37.7 C
New Delhi
Monday, June 9, 2025

बहुजन आन्दोलन में नेतृत्व (बहनजी) मार्गदाता हैं, मुक्तिदाता नहीं

बहुजन आन्दोलन की शुरुआत जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध से मानी जाती है। तथागत के ज्ञान की परम्परा को सम्राट अशोक, जगतगुरु संत शिरोमणि संत रैदास, जगतगुरु संत कबीर दास, जगतगुरु घासीदास, नारायणा गुरु, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले, छत्रपति शाहू जी महाराज, ज्ञानमूर्ति बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर, लोकतंत्र के महानायक मान्यवर साहेब और सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहनजी सहित तमाम बहुजन नायक-नायिकाओं ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आगे बढ़ाया है। ये सभी महामानव समाज के मार्गदाता हैं। गुरु हैं। इनके संघर्षों और बहुजन आन्दोलन का ही प्रतिफल है कि भारत के शूद्रों, अछूतों, आदिवासियों और अन्य शोषित पीड़ित समाज में सामाजिक परिवर्तन की लौ रौशन है।

आन्दोलन के दरमियान तमाम उतार-चढाव आते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मनुवादियों संग तात्कालिक बहुजन समाज के लोगों ने फूले का विरोध किया, बाबासाहेब का विरोध किया अंग्रेजी हुकूमत का एजेंट तक कहा, मान्यवर साहेब को सीआईए का एजेंट बताया और आज बहनजी को मानवता विरोधी आरएसएस और भाजपा का एजेंट बता रहे हैं। हालांकि, बहनजी बार-बार बहुजन समाज को सचेत करती रहती है। बहुजन आन्दोलन में मार्ग (ज्ञान) की परम्परा है, मुक्ति (मनुवादी मोक्ष) की नहीं। जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध ने कहा कि ‘मैं मार्गदाता हूं, मुक्तिदाता नहीं।’ बहुजन समाज आन्दोलन के सभी वाहकों ने भी यही कहा है परन्तु मनुवाद के प्रभाव में जी रहा बहुजन इन सबको मार्गदाता के बजाय मुक्तिदाता समझ रहा है। यही वजह है कि खुद की जिम्मेदारी भी अपने नेतृत्व के कन्धों पर डाल कर किनारे खड़े होकर मनुवाद के तांडव का नृत्य देख रहा है। ये मनुवाद से इस कदर ग्रसित है कि अपने नेता से काल्पनिक ‘सुपर पर्सनल’ की उम्मीद करता है। बहुजन समाज अपने नायकों में मनुवादी कपोल कल्पित देवताओं वाली छवि देखना चाहता है।

बहुजन समाज बुद्ध को मानता है परन्तु मनुवादी हिंसक देवताओं को अनुसरण करता है। यही वज़ह है राजनीति में संवैधानिक व लोकतांत्रिक मार्ग पर चलकर सत्ता हासिल करने के बजाय अनावश्यक धरना, तोड-फोड, जुलूस, अनर्गल प्रलाप आदि में अपनी सीमित ऊर्जा और समय खर्च कर देता है। जबकि बाबासाहेब, मान्यवर साहेब ने, संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीकों की वकालत की है और बहनजी उन्हीं के पथ पर अग्रसर है लेकिन बहुजन समाज को हिंसक मनुवादी रास्ते ज्यादा रास आ रहें हैं। इसलिए बहुजन अपने नायकों के सिद्धांतों से दूर मनुवाद के काले आगोश में समाये जा रहा है। जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध कहते हैं कि – ‘जैसे आप सोचते हैं, वैसा ही प्रतिफल आपको मिलता है।’ बहुजन समाज के लोग अपनी पूरी ऊर्जा और समय भाजपा का डर फ़ैलाने में खर्च करते हैं, बहुजन विरोधी टीएमसी, आप, राका, आरजेडी, जदयू, सपा और कांग्रेस आदि को प्रमोट करेंगे, इनको वोट करेंगे, इनका सपोर्ट करेंगे और फिर सवाल पूछेंगे कि बसपा सत्ता से दूर क्यों है, बहनजी क्या कर रही हैं।

बहुजन समाज खुद को बौद्ध परम्परा का वाहक कहता है परन्तु अभी भी यह नहीं समझ पाया है कि बहनजी मार्गदाता हैं, मुक्तिदाता नहीं। बहनजी बहुजन समाज व अन्य सभी को भी शांति, सुख, समृद्धि, सत्ता और सामाजिक परिवर्तन हेतु सतत मार्गदर्शन कर रही हैं परन्तु बौद्ध अनुयाई होने का दम्भ भरने वाले लोग क्या बहनजी के बताये रास्ते पर चल रहे हैं। ऐतिहासिक तथ्य है कि बुद्ध ने मार्ग बताया, भारत विश्वगुरू बन गया। कालांतर में, लोग भटक गये और मनुवाद ने भारत से बौद्ध धम्म और विश्वगुरू की पहचान छीन ली तो इसमें मार्गदाता बुद्ध का दोष है या फिर समाज का? ठीक इसी तरह जब तक बहुजन समाज ने मार्गदाता बहनजी की बात मानी बहुजन समाज सत्ता में रहा, उत्तर का चहुंमुखी विकास हुआ। भारत में ही नहीं, विश्वफलक पर बहुजन समाज को पहचान मिली। परन्तु मनुवादी दलों के षड्यंत्रों का शिकार होकर जब बहुजन समाज ने अपने नेतृत्व को कोसना शुरू कर दिया तो वह ना सिर्फ सत्ता से दूर हुआ बल्कि शोषण का शिकार भी होता जा रहा है, उसके मूलभूत अधिकार तक ख़तरे में है। इसमें मार्गदाता की ग़लती है या फिर समाज की?

स्पष्ट है कि – मनुवादियों की साजिशों का शिकार होकर जब समाज ने बौद्ध धम्म से दूरी बनाई तो विश्वगुरू का खिताब छिन गया, सत्ता से दूर हो गया, पहचान मिट गई, शोषण का शिकार हो गया। इसी तरह आज भी बहुजन समाज मनुवादियों द्वारा बसपा और बहनजी के खिलाफ फैलाये गये दुष्प्रचार का शिकार होकर जब अपनी बहुजन समाज पार्टी और बहनजी से दूरी बना रहा है तो ना सिर्फ वो सत्ता से दूर हो गया है बल्कि शोषण का शिकार भी होता जा रहा है।


— लेखक —
(इन्द्रा साहेब – ‘A-LEF Series- 1 मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र’ और ‘A-LEF Series-2 राष्ट्र निर्माण की ओर (लेख संग्रह) भाग-1′ एवं ‘A-LEF Series-3 भाग-2‘ के लेखक हैं.)


Buy Now LEF Book by Indra Saheb
Download Suchak App

खबरें अभी और भी हैं...

सामाजिक परिवर्तन दिवस: न्याय – समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का युगप्रवर्तक प्रभात

भारतीय समाज की विषमतावादी व्यवस्था, जो सदियों से अन्याय और उत्पीड़न की गहन अंधकारमयी खाइयों में जकड़ी रही, उसमें दलित समाज की करुण पुकार...

धर्मांतरण का संनाद: दलित समाज की सुरक्षा और शक्ति

भारतीय समाज की गहन खोज एक मार्मिक सत्य को उद्घाटित करती है, मानो समय की गहराइयों से एक करुण पुकार उभरती हो—दलित समुदाय, जो...

‘Pay Back to Society’ के नाम पर छले जाते लोग: सामाजिक सेवा या सुनियोजित छल?

“Pay Back to Society” — यह नारा सुनने में जितना प्रेरणादायक लगता है, व्यवहार में उतना ही विवादास्पद होता जा रहा है। मूलतः यह...

प्रतिभा और शून्यता: चालबाज़ी का अभाव

प्रतिभा का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या वह किसी आडंबर या छल-कपट में लिपटी होती है? क्या उसे अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के...

सतीश चंद्र मिश्रा: बहुजन आंदोलन का एक निष्ठावान सिपाही

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्रा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। कुछ लोग उनके बीएसपी के प्रति...

राजर्षि शाहूजी महाराज से मायावती तक: सामाजिक परिवर्तन की विरासत और बहुजन चेतना का संघर्ष

आज का दिन हम सबको उस महानायक की याद दिलाता है, जिन्होंने सामाजिक न्याय, समता और बहुजन उन्नति की नींव रखी — राजर्षि छत्रपति...

मान्यवर श्री कांशीराम इको गार्डन: बहनजी का पर्यावरण के लिए अतुलनीय कार्य

बहनजी ने पर्यावरण के लिये Start Today Save Tomorrow तर्ज पर अपनी भूमिका अदा की है, अपने 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार के...

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी: जातिगत जनगणना पर बहुजन विचारधारा की विजयगाथा

भारत की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है-जिसे बहुजन आंदोलन की सबसे बड़ी वैचारिक जीत के रूप में देखा जा सकता है. कैबिनेट...

कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

बहनजी के दूरदर्शी नेतृत्व, बौद्ध धम्म के प्रति अनुराग और सामाजिक समावेश की अमर गाथा कुशीनगर—शांति और करुणा का वैश्विक केंद्र कुशीनगर, वह पावन धरती जहाँ...

बहनजी की दूरदृष्टि: लखनऊ हाई कोर्ट परिसर का भव्य निर्माण

भारत के इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि, दृढ़ संकल्प और समाज के प्रति समर्पण से युगों को प्रेरित...

साम्प्रदायिकता का दुष्चक्र और भारतीय राजनीति की विडंबना

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य एक गहन और दुखद विडंबना को उजागर करता है, जहाँ साम्प्रदायिकता का जहर न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न...

सपा की नीति और दलित-बहुजन समाज के प्रति उसका रवैया: एक गंभीर विश्लेषण

भारतीय सामाजिक संरचना में जातिवाद और सामाजिक असमानता ऐसी जटिल चुनौतियाँ हैं, जिन्होंने सदियों से समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर दलित-बहुजन समुदाय को हाशिए...