सन्त गाडगे जी नमन, करता बारम्बार।
कृपा आपकी देखते, दीन दुखी संसार ।।
भोजन भूखे ही सदा, सब प्यासों को नीर।
वस्त्र दान निर्वस्त्र सब, शिक्षा प्रति गम्भीर।।
अब तो जागो हुआ सवेरा, नही देर तक सोते।
पीछे रह जाओगे दुनिया, दिन बीते फिर रोते।।
नही आलसी होना जीवन, दूर अभी है जाना।
जीवन आगे बढते रहना, दुख रहते मुस्काना।।
दुख ही पाते निर्धन दुनिया, दूर गरीबी करना।
इसकी खातिर शिक्षा लेनी, चाहे भूखो मरना।।
दुनिया से जाना ही इक दिन, हो ज्ञानी अज्ञानी।
दुर्जन साधु सभी ही जाना, हो निर्धन धनमानी।।
याद उन्ही की आती सबको, बोली सुंदर बानी।
परहित करता रहता जीवन, हो जानी अंजानी।।
दो पल के इस जीवन मे ही, उम्र शान से जीना।
खुद के संग खुशी सब देना, रहा गैर दुख पीना।।
अन्न सभी भूखों को देना, पानी प्यास पिलाना।
वस्त्रदान निर्वस्त्र मिले जो, शिक्षा सभी दिलाना।।
बेघर जीवन आश्रय उनको, अंधा राह दिखाना।
रोगी अति उपचार कराना, बेजुबान हित जाना।।
नही नाम हित चोरी करना, जीवन सदा बचाना।
स्वाभिमान ही जिंदा रखना, निर्बल वीर बनाना।।
जीवन मिलता मानव जीते, पशु पक्षी जग जैसे।
खानपान निब्बान जनन में, दिखते सबको वैसे।।
अन्तर जो है पशु मानव में, तुमको रहे दिखाना।
कैसे सब हित जीवन जीना, रहे तुम्हे समझाना।।
अन्यायी का साथ न देना, सिर न सदा झुकाना।
स्वाभिमान हित सदा लड़ाई, रहे अमरता पाना।।
शिक्षा सबको बहुत जरूरी, सदा ध्यान ये रखना।
भोजन रखो हथेली खाओ, मगर सदा ही पढना।।
शिक्षा से सब कुछ मिल जाए, भेदभाव जो भूले।
पाखंडो से अधिक किनारा, आसमान जग छूले।।
कैसे सबको जीवन जीना, रहती सभी सिखाती।
छल आडम्बर छुआछूत से, सबको रही बचाती।।
भोजन रखो हथेली खाओ, मगर ध्यान है पढना।
नही फंसो पाखंड कभी भी, जीवन आगे बढना।।
ईश धर्म चक्कर मत पड़ना, ज्ञानवान सब बनना।
साफ सफाई रखना जीवन, नही रोग सब सनना।।
अन्धभक्ति मुरझाना जीवन, विज्ञानी पथ चलना।
अपने अधिकारो को जानो, न्याय रहे ही मिलना।।
हो काबिल हित सबका करना, नही खुदी पे मरना।
याद रखेगी तुमको दुनिया, सुख जीवन बस भरना।।
नही दिखे जग मानव भूखा, सदा ध्यान तुम रखना।
प्यासा नही मरे जग जीवन, नीर स्वच्छ जग भरना।।
भूखो को नित भोज ही देना, नीर प्यास पिलवाना।
जो निर्धन जग अच्छी शिक्षा, ध्यान रखो दिलवाना।।
चाहत देना रही बुद्ध की, अमर भीम बलिदानी की।
फुले गाडगे साहू दुनिया, अति अशोक मरदानी की।।
जो भी पाया दिया विश्व को, नही भेद जग जानी है।
अमर विश्व मे हुए सभी ही, दुनिया आज दिवानी है।।
मेरी चाहत बनूँ बुद्ध सम, सब खुशिया जग दे जाऊँ।
कष्ट सदा दुनिया जो दिखता, दूर सभी को करवाऊँ।।
(रचनाकार: बुद्ध प्रकाश बौद्ध, जिला सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश)