आज भारतीय पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रसातल की गहराइयों में समा चुका है। एक ओर जहाँ पत्रकार समाज में ढोंग और पाखंड के काले बादलों को सघन करने में संलग्न हैं, वहीं दूसरी ओर अफवाहों के विषैले बीज बोकर दंगों की आग भड़काने का घृणित कृत्य कर रहे हैं। इस अधोगति का परिमाण इस तथ्य से भी आँका जा सकता है कि ब्राह्मणवादी मानसिकता से आक्रांत मीडिया तंत्र सत्ताधीशों से प्रश्न करने का साहस खो चुका है और इसके विपरीत, विपक्ष तथा जनसामान्य को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है। जनता के मूलभूत सरोकारों को उजागर करने के बजाय, उन्हें उनके प्रामाणिक मुद्दों से विमुख करने का निंदनीय षड्यंत्र रचा जा रहा है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ होने का दंभ भरने वाली यह ब्राह्मणवादी पत्रकारिता अब लोकतांत्रिक मूल्यों को ही ध्वस्त करने में कट्टरवादी शक्तियों का खुला संनाद कर रही है।
इसके परे, भारतीय पत्रकारिता पर ब्राह्मण-सवर्ण समाज का एकछत्र प्रभुत्व स्थापित होने के फलस्वरूप, यह कभी भी हाशिए पर धकेले गए समुदायों को अपने पत्र-पत्रिकाओं अथवा समाचार-पत्रों में सम्मान का स्थान देने में समर्थ नहीं रही। न ही इसने कभी उनके न्याय के लिए स्वर मुखर किया। यही वह करुण सत्य है, जिसने बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को मूकनायक (1920) के संपादन हेतु प्रेरित किया, ताकि शोषित-पीड़ित वर्गों तक उनकी आवाज पहुँचे। इसी पथ पर चलते हुए, मान्यवर कांशीराम ने बहुजन संगठक जैसे प्रकाशनों के माध्यम से अपने युग की परिस्थितियों में बहुजन चेतना को जागृत करने का संकल्प लिया। इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, बहुजन समाज की प्रखर नेत्री बहनजी ने अपने कार्यकर्ताओं को ही अपना सच्चा संनादक घोषित किया। इसका मूल कारण यह है कि वर्तमान पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार-पत्र और इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम तीन संकीर्ण उद्देश्यों के अधीन संचालित हो रहे हैं: प्रथम, ब्राह्मणवाद को अजेय बनाने का प्रयास; द्वितीय, मुनाफे की अंधी दौड़; तृतीय, इन दोनों लक्ष्यों की सिद्धि हेतु ब्राह्मणवादी विचारधारा से संनादित व्यक्तियों को सत्ता के शिखर पर प्रतिष्ठित करना। इस प्रकार, यह मीडिया जनता की प्रामाणिक आवाज बनने के बजाय मुट्ठीभर ब्राह्मण-सवर्णों की दासता में लीन हो चुकी है। ऐसी परिस्थिति में, शोषितों, वंचितों और पिछड़ों के मुद्दों को इस तंत्र से उजागर करने की आशा करना बहुजन समाज के लिए आत्मघाती कदम ही सिद्ध होगा।
इसके साथ ही, यह ब्राह्मणवादी तंत्र बहनजी के कथनों को विकृत कर, उन्हें तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का कुत्सित प्रयास करता है, जिससे जनमानस में भ्रम का जाल बुना जा सके। यही वह कारण है, जो बहन जी को किसी टेलीविजन चैनल पर अपने प्रवक्ताओं को भेजने से रोकता है। वे स्वयं लिखित वक्तव्यों के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुँचाती हैं, ताकि सत्य का संनाद निर्विघ्न हो और भ्रामक प्रचार का परदा हट सके। इस संदर्भ में, वे केवल अपने बुद्ध-फुले-शाहू-आंबेडकरी मिशन के सहयोगियों पर ही अटूट विश्वास रखती हैं। इसी अडिग विश्वास से प्रेरित होकर बहुजन आंदोलन में यह सुप्रसिद्ध उक्ति गूँजती है: “बहनजी और बसपा के कार्यकर्ता ही उनके सच्चे संनादक (मीडिया) हैं।”
दुर्भाग्य का साया यह है कि मुख्यधारा का यह मीडिया तंत्र, जो ब्राह्मण-सवर्ण समाज की गुलामी में बंधा है, न तो बाबासाहेब जैसे महानायकों को यथोचित सम्मान प्रदान करता है, न ही मान्यवर कांशीराम साहेब अथवा बहनजी के प्रति शालीनता का व्यवहार प्रदर्शित करता है। इसका एक ज्वलंत प्रमाण मध्य प्रदेश के गुना जिले में 16 जुलाई 2020 को घटित वह करुण प्रसंग है, जिसमें दलित परिवार पर पुलिस और प्रशासन ने क्रूर अत्याचार ढाया। जब बहनजी ने इस अमानवीय कृत्य के विरुद्ध सत्ताधीशों से प्रश्न उठाया, तो विभिन्न समाचार माध्यमों ने इसे अपमानजनक शब्दावली में प्रस्तुत किया। विधान केसरी ने लिखा, “गुना में दलित परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती”; पंजाब केसरी ने कहा, “गुना दलित पिटाई कांड पर भड़की मायावती”; नवभारत टाइम्स ने लिखा, “दलित किसान की पिटाई, शिवराज ने राहुल को लपेटा, मायावती दोनों पर भड़की”; दैनिक भास्कर ने लिखा, “गुना किसान कांड: शिवराज सरकार पर भड़की मायावती”; भारत रिपब्लिक वर्ल्ड ने कहा, “गुना की घटना पर भड़की मायावती”; और सच न्यूज ने भी लिखा, “गुना परिवार पर हिंसा मामले में भड़की मायावती।” इन शीर्षकों से यह स्पष्ट है कि बहन जी के प्रति अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग कोई नवीन परिघटना नहीं है।
हिंदी पट्टी में “भड़की” जैसे शब्द प्रायः पशुओं के संदर्भ में प्रयुक्त होते हैं। यह विचारणीय प्रश्न है कि ऐसी संज्ञा बहुजन समाज की महानायिका बहनजी के लिए क्यों चुनी जाती है, जबकि ब्राह्मण-सवर्ण समाज की महिला नेत्रियों के लिए इसका प्रयोग अनुपस्थित रहता है? यह ब्राह्मणवादी मीडिया की उस संकीर्ण और घृणास्पद मानसिकता को उजागर करता है, जो वंचित, आदिवासी और बहुजन समाज के प्रति गहरी नफरत से संनादित है। इससे भी अधिक हृदयविदारक यह है कि स्वयं को बहुजन हितैषी घोषित करने वाला बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल भी इसी घटना पर लिखता है, “म.प्र. पुलिस का दलित माँ-बेटे पर कहर! मायावती ने उगला BJP-कांग्रेस पर जहर।” “जहर उगलना” जैसे वाक्यांश का प्रयोग बहुजन समाज के प्रति संवेदनशीलता के अभाव और ब्राह्मणवादी प्रभाव के गहरे प्रसार को दर्शाता है।
आज बहुजन समाज के बीच स्वघोषित यूट्यूब संनादकों (मीडिया) का उदय हुआ है, जो बिना गहन अध्ययन और बाबासाहेब के मिशन की प्रामाणिक समझ के, केवल स्वार्थ और लोकप्रियता की लालसा से प्रेरित हैं। ये संनादक बहनजी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करते हैं, जिससे भोले-भाले बहुजन युवाओं के मन में भ्रम का संजाल फैलता है। इनका एकमात्र लक्ष्य “लाइक्स” और “कमेंट्स” के माध्यम से आय अर्जन है, जिसके लिए वे ब्राह्मणवादी चमचों और दुष्ट तत्वों को भी महिमामंडित करने से नहीं हिचकते। यह स्थिति बहुजन आंदोलन के लिए घातक बन रही है, क्योंकि जहाँ ब्राह्मणवादी मीडिया से शत्रुता स्वाभाविक है, वहीं इन बहुजन संनादकों की मूर्खता और स्वार्थपरता आंदोलन को भीतर से खोखला कर रही है।
इसके अतिरिक्त, कुछ बहुजन युवा ब्राह्मणवादी प्रभाव में बहनजी को “बुआ” कहकर संबोधित करते हैं, जो उनके प्रति अपमान का प्रतीक है। यह उल्लेखनीय है कि ब्राह्मण-सवर्ण समाज अपनी महिला नेत्रियों, जैसे ममता बनर्जी को “दीदी” कहकर सम्मान देता है, किन्तु “आंटी” जैसे शब्दों से परहेज करता है। यह अंतर बहुजन समाज के प्रति गहरे अंतर्निहित पूर्वाग्रह को उजागर करता है। बहनजी को “बुआ” कहने वाले ये व्यक्ति वही हैं, जिनके पूर्वजों ने बाबासाहेब और मान्यवर कांशीराम साहेब का विरोध किया था। ये ब्राह्मणवादी दलों के अनुचर हैं, जो बहुजन आंदोलन को क्षति पहुँचाने में संलग्न हैं।
अंततः, यह सत्य निर्विवाद है कि चाहे वह मुख्यधारा का संनाद तंत्र (मीडिया) हो, स्वघोषित बहुजन यूट्यूबर हों, अथवा ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति, सभी बहनजी के प्रति अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग करते हैं। बहुजन समाज को इस अपमान के प्रति जागृत होकर इसके विरुद्ध संनाद करना होगा। बहनजी का अपमान संपूर्ण बहुजन समाज का अपमान है। इसका प्रतिकार करना होगा। प्रतिकार का सबसे उत्कृष्ट रास्ता चुनावों में अपने वोट का सही इस्तेमाल करके अपनी सरकार (बसपा) बनाना। क्या बहुजन समाज एकजुट होकर इस चुनौती के लिए तैयार है ?
दिनांक: 18 जुलाई 2020
स्रोत संदर्भ:
- आंबेडकर, बी.आर., मूकनायक (1920)
- कांशीराम, बहुजन संगठक
- विभिन्न समाचार-पत्र: विधान केसरी, पंजाब केसरी, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर, भारत रिपब्लिक वर्ल्ड, सच न्यूज (16 जुलाई 2020)
- बहुजन हलचल यूट्यूब चैनल (16 जुलाई 2020)