समाज का दर्पण और बसपा का संकल्प: एकता से सशक्तिकरण की ओर
आरोप और आत्म-चिंतन
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संदर्भ में कुछ लोग यह कहते हैं कि इसके सारे पदाधिकारी (क्वाडिनेटर्स) गलत हैं। इस विचार को क्षण भर के लिए ससम्मान स्वीकार कर लिया जाए, तो एक गहन प्रश्न उभरता है—यदि सभी पदाधिकारी गलत हैं, तो क्या यह समाज की ही कमजोरी नहीं दर्शाता? पदाधिकारी कोई बाहरी सत्ता से नहीं आते; वे समाज के ही अंग हैं, उसकी ही मिट्टी से उपजे हैं। मान्यवर कांशीराम का यह कथन इस संदर्भ में प्रकाश डालता है: “जैसे लोग होते हैं, उनको वैसा ही नेतृत्व मिलता है।” यदि पदाधिकारी भ्रष्ट या बिकाऊ हैं, तो क्या यह समाज के भीतर की भ्रष्टता और कमजोरी का प्रतिबिंब नहीं? यह लेख समाज और नेतृत्व के इस अंतर्संबंध को समझने और बसपा के प्रति सकारात्मक योगदान की आवश्यकता पर बल देता है।
समाज और नेतृत्व: एक-दूसरे का प्रतिबिंब
यदि सभी पदाधिकारी गलत हैं, तो इसका तार्किक निष्कर्ष यही है कि समाज में ही कोई कमी है। नेतृत्व समाज का दर्पण होता है—वह उसकी शक्ति, कमजोरियों और मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है। मान्यवर साहेब का यह कथन गहराई से सोचने को विवश करता है कि यदि पदाधिकारी भ्रष्ट हैं, तो क्या यह समाज की नैतिकता और एकता पर प्रश्नचिह्न नहीं? किंतु यहाँ रुककर आत्म-मंथन आवश्यक है। क्या कुछ लोगों की गलतियों के लिए संपूर्ण समाज को दोषी ठहराना उचित है? नहीं, यह एक संकीर्ण दृष्टिकोण होगा। समाज में अच्छाई और बुराई दोनों विद्यमान हैं, और नेतृत्व भी इसी द्वंद्व का हिस्सा है। इसीलिए कुछ पदाधिकारियों की कमियों को आधार बनाकर अपनी राजनीतिक पहचान को खंडित करना आत्मघाती होगा।
सकारात्मक योगदान: एकता का मार्ग
कुछ पदाधिकारी यदि गलत हैं, तो उनकी गलतियों को सुधारने का दायित्व भी समाज का है। उनकी कमियों के कारण बसपा की विचारधारा और आत्मनिर्भर एजेंडे को त्याग देना उचित नहीं। इसके विपरीत, हर बहुजन को चाहिए कि वह सकारात्मक योगदान दे—पार्टी की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुँचाए, लोगों को बसपा से जोड़े और ‘हाथी’ के चिह्न पर वोट दिलाए। यह छोटा-सा प्रयास आपकी वैचारिकी को साकार करने और अपनी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा। बाबासाहेब और मान्यवर साहेब के अनुयायियों को प्रत्याशियों या समीकरणों पर टिप्पणी करने के बजाय अपने कर्तव्य पर ध्यान देना चाहिए। यह योगदान ही वह शक्ति है, जो बहुजन समाज को उसकी हुकूमत तक पहुँचाएगी।
अनुशासन और सुधार: बसपा की प्रतिबद्धता
यह सत्य है कि यदि कोई पदाधिकारी पार्टी-विरोधी गतिविधियों या अनुशासनहीनता में लिप्त पाया जाता है, तो बसपा उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करती है। यह परंपरा रही है और भविष्य में भी रहेगी। संगठन की शुद्धता और उसकी वैचारिकी को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है। किंतु इस प्रक्रिया में समाज का सहयोग अपरिहार्य है। कुछ लोगों की गलतियों को आधार बनाकर संपूर्ण संगठन को नकार देना ऐसा है, मानो एक पेड़ की कुछ सूखी टहनियों के कारण पूरे वृक्ष को काट दिया जाए। बसपा वह वृक्ष है, जिसकी जड़ें समाज में गहरे धँसी हैं, और इसे हरा-भरा रखने का दायित्व हर बहुजन का है।
निष्कर्ष: एकता से सशक्तिकरण की ओर
बसपा केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि बहुजन समाज की पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक है। पदाधिकारियों की गलतियाँ समाज का हिस्सा हो सकती हैं, परंतु वे इसकी संपूर्णता को परिभाषित नहीं करतीं। मान्यवर साहेब का संदेश स्पष्ट है—नेतृत्व समाज का प्रतिबिंब है, और समाज की शक्ति ही उसे सही दिशा दे सकती है। इसलिए, प्रत्येक बहुजन को चाहिए कि वह नकारात्मकता को त्यागकर सकारात्मकता का मार्ग अपनाए। बसपा को वोट दें, इसके संदेश को फैलाएँ और अपनी विचारधारा को साकार करें। यह छोटा-सा कदम ही वह नींव बनेगा, जिस पर आप अपनी हुकूमत खड़ी करेंगे—एक ऐसा समाज, जहाँ समता और सम्मान सर्वोपरि हों।
(21.06.2024)