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Thursday, September 19, 2024

प्रो विवेक कुमार की उपलब्धि बहुजन समाज की पूंजी है

टूटी-फूटी अंग्रेज़ी के साथ एक बच्चा लखनऊ से निकल कर जेएनयू से एमए, एमफिल, पीएचडी करते हुए जेएनयू में ही प्रोफेसर बनकर विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाता है। जेएनयू में एडमिशन के समय हास्टल न मिलने के कारण वह गाजियाबाद में कमरा लेता हैं। दूरी ज्यादा थी। इसलिए क्लास अटेंड करने के लिए सुबह 6 बजे निकलना पड़ता था ताकि सुबह 9 बज की क्लास अटेंड कर सकें। खाने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। हां, दोस्त के साथ कभी-कभी टिफिन शेयर हो जाता था। हासिये के समाज की कहानी ऐसी ही होती है। खुद कुंआ खोदकर पानी पीना पड़ता है। अभिजात्य वर्ग के लिए यह सब आसान लग सकता है परन्तु हासिये के समाज के बच्चों को घर से दूर राष्ट्रीय राजधानी, जेएनयू, में आना, रहना, पढ़ना आसान नही था। यह बच्चा बहुजन आन्दोलन, अपनी मेहनत और मेधा की बदौलत विवेक से आज प्रोफेसर विवेक कुमार बन चुका है। विश्व फलक पर अपनी पहचान बना चुका है।

प्रोफेसर विवेक कुमार ने अभी तक अकादमिक जगत को 85 पीएचडी, एमफिल दिया है। आप जेएनयू के साथ-साथ अमेरिका, इग्लैंड आदि देशों की नामचीन यूनिवर्सीटीज के विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। यही नहीं, आपके छात्र भारत के ही नहीं बल्कि यूरोप अमेरिका के तमाम देशों में आज बतौर प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं। आपने समाजशास्त्र की दुनिया में How much egalitarian is Sociology? का प्रश्न पूछकर एक नवीन विमर्श शुरू कर समाजशास्त्र की दुनिया में एक नया आयाम जोड़ा है।

Indian Sociological Society

आपने अभी हाल में ही (15 मार्च 2023) रचित अपनी कविता ‘समाजशास्त्र की दिशा एवं दशा‘ में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्गों संग नारी विमर्श को रेखांकित किया है। साथ ही हम सभी लोगों का लगातार मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि सभी युवा लोग भारत राष्ट्र निर्माण में अपनी सकारात्मक भागीदारी निभा सकें।

आप कई अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जरनल के सदस्य व संपादक भी हैं। आपके नेतृत्व में Centre for the Study of Social System, JNU को विश्व रैंकिंग में 68वां स्थान मिला है। इससे पहले भी आपके नेतृत्व में ही इस संस्थान को दो बार विश्व रैंकिंग में शामिल किया जा चुका है।

यह सब कुछ लोगों को आपकी निजी उपलब्धि मात्र लग सकती है परन्तु अकादमिक जगत के साथ-साथ आप अम्बेडकरी आन्दोलन के संदर्भ जिस तरह से बाबासाहेब, मान्यवर साहेब की बातों को अपने शोधपत्रों, पुस्तकों, लेक्चर आदि के जरिये पहुँचा रहें हैं, आप जिस वंचित जगत से आते हैं, आपने जिस तरह से समतावादी आन्दोलन में अपनी सृजनात्मक छाप छोड़ी है, युवाओं को सकारात्मक एजेण्डे से जोड़कर सीमित संसाधन वाले बहुजन समाज के युवाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं, उनको भारत राष्ट्र निर्माण से अवगत करा रहे हैं, वह बेमिसाल है।

इस नजरिये से देखने पर स्पष्ट है कि आपके नेतृत्व में Centre for the Study of Social System, JNU को विश्व रैंकिंग में मिला स्थान (68वां) आपकी ही नहीं बल्कि भारत, खासकर हासिये के समाज, को मिली उपलब्धि है। ये हासिये के समाज के लिए सेलिब्रेशन का मुद्दा है। गर्व और सम्मान की बात है।

अकादमिक जगत के साथ-साथ अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति आपके समर्पण का ही नतीजा है कि देश के किसी कोने से निकलकर यदि कोई हासिये पर धकेले गये समाज का कोई बच्चा जेएनयू आता है तो वो यह गर्व से कहता है कि ‘चलो देखा जायेगा, विवेक सर तो हैं ही।’ यही नहीं, यदि किसी छात्र को अपने डाक्यूमेंट्स प्रमाणित करवाना हो तो बेहिचक आपके चैंबर में आ जाता है। जब आप कहते हैं कि ‘हम आपको तो जानते नहीं है, कैसे प्रमाणित करें।’ तो छात्र बुलंद हौसले के साथ कहते हैं कि ‘तो क्या हुआ हम तो आपको जानते हैं।’ यह हैं जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में आपकी मौजूदगी का मतलब। जेएनयू में आप की मौजूदगी वहाँ जाने वाले लोगों (हासिये के समाज) को निश्चिन्त करता है। लोगों को आप पर इतना भरोसा है, लोगों का आप पर यह विश्वास आपकी महत्वपूर्ण कमाई है। यह भरोसा आपकी अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता, आपके सकारात्मक व सरल व्यवहार का परिणाम है।

यही नहीं, आपने ऐसे कई बच्चों की मदद है जिन्हें यूरोप के विश्वविद्यालयों में पढ़ने का मौका तो मिला परन्तु सही समय पर स्कालरशिप उपलब्ध न होने की वजह से समस्या हो जाती, आपने उनके एक निवेदन पर तुरंत लाखों की रकम ट्रांसफर कर दी है। यूरोप पढ़ने जाने वाले बच्चों को उनके रहने की समुचित व्यवस्था होने तक उनके खाने-रहने तक में मदद की है। यह सब करना इतना आसान नहीं होता है। आपके द्वारा यह सब करना समाज के प्रति Pay Back to Society की पाक नियत और अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति निष्ठा है।

आप बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के समतामूलक समाज सृजन कर भारत राष्ट्र निर्माण के लिए संघर्षरत बहुजन आन्दोलन के एक मजबूत स्तम्भ (विद्वान) हैं। आज जब बहुजन समाज के अधिकांश लोग नकारात्मकता की चपेट में आकर प्रतिक्रियावादी बनकर रह गया है ऐसे नाजुक एवं महत्वपूर्ण समय में आप मान्यवर साहेब के सकारात्मक एजेण्डे को केन्द्र में रखकर लगातार बहुजन समाज को बहुजन आन्दोलन की पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बहुजन आन्दोलन के संदर्भ में प्रतिक्रियावादियों द्वारा फैलाई जा रही नकारात्मकता व नकारात्मक छवि के जाल को भेदकर सकारात्मक कथानक रच कर बहुजन आन्दोलन को नवीन ऊर्जा से सिंचित कर रहे हैं।

उदाहरणार्थ –

बाबासाहब भारत राष्ट्र निर्माता है।
आरक्षण राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है।
आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।

आपने सकारात्मक एवं तथ्यों पर आधारित कथानक के जरिये बहुजन आन्दोलन एवं आन्दोलनकारियों को मान्यवर साहेब की मंशानुरूप सकारात्मकता देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

आगे, बहुजन आन्दोलन के आदर्शों, खासकर धम्म आधारित जीवन शैली, को निजी जीवन में उतारने के संदर्भ में आपका स्पष्ट कहना है कि ‘बहुजनो का मनोरंजन और उनके जीवन के संस्कार (जैसे विवाह, नामकरण, जन्मदिवस आदि संस्कार) भी  विचारधारा और धम्म के आधार पर होने लगे हैं। इसी प्रकार अगर सभी बहुजन इसका पालन करें तो बहुजन समाज का आत्मविश्वास बढ़ेगा और इस समाज की सांस्कृतिक पूँजी और भी समृद्ध होगी।

फिलहाल, आपके कुशल नेतृत्व में Centre for the Study of Social System, JNU को विश्व रैंकिंग में 68वां स्थान मिलने पर Indian Sociological Society ने आपको बधाई भेजा है। आपकी यह उपलब्धि देश और समाज के लिए गर्व व प्रेरणा की बात है। यह सेलिब्रेशन का विषय है। गर्व का विषय है। दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग संग नारी समाज के लिए भी गाजे-बाजे के साथ सेलिब्रेट करने का विषय है। विचार विमर्श एवं चर्चा का विषय है।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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