भारत ही नही अपितू पूरी दुनिया में जाति, नस्लीय और भी ना जाने कितने तरह से भेदभाव मौजूद है. इन सभी में भारतीय जाति भेदभाव सबसे भयानक रहा है. जो विकसित देशों में भी पहुँच चुका है.
खुशी की बात यह है कि इस भेदभाव के खिलाप अब जातीय भेदभाव से पीड़ित समूह उठाने लगा है जिसके कारण भारत में एससी/एसटी एट्रोसीटी एक्ट सामने आया वहीं तो दुनियाके तमाम देश अपने स्तर पर प्रयासरत है.
ताजा मामले के अनुसार अमेरिकी कॉरपोरेट वर्ल्ड के बाद यूनिवर्सिटी सिस्टम में भी जाति के नाम पर होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को रोकने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. शुरुआत की है कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी सिस्टम ने. इसके तहत राज्य के 20 से अधिक कॉलेज आते हैं यानी हज़ारों स्टूडेंट्स, शिक्षक और स्टाफ.
शिक्षकों की यूनियन जातिगत मामले में जनवरी में ही एक प्रस्ताव लेकर आई थी. इसमें कहा गया था कि जाति को भी उस सूची में डाला जाए, जिसमें धर्म, रंग, नस्ल को रखा गया है.
इसका मतलब हुआ कि धर्म, रंग, नस्ल के साथ जाति के आधार पर भी किसी के साथ यूनिवर्सिटी में भेदभाव नहीं किया जाएगा. कुछ शिक्षकों ने प्रस्ताव का विरोध किया. ख़बरों के अनुसार, भारतीय मूल के 80 प्रोफेसरों ने प्रस्ताव के विरोध में चिट्ठी लिखी थी. हिंदू अमेरिका फाउंडेशन ने ट्विटर पर इस मामले में अपना विरोध जताया. कोर्ट जाने की बात कही.
हालांकि फाउंडेशन के विरोध के बाद पूरे अमेरिका से दक्षिण एशियाई समुदाय के लोग इस प्रस्ताव के समर्थन में आ गए. कैलिफोर्निया में शिक्षकों की यूनियन के साथ-साथ ट्रेड यूनियन और नागरिक अधिकार संस्थानों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. सिख संगठनों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थंक किया. व्यापक समर्थन मिलने के बाद यूनिवर्सिटी के ट्रस्टियों ने प्रस्ताव को पारित कर दिया है और अब यह नियम लागू हो जाएगा. हिंदू अमेरिका फाउंडेशन द्वारा विरोध किये जानेपर वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर दिलीप मंडल ने ट्विटर पर जमकर विरोध दर्शाया है.
नियम का फायदा यह होगा कि इस यूनिवर्सिटी के तहत आने वाले किसी भी कॉलेज में छात्रों के साथ अगर जाति के नाम पर भेदभाव होता है, तो वे इसकी शिकायत अधिकारियों से कर सकते हैं. इस पर आगे कार्रवाई हो सकती है. पिछले साल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने भी जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए ऐसा क़दम उठाया था. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के तहत कोई और कॉलेज नहीं है.