समाज का स्वर और बहनजी का संकल्प: बसपा की विजयगाथा
समाज और नेतृत्व का गहरा नाता
दिनांक 21 जून, 2021 को ‘सभी पदाधिकारी गलत हैं, मतलब कि समाज गलत है’ शीर्षक के अंतर्गत हमने यह स्थापित किया था कि पदाधिकारी समाज का ही हिस्सा हैं। यदि सभी पदाधिकारी गलत हैं, तो यह समाज की ही कमजोरी को उजागर करता है। मान्यवर कांशीराम ने अलीगढ़ की एक विशाल जनसभा में श्री बी. पी. मौर्या के संदर्भ में कहा था, “जैसे लोग होते हैं, वैसा ही नेतृत्व मिलता है।” यह कथन समाज और उसके नेतृत्व के बीच के अटूट संबंध को रेखांकित करता है। इस विचार को एक वरिष्ठ नागरिक, जो वंचित समाज से हैं और बाबासाहेब पर किताबें लिखकर उनकी तिजारत करते हैं, ने भी उठाया। उनकी नाराजगी में एक व्यंग्य था, “समाज ही गलत है, उसे सुप्रीमो के चरण छूकर वोट देना चाहिए।” यह लेख उस व्यंग्य को गंभीरता से लेते हुए बहनजी के नेतृत्व और बसपा के योगदान की महत्ता को उजागर करता है।
बहनजी का चरण वंदन: सम्मान या कर्तव्य?
हम उस सम्मानित लेखक से विनम्रता के साथ कहते हैं कि बहनजी के चरण छूकर वोट देना न केवल उचित है, बल्कि एक कृतज्ञ समाज का कर्तव्य भी है। बहनजी उम्र, अनुभव, संघर्ष और कृत्यों में आज के भारत की सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक हैं। शोषित वर्ग उन्हें ‘आयरन लेडी’ कहता है, क्योंकि उनके साहस और कठोर निर्णयों ने उत्तर प्रदेश को नई दिशा दी। उन्होंने पुरानी संस्कृति को पुनर्जनन दिया और आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास रचा। वे सामाजिक परिवर्तन की महानायिका हैं, जो समतावादी समाज के स्वप्न को साकार करने के लिए संनादति हैं। उनका नेतृत्व केवल एक राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक मुक्ति के आंदोलन का प्रतीक है। ऐसे में उनके चरण वंदन में क्या बुराई? यह सम्मान उनकी योग्यता और बलिदान का प्रतीक है।
चरण वंदन का इतिहास और परिणाम
याद करें, यदि समतावादी समाज ने बाबासाहेब के चरण छूकर वोट दिया होता, तो वे चुनाव न हारते। यदि मान्यवर साहेब का चरण वंदन कर मतदान हुआ होता, तो वे देश के प्रधानमंत्री बन चुके होते। इसी तरह, यदि संविधान प्रेमी समाज ने बहनजी के चरणों में मत अर्पित कर इंडी ठगबंधन की 43 सीटें बसपा को दी होतीं, तो आज शोषित समाज की सरकार होती। भले ही बसपा को शून्य सीटें मिलीं, बहनजी ने ऐसे समीकरण रचे कि भाजपा को 31 और इंडी ठगबंधन को 16 सीटों का नुकसान हुआ। इससे न तो भाजपा तानाशाह बनी, न ही कांग्रेस सत्ता की क्रूरता दिखा सकी। यह बलिदान देशहित और जनहित में था, जो बहनजी की दूरदर्शिता को प्रमाणित करता है।
बाबा-बाबा करते गांधी की चौखट पर
मान्यवर साहेब का कथन, “हमारे लोग बाबा-बाबा करते-करते गांधी के चरणों में नतमस्तक हो जाते हैं,” आज भी सत्य है। बाबासाहेब को मानने वाले कुछ बुद्धिजीवी, जो किताबें लिखकर तिजारत करते हैं, बसपा की चर्चा करते हुए भी कांग्रेस की पैरवी करते हैं। इनका स्वाभिमान मर चुका है, और वे अपनी पहचान खोकर दूसरों की चौखट पर सिर झुका रहे हैं। मान्यवर साहेब ने स्वयं कहा था कि उत्तर प्रदेश में उनके कार्यकाल में सबसे अधिक विरोध बाबासाहेब के नाम पर किताबें बेचने वालों, आईएएस, पीसीएस और प्रथम-द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों ने किया। दिल्ली के कुछ लेखकों ने तो उनकी खिलाफत में चुनाव तक लड़ा। आज हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है, जहाँ बहुजन समाज परेशान है, और उसका प्रवक्ता खुलेआम आरक्षण खत्म करने की बात करता है। क्या राहुल गांधी या खड़गे ने इसका विरोध किया? यह प्रश्न इंडी ठगबंधन को वोट देने वालों के लिए है।
निष्कर्ष: बसपा की विजय और समाज का कर्तव्य
यदि संविधान और लोकतंत्र प्रेमी समाज ने बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी के चरण छूकर ‘हाथी’ को वोट दिया होता, तो आज सत्ता के केंद्र में शोषित वंचित समाज होता। बसपा की सरकार संविधान और लोकतंत्र को मजबूत करती। भले ही बसपा को शून्य सीटें मिलीं, बहनजी ने देश को मनुवादी कांग्रेस की क्रूरता और भाजपा की तानाशाही से बचाया। यह विजय सीटों की नहीं, बल्कि वैचारिकी और संकल्प की है। बहुजन समाज को अब जागना होगा—बाबा-बाबा करते हुए गांधी की चौखट छोड़, बहनजी के नेतृत्व में अपनी हुकूमत कायम करनी होगी। यह केवल एक आह्वान नहीं, बल्कि एक नवीन भारत के निर्माण का संकल्प है।
(22 जून, 2024)