सन् 1932 में,
हुआ था पूना में एक करार,
जिसमें छिन गया शोषितों का हक,
उनकी मुक्ति व पृथक पहचान।
फिर यहीं से शुरू हुआ था,
चमचों का युग और उनका कारोबार,
इस चमचा युग व चमचों को लेकर,
तब चिंतित थे बाबासाहेब,
आज जूझ रहा है अछूत समाज।
ये बहुजन हित को बेच रहे हैं,
हर पल हर शै मनुओं के हाथ,
इन चमचों से लड़ते-लड़ते,
इनको चिन्हित कर गए काशीराम,
ये बहना को हर पल कोसें,
ले बाबा, संविधान व साहेब का नाम।
लोकतंत्र पर भाषण करते,
जपते रहते काशी नाम,
गाल फाड़ मंच से बोलें,
करते बहुजन को गुमराह,
बाप मरे तो श्राद्ध करें,
देते सबको धम्म का ज्ञान।
मंदिर-मंदिर माथा टेके,
करें आरती बारम्बार,
खुद के चरित्र में मनु बसें,
फिर भी बहना से पूछें,
कब होगा धम्म शरण,
कब होगा बुद्धा का राज?
बाबा-बाबा करते रहते,
पहरा देते हैं मनुओं के द्वार,
होली जब आती है,
ये रंग लेते हैं खुद को,
हरा, पीला, लाल गुलाल।
रात-दिन बसपा को कोसकर
चलता है इनके,
भय, नफरत का व्यापार।
चमचागीरी इतना हावी,
कि तिजारत करते
बहुजन कारवां का,
बेच रहें हैं,
हर बहुजन का अधिकार।
शोषित वंचित पीड़ित समाज,
इन चमचों की कर ले पहचान,
दूर रहें इन चमचों से,
ये हैं मनु के आदर्श गुलाम,
बाबासाहेब का नाम बेचते,
ये हैं आज मनु की औलाद।
इन चमचों को पहचानों,
रहो इनसे कोसों दूर,
आ जाओ बसपा के मंच पर,
चुन अपना मुद्दा, अपनी आवाज।
बहना की अगुआई में थाम लो,
नीला झंडा, हाथी निशान
यही स्वतंत्र राजनीति देगी मुक्ति,
फिर होगा समता का आगाज़।। 2 ।।
(08.01.2023)