बहनजी और बसपा: सकारात्मकता और सृजन का मार्ग
भारतीय राजनीति के परिदृश्य में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और उसकी नेतृत्वकर्ता बहनजी मायावती को लेकर अक्सर कुछ युवा, तथाकथित लेखक, चिंतक और पत्रकारिता से जुड़े प्रोफेसर यह आरोप लगाते हैं कि वे विरोध की राजनीति नहीं करतीं। इस धारणा को आधार बनाकर कुछ चमचे और मनुवादी दल दुष्प्रचार करते हैं कि जब भाजपा सत्ता में होती है, तो बसपा उससे मिली हुई है, और जब कांग्रेस सत्ता में होती है, तो उसके साथ। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बहनजी और बसपा ईडी, सीबीआई जैसी सरकारी मशीनरी से डरती हैं, इसलिए चुप रहती हैं। किंतु, यह प्रश्न उठता है कि जब बहनजी पर सैकड़ों अनावश्यक मुकदमे दर्ज किए गए, तब वे नहीं डरीं और सभी मामलों में बाइज्जत बरी हुईं, तो आज वे किसी से क्यों डरेंगी? यह मिथ्यारोप और भ्रामक प्रचार केवल उनकी अदम्य शक्ति और समर्पण को कमजोर करने का प्रयास मात्र है।
बहनजी का साहस और बसपा का सिद्धांत
हकीकत यह है कि बहनजी के अदम्य साहस, शांतचित्त स्वभाव, एकाग्रता, और बहुजन आंदोलन के प्रति उनकी अटूट निष्ठा से विरोधी चिंतित हैं। वे महानायक-महानायिकाओं के संघर्ष, संदेश और शौर्यगाथाओं में विश्वास रखती हैं। भारत के राष्ट्र निर्माण और समतामूलक समाज की स्थापना के लिए उनका समर्पण, आत्मनिर्भर रणनीति, मान्यवर कांशीराम द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों व सूत्रों में उनकी आस्था, अनुशासित कार्यशैली, और वंचित समाज का उन पर अटूट विश्वास ही वह आधार है, जो बसपा को एक आंदोलन के रूप में जीवित रखता है। बसपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि मान्यवर साहेब के सिद्धांतों पर आधारित एक वैचारिक आंदोलन है, जो अनावश्यक विरोध और प्रतिक्रिया में समय व ऊर्जा नष्ट करने के बजाय सकारात्मकता और सृजन पर केंद्रित है।
मान्यवर कांशीराम ने स्पष्ट कहा था, “जिसको मारना होता है, उसका नाम नहीं लिया करते, उसकी अनावश्यक चर्चा नहीं करते।” उनका यह सूत्र बसपा की रणनीति का मूलमंत्र है। इसके विपरीत, कुछ बहुजन युवा और तथाकथित बुद्धिजीवी दिन-रात मनुवादियों की आलोचना में लगे रहते हैं। यह ‘हाय-हाय’ का चरित्र उनकी पहचान बन जाता है, और इसी नकारात्मकता में वे बसपा की भी आलोचना शुरू कर देते हैं। मान्यवर साहेब ने बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में चमचों के बारे में कहा था, “चमचे बाबा-बाबा करते-करते गांधी के चरणों में नतमस्तक हो जाते हैं।” आज भी यह कथन प्रासंगिक है। चमचे भाजपा-कांग्रेस की आलोचना करते-करते या तो उनके साथ चले जाते हैं या बसपा को निशाना बनाने लगते हैं, जिससे उनकी ऊर्जा और समय व्यर्थ चले जाते हैं।
नकारात्मकता का जवाब सृजन से
मान्यवर साहेब का एक और सूत्र है, “नकारात्मक प्रचार भी एक प्रचार होता है।” अनावश्यक विरोध और प्रतिक्रिया से विरोधी को ही मजबूती मिलती है। वे कहते थे, “किसी की खींची लाइन को मिटाने में ऊर्जा और समय बर्बाद करने के बजाय उसके समानांतर उससे मोटी, गहरी और लंबी लाइन खींचिए, उसकी लाइन स्वतः छोटी हो जाएगी।” अर्थात, विरोधियों को चर्चा का केंद्र बनाने के बजाय अपनी विचारधारा, अपने नायक-नायिकाओं, अपनी पार्टी और अपने सकारात्मक एजेंडा को विमर्श का आधार बनाइए। बसपा इसी सिद्धांत पर चलती है। वह अपनी आत्मनिर्भर रणनीति और स्वतंत्र कार्यशैली के साथ सकारात्मकता को बढ़ावा देती है।
जो लोग केवल विरोध की राजनीति करते हैं, उनके पास न अपनी ठोस जमीन होती है, न अपनी विचारधारा। वे किराए के नायकों को अपना आदर्श मानते हैं, किराए की संस्कृति और विरासत को अपनी समझकर भ्रम में जीते हैं, और पूंजीपतियों की बैसाखी पर चलते हैं। इसके विपरीत, बसपा के पास बुद्ध, फुले, शाहू, आंबेडकर की विचारधारा है, बहुजन समाज में जन्मे अपने नायक-नायिकाएं हैं, अपना इतिहास और ऐतिहासिक विरासत है, अपने सिद्धांत और सूत्र हैं, और सबसे बढ़कर जनाधार की मजबूत नींव है।
बसपा: आंदोलन से अधिक, सृजन का प्रतीक
बसपा को ‘सिर्फ विरोध’ या ‘अनावश्यक प्रतिक्रिया’ की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। वह सकारात्मकता और सृजनात्मकता में विश्वास रखती है। बसपा पहले एक आंदोलन है, जो भारत राष्ट्र के निर्माण और समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्षरत है, और उसके बाद एक राजनीतिक दल। अपनी आत्मनिर्भर रणनीति, स्वतंत्र कार्यशैली, अनुशासन, लक्ष्य के प्रति समर्पण और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की नीति के बल पर बसपा ने खुद को सकारात्मकता और सृजन का पर्याय स्थापित किया है।
निष्कर्ष:
बहनजी और बसपा पर लगाए जाने वाले मिथ्यारोप उनके साहस, समर्पण और वैचारिक दृढ़ता को कमजोर नहीं कर सकते। जो लोग यह कहते हैं कि बसपा विरोध नहीं करती, उन्हें यह समझना होगा कि विरोध की राजनीति वे करते हैं, जो वैचारिक रूप से कमजोर और आधारहीन होते हैं। बसपा का मार्ग सृजन का है, न कि विध्वंस का। मान्यवर साहेब के सिद्धांतों पर चलते हुए वह अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है, और यही उसकी ताकत है। इसीलिए, विरोधियों के दुष्प्रचार के बावजूद, बहनजी और बसपा बहुजन समाज के विश्वास और आशा का प्रतीक बनी हुई हैं।