37.7 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

फ्लोटिंग वोटर- वैचारिकी विहीन व एजेण्डा शून्य वोटर

भटकती भीड़ से जागृत चेतना: वैचारिकी का विजय पथ

भीड़ का स्वरूप और उसकी दिशाहीनता
लोकतंत्र के विशाल मंच पर मतदाता एक ऐसी शक्ति है, जो राष्ट्र के भविष्य को आकार देता है। किंतु इस शक्ति का एक हिस्सा, जिसे ‘फ्लोटिंग वोटर’ कहते हैं, अपनी दिशाहीनता में भटकता प्रतीत होता है। यह वह भीड़ है, जो भेड़-चाल की भाँति प्रत्याशी के चेहरे को देखकर अपने मत का प्रयोग करती है। इसकी न तो कोई स्थायी विचारधारा है, न ही आत्मनिर्भर एजेंडा। यह कहानियों का भूखा है—जो प्रत्याशी सबसे मधुर कथा सुनाता है, यह उसी के पीछे चल पड़ता है। और यदि कोई कथा इसे रुचिकर न लगे, तो यह अपनी जाति-बिरादरी के आधार पर मतदान कर देता है। फिर भी, यह सत्य निर्विवाद है कि यह फ्लोटिंग वोटर निर्णायक शक्ति रखता है। यह लेख उस भ्रम को तोड़ने और वैचारिकी के प्रकाश को उजागर करने का प्रयास है।

प्रत्याशी का मायाजाल: क्षणिक लाभ, दीर्घकालिक हानि
प्रत्याशी को देखकर वोट करने की प्रवृत्ति एक सतही सोच का परिचायक है। एक प्रत्याशी आपके गाँव में सड़क बनवा सकता है, नाली का निर्माण करवा सकता है—ये वे कार्य हैं, जो प्रायः हर सरकार अपने आप कर देती है। किंतु क्या वह आपकी वैचारिकी को दिशा दे सकता है? क्या वह आपके समाज के लिए आत्मनिर्भर एजेंडा चला सकता है? नहीं, यह कार्य केवल आपकी अपनी पार्टी ही कर सकती है। सरकार बनने के पश्चात् जो नीतियाँ चलती हैं, जो दिशा निर्धारित होती है, वह पार्टी की वैचारिकी और एजेंडा से संचालित होती है, न कि किसी प्रत्याशी की व्यक्तिगत इच्छा से। प्रत्याशी केवल एक माध्यम है, परंतु विचारधारा वह आत्मा है, जो समाज को जीवंत रखती है।

दो मार्ग: क्षणिक सुख या शाश्वत सम्मान
मतदान से पूर्व यह प्रश्न अनिवार्य है—आप क्या चाहते हैं? यदि आपका लक्ष्य ऐसा प्रत्याशी चुनना है, जो आपके शादी-ब्याह में हज़ार रुपये का न्यौता दे, मृत्यु पर सौ रुपये का कफन प्रदान करे, तो प्रत्याशी को वोट दीजिए। किंतु इसके बाद बड़ी आशाएँ न पालें, क्योंकि यह मार्ग क्षणिक सुख तक सीमित है और अंततः दुख ही देगा। दूसरी ओर, यदि आप वैचारिकी और आत्मनिर्भर एजेंडा चाहते हैं, तो पार्टी, उसके राष्ट्रीय नेतृत्व और चुनाव चिह्न पर ध्यान दीजिए। ऐसा नेतृत्व आपके व्यक्तिगत आयोजनों में शायद न आए, परंतु वह आपको वह हैसियत देगा, जिससे आपके जीवन की हर खुशी शानो-शौकत से संपन्न होगी। वह यह सुनिश्चित करेगा कि आपकी आने वाली पीढ़ियाँ भी अपने अधिकारों से सुसज्जित और सुरक्षित रहें।

चुनाव का संकल्प: भीड़ से चेतना की ओर
फ्लोटिंग वोटर की यह दिशाहीनता एक भ्रम है, जो उसे सच्चाई से दूर रखता है। यह भ्रम कि प्रत्याशी ही सब कुछ है, उसे उस बड़े चित्र से वंचित करता है, जो वैचारिकी और आत्मनिर्भरता से निर्मित होता है। यह समय है कि मतदाता स्वयं से पूछे—मुझे क्या चाहिए? क्या मैं केवल सड़क और नाली के लिए वोट दूँ, या उस विचारधारा के लिए, जो मेरे समाज को सम्मान और शक्ति प्रदान करे? यह निर्णय केवल एक बटन दबाने का नहीं, बल्कि एक संपूर्ण भविष्य को आकार देने का है। पार्टी का चिह्न और उसका नेतृत्व वह दीपक है, जो अंधेरे में मार्ग दिखाता है, जबकि प्रत्याशी मात्र उस दीपक का क्षणिक प्रकाश हो सकता है।

निष्कर्ष: अपनी शक्ति को पहचानें
लोकतंत्र में मतदाता राजा है, और उसकी शक्ति उसके मत में निहित है। फ्लोटिंग वोटर की भीड़ को अब चेतना की ओर बढ़ना होगा। यह समझना होगा कि वोट केवल प्रत्याशी के लिए नहीं, बल्कि उस विचारधारा और एजेंडा के लिए है, जो आपके समाज को आत्मनिर्भर बनाएगा। अब समय है कि आप तय करें—क्या आप क्षणिक लाभ के पीछे भागेंगे, या उस शाश्वत सम्मान के लिए संकल्प लेंगे, जो आपकी आने वाली नस्लों को भी गर्व से जीने का अधिकार देगा? यह प्रश्न केवल आपके सामने नहीं, बल्कि आपके भविष्य के सामने भी खड़ा है। चुनिए, क्योंकि यह आपकी शक्ति है, आपका अधिकार है।

(21.06.2024)

Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...