बहुजन समाज का स्वाभिमान और बसपा का संकल्प: एक सशक्त भारत की ओर
भारतीय लोकतंत्र के विशाल पटल पर जहाँ विभिन्न राजनीतिक दल सत्ता के खेल में अपनी-अपनी चालें चलते हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक ऐसी विचारधारा के रूप में उभरती है, जो न केवल सत्ता के संग्राम से परे है, अपितु अपने सिद्धांतों पर अडिग रहकर देश के कारोबार को संविधान सम्मत ढंग से संचालित करने का संकल्प रखती है। बसपा का उद्देश्य किसी को पराजित करना या विजयी बनाना नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर शासन स्थापित कर समाज के उपेक्षित वर्गों—दलित, पिछड़े, और अल्पसंख्यक समुदायों—के लिए सम्मानजनक जीवन और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करना है। यह विचारधारा उस प्रश्न को जन्म देती है कि आखिर कब तक बहुजन समाज अन्य दलों के भय, छल और प्रलोभन के बीच फुटबॉल की भाँति ठोकरें खाता रहेगा?
बहुजन समाज की विडंबना
देश का दलित, पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय लंबे समय से एक दुश्चक्र में फँसा हुआ है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का भय उसे कांग्रेस अथवा समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे दलों की शरण में ले जाता है, तो दूसरी ओर इन दलों की नीतियों से व्यथित होकर वह पुनः भाजपा की ओर मुड़ता है। यह चक्र केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि बहुजन समाज के स्वाभिमान और अस्मिता पर निरंतर प्रहार है। क्या यह समुदाय मात्र एक राजनीतिक उपकरण है, जो विभिन्न दलों के हाथों में खेलता रहेगा? यह प्रश्न न केवल गंभीर है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के मूल ढाँचे को भी चुनौती देता है।
मनुवादी दलों का जाल
बसपा की विचारधारा इस संकट को गहराई से समझती है। यह मानती है कि कांग्रेस, भाजपा, सपा, राजद, टीएमसी और आप जैसे दल, जिन्हें वह ‘मनुवादी’ संबोधित करती है, अपने स्वार्थों के लिए बहुजन समाज को बार-बार झाँसे में लेते हैं। इन दलों का उद्देश्य समाज के इस वर्ग को सशक्त करना नहीं, बल्कि इसे अपने वोट बैंक के रूप में उपयोग करना है। कभी ये दल सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करते हैं, तो कभी धार्मिक ध्रुवीकरण का सहारा लेते हैं। परिणामस्वरूप, बहुजन समाज एक भँवर में फँसकर अपनी वास्तविक शक्ति और संभावनाओं से वंचित रह जाता है।
बसपा का वैकल्पिक मार्ग
ऐसे में बसपा एक सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत होती है। उसका लक्ष्य न तो बदला लेना है, न ही किसी दल विशेष को हराना या जिताना। उसका संकल्प है—सकारात्मक बदलाव के माध्यम से देश में शांति और समृद्धि की स्थापना करना। बसपा का मानना है कि मीडिया, सोशल मीडिया और यूट्यूबर्स द्वारा फैलाए जा रहे साम्प्रदायिक माहौल और उसके खिलाफ दुष्प्रचार से सावधान रहते हुए बहुजन समाज को एकजुट होना होगा। यह एकता ही केंद्र और राज्यों में संविधान सम्मत शासन की नींव रख सकती है। बसपा केवल सत्ता की चाह नहीं रखती, बल्कि एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहती है, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, समानता और अवसर प्राप्त हो।
निष्कर्ष: एक सशक्त भारत का स्वप्न
बहुजन समाज के सामने आज एक निर्णायक मोड़ है। उसे यह समझना होगा कि वह न तो भाजपा के भय से बंधा है, न ही अन्य दलों के प्रलोभन का शिकार। उसकी शक्ति उसके स्वयं के संकल्प में निहित है। बसपा इस शक्ति को पहचानती है और इसे संगठित कर एक सुंदर भविष्य की ओर अग्रसर करना चाहती है। यह केवल एक राजनीतिक आह्वान नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का सूत्रपात है, जो भारत को सशक्त और समावेशी राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा।
(10.03.2024)