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Monday, June 9, 2025

बसपा राज: समता, स्वतंत्रता, सौहार्द, शांति व समृद्धि का वास

आये दिन दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों पर जातिगत अत्याचार हो रहा है। बहुजन समाज के बच्चियों की अस्मत तार-तार हो रही है। नन्हे-मुन्हें बच्चों को पानी के लिए जान गँवानी पड़ रही है। पिछले दस सालों से वंचित जगत पर हो रहे अत्याचारों में घातांकीय वृद्धि देखने को मिल रही है।

बहुजन समाज त्राहि-त्राहि कर रहा है। शोषित समाज एक अत्याचार के खिलाफ धरना देकर सकून से बैठ नहीं पाया कि दूसरे धरने के लिए आवाज सुनाई पड़ने लगती है। अत्याचारों की यह परंपरा अनवरत चली आ रही है। संविधान लागू होने के लगभग तीन दशक बाद तक भी बहुजन समाज अपने ऊपर होने वाले राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक अत्याचार के खिलाफ संगठित तौर आवाज़ बुलंद नहीं कर सका परन्तु सत्तर के दशक में जब मान्यवर साहेब ने अपने अध्ययन एवं शोध के परिणामस्वरूप ईजाद किए गए सिद्धांतों एवं सूत्रों की बुनियाद पर पहले बहुजन समाज के नौकरीपेशा, इसके बाद आमजन को बामसेफडीएस-4 और बाद में बसपा के बैनर तले अखिल भारतीय स्तर तैयार किया तो एक दशक में ही नतीजे सामने आ गए।

बहुजन समाज में जहाँ एक तरफ सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना आयी तो दूसरी तरफ उनकी राजनैतिक अस्मिता को स्वीकार किया गया। इससे भारत की राजनीति की दिशा एवं दशा में आमूलचूल बदलाव दिखाई देने लगा। कल तक जिस वंचित जगत की आवाज को कोई सुनने को तैयार नहीं था, आज बसपा ने उनके दलों को इतना मजबूर कर दिया कि बसपा अपनी शर्तों पर अपने एजेण्डे के लिए ताल ठोक कर उनकों राजनैतिक समझौता करने को मजबूर करने लायक बन गयी। वंचित जगत की इस ताकत का सबसे बड़ा परिणाम मंडल कमीशन पर अमलअनुसूचित जाति / जनजाति अत्याचार निरोधक कानून और बाबासाहेब को दिए गए भारत रत्न के तौर पर स्पष्ट दिखाई देता है।

इसके बाद वंचित जगत खुद मुख्तार सरकार बनाने के लिए कमर कस चुका था। मान्यवर साहेब ने बहुजन समाज बनाने के उद्देश्य से चंद्रशेखर आदि का पिछलग्गू बनकर घूमने वाले मुलायम सिंह यादव को खुद की पार्टी बनाने के लिए तैयार किया और उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया, जिसे बाद में मान्यवर साहेब ने पूरा भी किया। परिणामस्वरूप समाजवादी पार्टी का गठन हुआ। मान्यवर साहेब की देखरेख में बसपा-सपा गठबंधन ने चुनाव लड़ा और मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। बहनजी ने दोनों दलों में राजनैतिक तालमेल की जिम्मेदारी संभाली और मान्यवर साहेब भारत के दूसरे राज्यों को तैयार करने के काम में लग गए।

उधर 1990 के अंतिम पड़ाव में लालू प्रसाद यादव आडवाणी का रथ रोककर मुस्लिम मसीहा बन गये और हिन्दू समाज में भाजपा की पकड़ और मजबूत हो गई। इधर बाबरी मस्जिद मामले में मुलायम सिंह यादव ने हिन्दू समाज को ललकारा कि ‘बाबरी मस्जिद की सुरक्षा ऐसी है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता है’। यह वक्तव्य देने के पीछे मुलायम सिंह यादव के दो लक्ष्य थे। एक, हिन्दू समाज को भड़काकर बाबरी मस्जिद विध्वंस करवाना और राम मंदिर की बुनियाद मजबूत करना। दूसरा, मुस्लिम समाज को उलझा कर उसे अपना बधुआ वोटर बनाना। मुलायम सिंह यादव अपने दोनों उद्देश्यों में सफल रहे। इससे मुलायम सिंह यादव के अहंकार में घातांकीय वृद्धि हुई।

कुछ समय बीता ही था कि मुलायम सिंह यादव सत्ता के नशे में और अधिक चूर एवं निरंकुश हो गए। उत्तर प्रदेश में दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों पर मुलायम सिंह यादव की जाति वाले तांडव करने लगे। पूरा उत्तर प्रदेश जंगल बन चुका था। मुलायम सिंह यादव (सपा) की सरकार गुंडों, अपराधियों, माफिया, बलात्कारियों की रक्षक बन गयी। देश का पीड़ित शोषित तबके पर होने वाले अत्याचारों में घातांकीय इजाफ़ा हुआ। उत्तर प्रदेश जंगल बन गया। मुलायम सिंह यादव ने गुंडों के सरगना की पदवी प्राप्त कर ली। सपा की सरकार को गुंडों की सरकार के रूप में स्थाई पहचान मिल गयी। इन सबसे दुःखी बहनजी ने मुलायम सिंह यादव को कई बार चेतावनी दी। इसके बावजूद मदांध मुलायम सिंह यादव के अत्याचारों की रफ़्तार में कोई कमी नहीं आयी। यही नही, मुलायम सिंह की सरपरस्ती में इनके गुंडों ने पंचायती चुनाव में बसपा की पंचायती महिला सदस्य का अपहरण तक कर लिया। मान्यवर साहेब को खबर मिली तो वे लखनऊ आ गये। मुलायम सिंह यादव को फटकारते हुए एक सप्ताह के भीतर गुनहगारों को सलाखों के पीछे करने की सख्त हिदायत दी परन्तु मुलायम सिंह यादव खुद को और अपने सहयोगियों को जेल में कैसे डाल सकते थे।

अन्तोगत्वा 31 मई 1995 को अल्टीमेटम का समय खत्म हुआ। मुलायम सिंह यादव के कुकृत्यों से तंग मान्यवर साहेब ने मुलायम सिंह यादव की सरकार गिरा दी। 2 जून 1995 को बौखलाए मुलायम सिंह यादव ने अपने गुंडों द्वारा शासकीय गेस्ट हाउस लखनऊ में अपने विधायकों संग मीटिंग कर रही बहनजी की हत्या के इरादे से हमला करवा दिया। अंत में राज्यपाल के हस्तक्षेप से बहनजी अपने विधायकों संग सुरक्षित रही। गुंडाराज से पीड़ित भाजपा कांग्रेस कम्युनिस्ट आदि सभी दलों ने अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश के लिए बिना शर्त बसपा को समर्थन किया। अंततोगत्वा 3 जून 1995 को भारत के इतिहास में नई इबारत लिखी गई। सहस्त्राब्दियों बाद भारत की सरजमीं पर बहुजन समाज के एजेंडे पर बहुजन समाज की सरकारी सत्ता में आयी। बहनजी के नेतृत्व में बसपा ने उत्तर प्रदेश में गुंडाराज माफिया राज और जंगलराज का अंत कर दिया। गुंडे या तो जेल में बंद हो गये या उत्तर प्रदेश छोड़कर अन्य प्रांतों में शरण ले लिए और कुछ तो भारत ही छोड़ दिए। एक महीने के भीतर 145000 से अधिक अपराधी उत्तर प्रदेश की जेलों में भर दिए गए। स्वतंत्र भारत में यह पहला वाकया था कि इतने बड़े पैमाने पर अपराधियों को सलाखों के पीछे कर दिया गया।

स्वतंत्र भारत में पहली बार अम्बेडकर गांव, पट्टा कब्जा, बैकलॉग रिक्तियों की भर्ती आदि के जरिये वंचित बहुजन समाज के आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण के अध्याय की शुरुआत हुई। मनुवादी सरकारों एवं मुलायम सिंह यादव के अत्याचार तले रौंदे पिछड़े वर्ग ने पहली बार कानून का राज देखा। संविधान की ताकत का अनुभव किया। अपने एक वोट और लोकतंत्र की ताकत को पहचाना। बहनजी ने ऐसा शासन दिया कि निष्पक्ष इतिहासकार बहनजी की तुलना सम्राट अशोक से करते हैं। बहनजी ने आमजन को भारत के सच्चे इतिहास और संस्कृति से वाकिफ कराने एवं प्रेरणा हेतु तमाम स्मारकों का निर्माण कराया जो कि अशोक के बाद भारत की धरती को पहली बार नसीब हुआ। इस प्रकार बसपा राज उत्तर प्रदेश के लिए समता, स्वतंत्रता, सौहार्द, शांति, समृद्धि व बंधुत्व का वास साबित हुआ

बहनजी के शासन में कहार, कोहार, लोहार, खटीक, पासी, धोबी, गड़रिया, मल्लाह, कुर्मी आदि जातियों ने चैन की सांस ली क्योंकि उत्तर प्रदेश में अहीरों, ठाकुरों, जाटों आदि की बस्तियों के पास रहने वाली इन जातियों का मुलायम सिंह यादव के शासन में अहीरों व ठाकुरों ने इनका जीना मुश्किल कर दिया था। इस प्रकार पूरे उत्तर प्रदेश में ये पिछड़ी जातियाँ अहीरों, जाटों, ब्राह्मणों, सवर्णों आदि के अत्याचार मुक्त होकर सुंदर भविष्य की कल्पना करने लगी। उनके जीवन को उदेश्य और मायने मिलने लगा परन्तु, भाजपा अपने हिन्दूवादी एजेण्डा को लागू करने के लिए बहनजी पर दबाव बनाने लगी तो बहनजी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

बसपा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में ऐसा परिवर्तन किया कि बसपा की वैचारिक धुर-विरोधी भाजपा भी बसपा की सरकार बनवाने को मजबूर हो गयी। बहनजी ने अपनी पहली तीनों सरकारों को अपने सिद्धांतों एवं शर्तों पर चलाई। जब भाजपा ने अपने एजेण्डे के तहत मथुरा में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहा तो बहनजी ने डंके की चोट पर ऐलान कर दिया कि – ‘सरकार रहे या जाए, विहिप को यज्ञ की इजाज़त नहीं।’[1]

इसके बाद 1997 में और फिर 2002 में भाजपा से राजनैतिक समझौता हुआ परन्तु बसपा द्वारा उत्तर प्रदेश का अम्बेडकाराइजैशन भाजपा और सपा को रास नहीं आया। भाजपा ने अपने हिन्दू राष्ट्र के लिए बसपा पर तीनों बार दबाव डाला और तीनों बार बहनजी ने भाजपा की किसी भी शर्त को मानने के बजाय इस्तीफ़ा देना उचित समझा। भाजपा ने मान्यवर साहेब को राष्ट्रपति बनाने व बहनजी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री या फिर केंद्र सरकार में गृह मंत्री पद तक को स्वीकार करने के निवेदन किया परन्तु बहुजन समाज की स्वतंत्र अस्मिता और बहुजन आन्दोलन को समर्पित मान्यवर साहेब और बहनजी ने भाजपा के सभी ऑफर्स को न सिर्फ ठुकराया बल्कि भाजपा ने बसपा के साथ जो धोखेबाजी की थी उसके लिए भाजपा को सजा तक दे दिया। बहनजी ने अंतिम छड़ में अटल सरकार के खिलाफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में अर्थात भाजपा के खिलाफ वोट करके अटल बिहारी के नेतृत्व वाली एनडीए (भाजपा) की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया।

बसपा के समतावादी आन्दोलन की रफ़्तार और शोषित समाज की एक जुटता के संदर्भ में शोषित समाज को आगाह करते हुए मान्यवर साहेब कहते है, ’20वीं सदी के अंत तक बसपा एक तरफ और सभी मनुवादी दल दूसरी तरफ होगें।’[2] यह सच हुए जब बसपा ने संविधान सम्मत शासन शुरू कर उत्तर प्रदेश का अम्बेडकरीजेशन प्रारम्भ किया तो उस समय की उत्तर की दो सबसे बड़ी मनुवादी ताकते (भाजपा व सपा) एकजुट होकर बसपा के खिलाफ षड्यंत्र शुरू कर दिया। बसपा के तीसरे कार्यकाल के बाद जब बहनजी ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो मनुवादी भाजपा ने मनुवादी सपा के साथ समझौता किया। परिणामस्वरूप, भाजपा के विधानसभा स्पीकर की सरपरस्ती में मुलायम सिंह यादव ने अलोकतांत्रिक, अनैतिक, असंवैधानिक तरीके से बसपा के विधायकों को तोड़ कर खुद की सरकार बना ली। दल-बदल कानून के तहत मामला स्पीकर के पास आया परन्तु भाजपा के स्पीकर आदि ने इस मसले पर इतना समय लगा दिया कि मुलायम सिंह यादव ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। यह होना ही था क्योंकि भाजपा और सपा के मध्य समझौता ही इसी के लिए हुआ था।

इस समझौते की एक खास वजह यह थी कि मुलायम सिंह यादव एक कट्टर हिन्दू है, हिन्दुत्व में उनका अटूट विश्वास है। इसलिए भाजपा को मुलायम सिंह यादव से कोई खतरा नहीं है। उल्टा मुलायम सिंह यादव के कारण भाजपा को सीधा फायदा मिला। उत्तर प्रदेश का इतिहास गवाह है कि हमेशा सपा के बाद ही भाजपा को सत्ता मिली है जिसकी प्रमुख वजह सपा द्वारा मुस्लिम एवं हिन्दू फ्रिंज एलीमेंट को खुला छोड़ना रहा है। इसके कारण भाजपा और सपा ने मिलकर आसानी से उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को सींचा। या यूँ कहिए कि मुलायम सिंह यादव और सपा ने हमेशा भाजपा के लिए उपजाऊ जमीन तैयार किया है। यही वजह है कि सपा के बाद ही हमेशा भाजपा को सत्ता मिली है परन्तु दुखद है कि मुस्लिम समाज सपा और भाजपा के इस आंतरिक गठबंधन से आज तक अनभिज्ञ है। इस प्रकार सपा-भाजपा आंतरिक गठबंधन ने उत्तर प्रदेश के विकास पर विराम लगाकर उत्तर प्रदेश को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की भेंट चढ़ा दी। भाजपा हिन्दू की सरपरस्ती करने लगी तो मुलायम सिंह ने मुस्लिम को साध लिया। तब का सधा मुस्लिम आज तक सपा का बधुआ वोटर बना हुआ है।

फिलहाल, अब तक बहनजी के कंधों पर बहुत सारी जिम्मेदारी आ चुकी थी जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मान्यवर साहेब के समुचित इलाज, देखरेख और बहुजन आन्दोलन प्रमुख है। 9 अक्टूबर 2006 को मान्यवर साहेब का परिनिर्वाण हो गया। बहनजी ने बसपा और आन्दोलन की जिम्मेदारी बखूबी संभाली और मान्यवर की गैर-मौजूदगी में सपा-भाजपा और कांग्रेस के हथकंडों से बचते हुए सोशल इंजीनियरिंग के तहत एक नया प्रयोग किया। साथ ही, मुलायम सिंह यादव के अत्याचार से त्राहि-त्राहि करते उत्तर प्रदेश ने 2007 में एक बार फिर बसपा की तरफ रुख किया क्योंकि वह जानता था कि गुंडाराज का खात्मा सिर्फ बसपा ही कर सकती है। गली-गली में नारा गूंजने लगा – उत्तर प्रदेश की मजबूरी है, बहनजी जरूरी हैं। इन सबके परिणामस्वरूप बहनजी ने अपनी सूझबूझ, अदम्य साहस, अतुलनीय शौर्य का परिचय देते हुए अपने जोए-ए-बाजुओं की बदौलत उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज के शर्तों पर बहुजन समाज की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर भारत के राजनैतिक छाती पर ऐसा गोल किया कि भारत की राजनीति ही नहीं सामाजिक ताने-बाने की भी दिशा बदल गई।

उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरा भारत पहली बार संविधान सम्मत शासन देख रहा था। आधारभूत संरचनात्मक ढांचे की आधुनिक इबारत का साक्षी बन रहा था। इस दौरान उत्तर प्रदेश ही नहीं समूचे भारत के वंचित जगत में नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने अपने बच्चों के सुंदर भविष्य का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। गुंडाराज की जगह कानून राज आ गया। लोगों में सुरक्षा की भावना विकसित हुई। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह सब कैंडल मार्च, धरने आदि से नहीं बल्कि अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा व समर्पण, अपनी नेता में अटूट विश्वास और अपनी विचारधारा पर अडिगता का परिणाम था परन्तु 2012 के बाद उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भारत की जनता सपा-भाजपा जैसी साम्प्रदायिक ताकतों के जाल में फंस गई। परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में पुनः गुंडाराज, माफिया राज और जंगलराज कायम हो गया। सपा से त्रस्त जनता साम्प्रदायिकता की आग में ऐसी झुलसी की उत्तर प्रदेश की सत्ता सपा की सहयोगी भाजपा को सौंप दी, केन्द्र में भाजपा पहले से ही आ चुकी थी।

जनता हिन्दू-मुस्लिम में इस कदर उलझी कि उसे अपने बारे में सोचने तक की फुर्सत नहीं है। परिणामतः उत्तर प्रदेश सहित भारत की जनता हिन्दू साम्प्रदायिक ताकतों, गुंडाराज, सरकारी आतंक और धार्मिक तांडव से ग्रस्त हैं। दलितों, आदिवासियों, पिछडों एवं अन्य सभी समाजों पर अत्याचार में बेतहाशा वृद्धि हुई है। गैंगरेप, अवैध कब्जा, पानी पीने पर हत्या, मूंछ रखने, जय भीम का रिंगटोन बजने, घोडी चढने आदि तक पर हत्याएं आम हो चुकी है। ऐसे में बहुजन समाज के लोग कैंडल मार्च, धरना प्रदर्शन, ज्ञापन आदि से फुर्सत ही नहीं पा रहे हैं। नतीजा यह है कि बहुजन समाज बिना किसी ठोस परिणाम के एक धरना खत्म नहीं हुआ कि कैंडल मार्च के लिए तैयारी करने लग जाता है। अब बहुजन समाज को यह गम्भीरतापूर्वक सोचना है कि यह सब कब तक चलेगा? कब तक धरना प्रदर्शन और कैंडल मार्च का सिलसिला चलता रहेगा? 

हमारे निर्णय में, गुमराह हुए लोगों को बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी ने सिद्धांत पर पुनः लौटकर आने की जरूरत है। बाबासाहेब ने कहा कि ‘सत्ता की मास्टर चाबी अपने हाथ में ले लो।’ मान्यवर साहेब ने कहा कि ‘हुक्मरान बनो, हुक्मरानों पर कोई अत्याचार नही कर सकता है।’ बहनजी कहती है कि ‘शासक बनों, शासक बनकर ही अत्याचारों से मुक्ति मिल सकती है, लोकतंत्र व संविधान संग हर शहरी के हक अधिकार की रक्षा-सुरक्षा हो सकती है। इसके लिए अपने वोट का सही इस्तेमाल कर अपनी सरकार बना लीजिए।’ राजकोट (गुजरात) में तीन दिवसीय अम्बेडकर सांस्कृतिक मेले में संबोधित करते हुए बहनजी कहती है, ‘बहुजन समाज के लोग अपने अधिकार दूसरों से मांगने की बजाय अपनी सरकारें बनायें।’ [3] स्पष्ट है कि सत्ता प्राप्त करके ही संविधान को बाबासाहेब, मान्यवर साहेब एवं बहनजी की मंशानुरूप लागू किया जा सकता है। अत्याचारों से मुक्ति पायी जा सकती है। भारत की उन्नति के रास्ते तय किये जा सकते हैं। बहुजन आन्दोलन को मजबूत करके समतामूलक समाज सृजन के लक्ष्य की तरफ त्वरित वेग से बढ़ा जा सकता है। भारत राष्ट्रनिर्माण किया जा सकता है। 

 फ़िलहाल, अब बहुजन समाज को तय करना है कि उसे सिर्फ धरना देना, कैंडल मार्च करना है या फिर अपने राजनैतिक दल को अपना कीमती वोट, यथासंभव आर्थिक सहयोग एवं प्रचार प्रसार के जरिये मजबूत कर अपने शर्तों पर अपनी सरकार बनाकर अपने एजेण्डे लागू करके भारत को अत्याचारों की हिन्दू संस्कृति से मुक्त समाज का सृजन कर रैदास का बेगमपुरा बसाना है? (अगस्त 16, 2022)

स्रोत – 

[1] बहुजन संगठक, अंक : 18, वर्ष-15, 14 अगस्त 1995

[2] बहुजन संगठक, अंक :18, वर्ष-15, 14 अगस्त 1995

[3] बहुजन संगठक, अंक:33, वर्ष-24, दिनांक-13-19 सितम्बर 2004


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


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