भंगी जातियों को तो कुछ मिला ही नहीं. इसका मैं व्यक्तिगत तौर पर शिकार हूँ.
दीनाभान भंगी
उपरोक्त कथन को कहने वाला कोई आम शख्स नही है बल्कि दलित-बहुजन समाज को असली आजादी दिलाने वाले बाबासाहेब और बहुजन नायक मान्यवर साहेब कांशीराम के बीच एक सेतू है. जिनका नाम है दीनाभा भंगी, जिन्हे आजकल कुछ लोग दीनाभाना वाल्मीकि भी कहने और लिखने लगे है.
दीनाभा भंगी जि का जन्म राजस्थान के जयपुर जिले के के गांव में भाना भंगी के घर में 28 फरवरी 1928 को हुआ था. बच्चे का नाम दीनानाथ रखा गया. मगर, बाद में पिताजी का नाम जोड़कर दीनानाथ से दीनाभाना रख दिया गया. और इस तरह दीनानाथ से दीनाभाना भंगी बना.
बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा. दीनाभाना जी, इन्होने बामसेफ संस्थापक अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहेब को बाबासाहब के विचारो से प्रेरित किया. मा. कांशीराम साहेब ने बाबासाहेब के विचारों को पूरे भारत में फैलाया. आज पूरे देश मे जय भीम, जय मूलनिवासी की जो आग लगी है. उसमे चिंगारी लगाने का काम भंगी समाज के महापुरूष मा. दीनाभाना भंगी जी ने किया था.
दीनाभाना जी जिद्दी किस्म के शख्स थे, बचपन मे उनके पिताजी तथाकथित ऊँची जातियों के यहां दूध निकालने जाते थे. इससे उनके मन में भी भैंस पालने की इच्छा हुई. उन्होने पिताजी से जिद्द करके एक भैंस खरीदवा ली लेकिन, जातिवाद की वजह से भैंस दूसरे ही दिन बेचनी पडी. कारण? जिस सवर्ण के यहा उनके पिताजी दूध निकालने जाते थे. उससे देखा नहीं गया उनके पिताजी को बुलाकर कहा तुम छोटी जाति के लोग हमारी बराबरी करोगे तुम भंगी लोग सुअर पालने वाले भैंस पालोगे यह भैंस अभी बेच दो उनके पिता ने अत्यधिक दबाब के कारण भैंस बेच दी. यह बात दीनाभाना जी के दिल में चुभ गयी उन्होने घर छोड दिया और दिल्ली भाग आए.
वहां उन्होने बाबासाहेब के भाषण सुने और भाषण सुनकर उन्हे लगा कि यही वह शख्स है, जो इस देश से जातिवाद समाप्त कर सकता है. दीनाभानाजी ने बाबासाहेब के विचार जाने, समझे और बाबासाहेब के निर्वाण के बाद भटकते-भटकते पूना आ गये. और पूना में गोला बारूद फैक्टरी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन – DRDO) में सफाई कर्मचारी के रूप में सर्विस प्रारंभ की. जहां रामदासिया चमार मा कांशीराम साहेब (15.03.1934 – 09.10.2006) रोपड़ (रूपनगर) पंजाब निवासी क्लास वन अफसर थे. लेकिन, कांशीराम जी को बाबासाहेब कौन हैं ये पता नही था. उस समय अंबेडकर जयंती की छुट्टी की वजह से दीनाभाना जी ने इतना हंगामा किया कि जिसकी वजह से दीनाभाना जी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इस बात पर कांशीराम जी नजर रखे हुये थे, उन्होने दीनाभाना जी से पूछा कि यह बाबासाहब कौन हैं जिनकी वजह से तेरी नौकरी चली गयी. दीनाभाना जी व उनके साथी विभाग में ही कार्यरत महार जाति में जन्मे नागपुर, महाराष्ट्र निवासी मा डी. के. खापर्डे जी (13.05.1939 – 29.02.2000), जो बामसेफ के द्वितीय संस्थापक अध्यक्ष थे, ने कांशीराम जी को बाबासाहब की ‘जाति विच्छेद’ नाम की पुस्तक दी जो कांशीराम जी ने रात भर में कई बार पढ़ी और सुबह ही दीनाभाना जी के मिलने पर बोले दीना तुझे छुट्टी भी और नौकरी भी दिलाऊगा और इस देश में बाबासाहेब की जयंती की छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं तब तक चैन से नही बैठूगा, क्योकि यह तेरे साथ-साथ मेरी भी बात है तू चुहड़ा है तो मैं भी रामदासिया चमार हूं.
इस घटना के बाद कांशीराम साहेब ने नौकरी छोड दी और बाबासाहेब के मिशन को ‘बामसेफ’ संगठन बनाकर पूरे देश मे फैलाया. उसके संस्थापक सदस्य दीनाभाना जी थे, इस महापुरुष का परिनिर्वाण पूना में 29 अगस्त 2006 को हुआ. यदि दीनाभाना जी न होते तो न बामसेफ होता और न ही व्यवस्था परिवर्तन हेतु अंबेडकरवादी जनान्दोलन चल रह होता. इस देश में जय भीम का नारा भी गायब हो गया होता और न आज मनुवादियों की नाक में दम करने वाला जय मूलनिवासी! का नारा होता.
(स्रोत: इस लेख की जानकारी सोशल मीडिया से ली गई है. हम किसी भी जानकारी की प्रमाणिकता का दावा नही करते हैं)