कांग्रेस का छल और बसपा का बल: बहनजी की दूरदर्शिता
बहनजी का संदेश और समाज की व्यथा
जब बहनजी अपनी प्रेस विज्ञप्तियों और कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले कांग्रेस पर प्रहार करती हैं, तो निम्न जातियों के मन में एक अजीब-सी व्यथा जाग उठती है। वे चाहते हैं कि बहनजी किसी और पर हमला करें, किंतु बहनजी का यह रुख अचानक या भावनात्मक नहीं है। यह एक गहरी ऐतिहासिक समझ और शोषित समाज के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का परिणाम है। वे जानती हैं कि भारत के पिछड़े, मुस्लिम और दलित समाज का सबसे बड़ा शत्रु कौन है। यह वह कांग्रेस है, जिसने शोषण के जाल को इतनी चतुराई से बुना कि समाज आज भी उसके छलावे में उलझा हुआ है। यह लेख बहनजी के इस दृष्टिकोण को उजागर करता है और शोषित समाज को कांग्रेस के इतिहास से सबक लेने की पुकार देता है।
कांग्रेस और सत्यशोधक समाज: एक ऐतिहासिक विश्वासघात
कांग्रेस, ज्योतिबा फूले और सत्यशोधक समाज के संदर्भ में क्रिस्टोफ जाफ्रलो लिखते हैं:
“फूले ने सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन और कांग्रेस, दोनों से खुद को दूर कर लिया और वह भारत का पहला निम्न जातीय संगठन बनाने में जुट गए। अंततः, निम्न जातियों और अस्पृश्यों को एक मंच पर संगठित करने के लिए उन्होंने 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। तीस के दशक तक सत्यशोधक समाज ने मुख्य रूप से ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली कांग्रेस से एक फासला बनाए रखा मगर 1930 के दशक में सत्यशोधक समाज ने अपने हितों की रक्षा के लिए कांग्रेस में ही विलय का फैसला लिया।”
(किस्टोफ जाफ्रलो, भीमराव आंबेड़कर – एक जीवनी, पृष्ठ संख्या – 30)
क्रिस्टोफ जाफ्रलो अपने लेखन में स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले ने कांग्रेस के ब्राह्मणवादी वर्चस्व से दूरी बनाई और 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। यह संगठन निम्न जातियों और अस्पृश्यों को एकजुट करने का पहला प्रयास था। तीसरे दशक तक इसने कांग्रेस से स्वतंत्रता बनाए रखी, किंतु 1930 में अपने हितों की रक्षा के नाम पर कांग्रेस में विलय कर लिया गया। यह विलय कोई संयोग नहीं, बल्कि कांग्रेस की सोची-समझी चाल थी, जिसने फूले की समतावादी विरासत को हजम कर लिया। यह वह कांग्रेस है, जिसने शोषित समाज के स्वप्नों को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बहनजी इस इतिहास को भली-भाँति समझती हैं, और यही कारण है कि वे कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानती हैं।
बाबासाहेब और मान्यवर के प्रति कांग्रेस का व्यवहार
कांग्रेस का यह दमनकारी चेहरा केवल फूले तक सीमित नहीं रहा। इसी कांग्रेस ने बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के लिए संविधान सभा के दरवाजे बंद कर दिए थे। उनके महापरिनिर्वाण के बाद दिल्ली में दो गज जमीन तक नहीं दी गई। मान्यवर कांशीराम साहेब जैसे महान व्यक्तित्व के प्रति भी कांग्रेस ने यही तिरस्कार दिखाया—उनके महापरिनिर्वाण पर एक दिन का राष्ट्रीय शोक तक घोषित नहीं किया गया। इसके विपरीत, कांग्रेस ने कार्पोरेट जगत के लिए धन उगाही करने वाले एक क्रिकेटर को भारत रत्न से सम्मानित किया, जबकि मान्यवर जैसे समाज सुधारक को नजरअंदाज कर दिया। क्या ऐसी कांग्रेस कभी शोषित समाज की हितैषी हो सकती है? फिर भी, यह समाज उसके छलावे में क्यों फँसने को तैयार है?
कांग्रेस और भाजपा: एक सिक्के के दो पहलू
आज दलित और पिछड़े वर्गों को लगता है कि भाजपा उनके लिए सबसे घातक है, किंतु सच्चाई इससे कहीं गहरी है। भाजपा और आरएसएस कांग्रेस द्वारा पाले-पोसे गए संगठन हैं, जिन्हें उसने अपने पूरक के रूप में खड़ा किया। इसका उद्देश्य स्पष्ट था—अपने सामने एक ऐसा विपक्ष रखना, जो उसकी गांधीवादी, अर्थात् मनुवादी विचारधारा का ही हिस्सा हो। इससे सत्यशोधक समाज, आरपीआई, दलित पैंथर या बसपा जैसे अम्बेडकरवादी संगठनों को सत्ता तक पहुँचने से रोका जा सके। आज भाजपा सत्ता में है, तो उसकी नींव कांग्रेस ने रखी। कल यदि कांग्रेस सत्ता में आएगी, तो उसका कारण भाजपा होगी। यह एक चक्र है, जिसे कांग्रेस ने बसपा जैसे आत्मनिर्भर संगठनों को दबाने के लिए रचा। बहनजी इस चाल को समझती हैं, और इसलिए वे कांग्रेस को सबसे पहले निशाना बनाती हैं।
निष्कर्ष: बसपा को मजबूत करने का दायित्व
इतिहास साक्षी है कि कांग्रेस ने सत्यशोधक समाज और आरपीआई को निगल लिया। यदि पिछड़ा, मुस्लिम और दलित समाज सावधान न हुआ, तो यह कांग्रेस अब उसे ही हजम कर जाएगी। बहनजी इस खतरे को पहचानती हैं और इसी कारण कांग्रेस पर सबसे पहले प्रहार करती हैं। फूले और बाबासाहेब की विचारधारा को मान्यवर कांशीराम ने बसपा के रूप में जीवित रखा, और आज बहनजी इसे आगे बढ़ा रही हैं। शोषित समाज का यह दायित्व है कि वह बसपा को मजबूत करे, ताकि देश का कारोबार अम्बेडकरवादी हाथों में आए। कांग्रेस का छल अब उजागर हो चुका है—यह समय है कि समाज जागे, बहनजी के संकल्प को बल दे और अपनी हुकूमत स्थापित करे। यह केवल एक आह्वान नहीं, बल्कि समता और सम्मान के लिए एक संनाद है।
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के अपने विचार हैं)
— Dainik Dastak —