बहुजन आंदोलन: भटकाव से मुक्ति का मार्ग
आज बहुजन समाज संगठनों और तथाकथित हितैषियों की बाढ़ से घिरा हुआ है। इस बाढ़ ने समाज के साक्षर और नौकरीपेशा तबके को गहरे भ्रम में डाल दिया है। ‘आईडिया ओवरलोडिंग’ के इस दौर में यह तबका अपने मूल लक्ष्य से भटककर छोटे-छोटे मुद्दों को ही अपना उद्देश्य मान रहा है, जिसके लिए वह अपनी ऊर्जा, सीमित संसाधन और समय नष्ट कर रहा है। बाबासाहेब डॉ. बी.आर. आंबेडकर, मान्यवर कांशीराम और बहनजी मायावती ने राजनैतिक सत्ता को सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति का सर्वोत्तम साधन माना है। बहनजी निरंतर इस दिशा में प्रेरित भी कर रही हैं, किंतु इसके बावजूद बहुजन समाज के अधिकांश संगठन और तथाकथित पढ़े-लिखे लोग इस मूल लक्ष्य को दरकिनार कर ‘संविधान बचाओ’, ‘लोकतंत्र बचाओ’, ‘एससी-एसटी एक्ट बचाओ’, ‘बुद्ध विहार बनाओ/बचाओ’ या ‘कैंडल मार्च निकालो’ जैसे मुद्दों को ही अपना संघर्ष मान रहे हैं। ये धरने और विरोध प्रदर्शन सांत्वना तो दे सकते हैं, पर कारगर समाधान नहीं। यदि शोषित समाज को स्थायी समाधान चाहिए, तो उसे सत्ता की चाबी अपने हाथों में लेनी होगी।
मान्यवर का दृष्टिकोण: अत्याचार रोकथाम का संघर्ष
मान्यवर कांशीराम ने कहा था, “मैं अत्याचार होने के बाद के न्याय के लिए नहीं, बल्कि कोई अत्याचार हो ही न इसके लिए संघर्ष कर रहा हूँ।” वे शोषित समाज को सत्ता की ओर प्रेरित करते हुए कहते थे, “हुक्मरान समाज के ऊपर कभी अत्याचार नहीं होता।” यदि कोई अन्याय होता भी है, तो न्याय भी उसी को मिलता है जो सत्ता में होता है। इसलिए, “न्याय पाने के लिए शोषित समाज को हुक्मरान बनना होगा।” बहनजी इसी सिद्धांत पर अडिग रहकर संघर्ष कर रही हैं। फिर भी, भ्रमित बहुजन समाज अपने मूल एजेंडे और नेतृत्व पर अटूट विश्वास के साथ एकजुट होने के बजाय ‘अपनी ढपली, अपना राग’ के सिद्धांत पर बिखरा हुआ है। मान्यवर ने स्पष्ट किया था, “बहुजन आंदोलन की सफलता के लिए शोषित समाज को अपने सकारात्मक एजेंडे पर अडिग रहना होगा और सच्चे, समर्पित नेतृत्व के साथ मजबूती से खड़ा होना होगा।” उनके सदा समकालीन सिद्धांतों और सूत्रों पर चलकर ही यह समाज अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
भटकाव का इतिहास और वर्तमान
बहुजन समाज को उसके मूल मुद्दों से भटकाने की साजिशें आदि काल से चली आ रही हैं। घटनाओं और दुर्घटनाओं को अंजाम देकर उसे दिग्भ्रमित किया जाता रहा है। बाबासाहेब के समय भी विरोधियों और उनके चमचों ने बहुजन समाज को भ्रमित कर उनके मार्ग में अवरोध खड़े किए थे। आज भी वही स्थिति है। नासमझ बहुजन समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी, विरोधियों और उनके चमचों के हाथों शिकार बन रही है। वे अपने नेतृत्व (बहनजी) पर अनावश्यक टिप्पणियाँ कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे बाबासाहेब के समय उनके समकालीनों ने किया था। इतिहास से सबक न लेने के कारण बहुजन आंदोलन से भटके लोग, खासकर युवा, अपने सकारात्मक एजेंडे को छोड़कर विरोधियों के उलझाने वाले मुद्दों में फंस रहे हैं। यह अत्यंत चिंताजनक है कि वे अपनी ऊर्जा और समय को कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, भाजपा जैसे पूंजीवादी और मनुवादी दलों के मुद्दों या उनके चमचों की चर्चाओं में नष्ट कर रहे हैं।
सकारात्मकता का मार्ग: नेतृत्व में विश्वास
बहुजन समाज को अपने सकारात्मक और सृजनात्मक एजेंडे को पहचानना होगा। इसके लिए उसे अपने नेतृत्व (बहनजी) की हर बात को स्वीकार करना होगा। बाबासाहेब ने कहा था, “आंदोलन की सफलता के लिए अपने सच्चे और समर्पित नेतृत्व के हर आदेश को बिना सवाल किए मानना होगा।” बहुजन समाज की जिम्मेदारी है कि वह उसी मुद्दे पर चर्चा करे, जिस पर बहनजी चर्चा करें; उसी एजेंडे पर काम करे, जिसे बहनजी तय करें। सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर वही मुद्दे उठाए जाएँ, जिन्हें नेतृत्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित करे। इन मुद्दों पर लिखना, विमर्श करना, साझा करना और अपनी पूरी ताकत लगाना ही वह रास्ता है, जो बहुजन आंदोलन को सफलता तक ले जाएगा।
निष्कर्ष: एकजुटता और अनुशासन की शक्ति
बहुजन आंदोलन की सफलता का आधार सच्चे नेतृत्व में अटूट विश्वास, अनुशासन और सकारात्मक एजेंडे पर अडिग रहना है। बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी ने जो मार्ग दिखाया, वह शोषित समाज को सत्ता के शिखर तक ले जाने का है। अनावश्यक मुद्दों पर प्रतिक्रिया और भटकाव से बचकर, बहुजन समाज को अपनी ऊर्जा का सदुपयोग अपने मूल लक्ष्य—सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति—के लिए करना होगा। बहनजी के नेतृत्व में एकजुट होकर, मान्यवर के सिद्धांतों और सूत्रों पर चलते हुए ही यह समाज हुक्मरान बन सकता है। यही वह मार्ग है, जो अत्याचार को रोकने और न्याय को सुनिश्चित करने की गारंटी देता है। बहुजन समाज को अब जागना होगा, भटकाव को त्यागना होगा और अपने सच्चे नेतृत्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना होगा।