओं का समाधान संसद मे अपने प्रतिनिधि जीतवा कर भेजने से व सरकार बनाने से ही मिलेगा.
बाबासाहेब जानते थे कि गरीबी, अशिक्षा, बीमारी से छुटकारे की बात हो या फिर जान माल की सुरक्षा और बेहतर भविष्य की गारंटी हो, संसद से बेहतर कोई नही दे सकता.
लेकिन, अब समझदार लोगों ने बड़े ही सिस्टेमेटिक तरीके से उँगली का इशारा संसद की बजाय आसमान की तरफ करवाया लगता है ताकि लोग ये समझें कि बाबासाहेब की उँगली का इशारा है कि सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दो, वो सब देख रहा है, तुम व्यर्थ चिंता करते हो.
ये अगले 20 साल की राजनीति की नींव रखी जा चुकी है. राजनीति में प्रौपगेंडो और धारणाओं का बहुत लम्बे समय तक असर रहता है, अनेकों बार तो झुठ की ताकत हर ताकत पर हावी हो जाती है.
बाबासाहेब की लिखी किताब “What Congress and Gandhi Have Done to Untouchables” मे इस विषय पर चैप्टर X में गाँधी की हिन्दुवादी सोच से अछूतों को सावधान करने के मक़सद से बहुत अच्छे से लिखा गया है,
“but this much I think has been proved by NAZIS that if a lie is a big lie – too big for the common man’s intelligence to scrutinize and if it is repeated continuously, the lie has all the chances of being accepted as truth and if not accepted as truth, has all the chances of growing upon the victims of propaganda and win their acquiescence.”
सीधे-सीधे शब्दों मे कहुँ तो मतलब ये है कि अगर झूँठ बार-बार बोला जाये तो लोग उसको सच मानने लगते हैं. जैसे ईश्वर, अल्लाह के नाम बनी कहानियों को लोग सच मानते हैं.
समाधान क्या है?
इस समस्या का सीधा समाधान है. पहले आप खुद दोनों तस्वीरों की तुलना एक बार खुद जरूर करें और ऊपर जो संदेश मैंने देने की कोशिश की है उसका विश्लेषण करके सही तस्वीर का चयन करें.
मैं समझता हूँ और पूरे विश्वास के साथ कह रहा हूँ कि आप भी आसमान की तरफ उँगली की गई तस्वीर को नकार देंगे और संसद की तरफ इशारा करती तस्वीर और प्रतिमा का चयन ही करेंगे.
इसलिए, आप संसद की तरफ इशारा करती बाबासाहेब की तस्वीर और प्रतिमा का उपयोग ही करें और जहाँ भी मौका मिले इस संदेश को अन्य लोगों तक पहुँचाए ताकि सच बहुजन समाज के लोगों के सामने आ सके और वे लोग बाबासाहेब के इशारों का अर्थ जानकर अपने आप को शासक बनाने के लिर प्रेरित कर पाएं.
(लेखक: एन दिलबाग सिंह; यह लेखक के अपने विचार हैं)