Kissa Kanshiram Ka 15: बात 1978 की है जब मान्यवर साहेब कांशीराम लुधियाना में स्थित भगवान वाल्मीकि धर्मशाला में कैडर कैम्प लगाने के लिए पधारे. कैडर कैम्प के लिए महज़ 16-17 मुलाजिम ही इकट्ठे हुए. जिसमे डॉ शीतल सिंह (वेटनरी डॉ), जोगिंदर राय, बलवीर पुहीरव, अशोक कुमार आदि शामिल थे.
मीटिंग में लगभग 18 साल का एक नौजवान ज्ञानचंद गघंड भी शामिल था. सभी ने अपना परिचय दिया तो साहब की नज़र विशेष तौर पर ज्ञानचंद पर गई. साहब में उन्हें खड़ा किया और मज़ाक़ में कहने लगे कि मुझे तो आप कोई कलाकार लगते हो, वैसे आप करते क्या हो?
ज्ञानचंद ने जवाब दिया, मैं हौजरी में काम करता हूँ और मैं भांगड़ा नाच में भी माहिर हूँ.
“अपना काम करते हो या किसी और के लिये?”
“सर जी किसी और के लिये.”
“फिर आप अपना काम क्यों नहीं कर लेते? आप में गुण हैं, हुनर है! अपनी फैक्ट्री लगाओ!”
साहेब के इन शब्दों ने ज्ञानचंद के दिल में एक चिंगारी जलादी. सन 1980 भादों के महीने में ज्ञानचंद ने (मकान न. 299, बस्ती शेर मोहम्मद, सुंदर नगर, रोहा रोड, लुधियाना) में अपनी एक फैक्ट्री जय भारत के नाम से लगा दी. आज भी ये फैक्ट्री खूब चल रही है. यहाँ पर दुनिया भर की हर तरह की कैप (टोपी) तैयार की जाती है.
ज्ञान चंद बिना किसी लाग-लपेट के सीधा बताते हैं कि अगर मैं साहब कांशीराम के संपर्क में ना आया होता तो मैं आज भी किसी की हौजरी में काम कर रहा होता. मैं आज जो भी हूँ साहब कांशीराम की बदौलत हूँ. ज्ञान चंद ने यह भी बताया वहाँ उस कैडर में साहब ने एक बात यह भी बताई कि हाथी के ऊपर बैठा महावत उसे अंकुश मार-मार के जिधर चाहे ले जाता है. अगर हाथी को अपनी असली ताक़त का एहसास हो जाये तो वह अपने ऊपर बैठे महावत को पटक-पटक के मार दे. यही हालात हमारे समाज की है. मैं अपने समाज को उसकी ताक़त का एहसास कराने के लिए ही उन्हें जगाने का काम कर रहा हूँ.
ज्ञान चंद ने आगे कहा कि एक मुलाजिम ने जब साहब को सिक्योरिटी ना रखने के बारे सवाल किया तो साहब का जवाब था मैं इसलिए सिक्योरिटी नहीं रखता क्योंकि मैं मरना नहीं चाहता. अपने समाज की ख़ातिर जीना चाहता हूँ. साहब का इशारा इसी बात की ओर था कि कहीं कोई उन्हें सिक्योरिटी के हाथों ख़त्म ना करवा दे.
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